सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किये गये भुगतान का विश्लेषण किया

बिलासपुर। रेल मंत्रालय ने दावा किया था कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों पर यात्रियों का 85 फीसदी किराया वह वहन कर रही है और सिर्फ 15 प्रतिशत राज्य सरकार से लिया जा रहा है। अब यह खुलासा हुआ है कि कम से कम छत्तीसगढ़ के संदर्भ में रेलवे ने न केवल पूरे पैसे लिये बल्कि सामान्य किराये से ज्यादा की वसूली की। श्रमिकों को यात्रा के दौरान भोजन-पानी देने में लापरवाही बरती गई।

सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने रेलवे में जमा की गई छत्तीसगढ़ सरकार की राशि का विश्लेषण किया है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में छत्तीसगढ़ सरकार ने कहा है कि उसने भारतीय रेलवे को 40 श्रमिक गाड़ियों के लिए तीन करोड़ 83 लाख 31 हजार 330 रुपये का भुगतान किया। रेलवे ने 24 मई को केरल के तिरुवनंतपुरम से अंबिकापुर तक ट्रेन चलाई तो छत्तीसगढ़ सरकार से एक हजार 200 यात्रियों के लिए 13 लाख रु लिये गये। यानि एक यात्री पर एक हजार 83 रुपये खर्च किये गये,  जबकि इस दूरी, 2,675 किलोमीटर के लिए किसी भी मेल या एक्सप्रेस ट्रेन में नियमित स्लीपर क्लास का टिकट का किराया सिर्फ 813 रुपये है।

गुजरात से 9 मई से 28 मई के बीच छत्तीसगढ़ के लिये कुल 16 ट्रेनें चलाई गई, जिन पर राज्य ने 23 हजार 770 यात्रियों के लिए कुल एक करोड़ 47 लाख 74 हजार 405 रुपये का भुगतान किया। यानि औसतन रुपये 621 प्रति यात्री। जबकि इस 1350 किलोमीटर की दूरी का स्लीपर क्लास का किराया केवल 535 रुपये है।

श्रीवास्तव ने कहा कि रेलवे का बिना किसी शुल्क के भोजन और पानी उपलब्ध कराने का दावा भी असत्य है।  विश्लेषण से पता चलता है कि हर एक यात्री के पीछे सामान्य किराया के ऊपर 50 से 100 रुपये का शुल्क लिया गया है इसके बावजूद भोजन और पानी की आपूर्ति अनियमित थी। उदाहरण के लिए अहमदाबाद (गुजरात) से ट्रेन 27 मई को चाम्पा पहुंची। इस ट्रेन में यात्रा के 26 घंटों के दौरान केवल एक बार भोजन दिया गया।

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