कोरोनाकाल में देश के प्रसिद्ध बांधवगढ में टाइगर देखने आने वालों में गिरावट आई है। ऐसे दौर में छतीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व में तुगलकी फरमान निकालते हुए अब जिप्सी सफारी के दिन में दो फेरे के बजाय तीन कर दिए गए हैं, जबकि यहां किसी सफारी में टाइगर देखना नसीब की बात है।
यदि यह सब गाइड,ड्राइवर या जिप्सी वालों के हित में किया गया है तो यह सोच औंधे मुंह गिरेगी। क्योंकि सफारी का रेट अब 3500 रुपये है और वक्त ढाई घण्टा। जबकि टाइगर या लेपर्ड को चीतल, बन्दर की अलार्म काल बाद दिखने में वक्त लगता है। जरूरी नहीं कि इस अलार्म काल के बाद टाइगर या लेपर्ड दिख ही जाएं। इसलिए सैलानी कम होंगे और हानि यहां के पर्यटन से जुड़े लोगों को होगा।
जिप्सी का भाड़ा बढ़ा है और वक्त में कमी से सैलानी ठगा महसूस कर रहे हैं। कोरोना के वक्त 6 सैलानी की संख्या कम कर चार करना सुरक्षा की दृष्टि से कम भी नहीं है। अब भी गाइड और ड्राइवर को शामिल कर कुल आठ सवार होंगे। जिप्सी तीन बार जंगल जाएगी, जिससे वन्यजीवों के आवास में अधिक खलल होगा।
शिवतराई स्थिति बैगा रिसार्ट के कमरों का किराया दो हजार से उछल कर अब सीधे तीन हज़ार रुपये कर दिया गया है,जबकि इसका इन दिनों ऐसे भी इस्तेमाल नहीं होता। नाम बैगा रिसार्ट है, पर क्या कभी कोई आदिवासी बैगा यहां रुका होगा। आगे कभी रुक सकेगा, ऐसा भी लगता नहीं। कान्हा नेशनल पार्क के खटिया गेट में इस भाड़े पर रिसार्ट, लंच-डिनर और सुबह सफारी में जिप्सी के साथ नाश्ता पैक भी साथ भेजते हैं।
बारीघाट और आमाडोह बफर रेज में सफारी शुरू नहीं हुई है। जब कोर जोन में वन्यजीव से कहीं अधिक बकरी,गाय और भैंस चरते दिखते हैं तो बफर का आलम ना जाने क्या होगा?
अब भी वक्त है कि एटीआर के अधिकारी फैसले को रोल बैक करे लें। यह सैलानियों के अलावा जिप्सी सफारी से रोजगार पाने वालों के हित में रहेगा। पर इसकी उम्मीद कम है, क्योंकि अफसरशाही के कान नहीं होते और दिमाग में हठधर्मिता होती है।
(वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्ढा के फेसबुक वाल से साभार)