बिलासपुर। परम्परागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत कोटा विकासखंड के तीन गांवों सिलदहा, भैंसाझार और बछालीखुर्द में 500 हेक्टेयर रकबे पर एचएमटी धान का जैविक उत्पादन किया जा रहा है, जिनमें 13 हजार क्विंटल धान उत्पादन की संभावना है।

जैविक उत्पाद की ब्रांडिंग, पैकेजिंग और विपणन की व्यवस्था भी की जायेगी। खेतों में ढेचा बोनी और मथाई की गई है और जैविक उर्वरक तथा वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग किया जा रहा है। जैविक खेती से प्रति हेक्टेयर तीन बोरी यूरिया व 1.5 बोरी पोटाश की बचत होती है जिससे लागत पांच से छह हजार रुपये कम हो जाती है।

कृषि उप संचालक शशांक शिंदे ने बताया कि यह योजना पिछले साल से लागू है। इसका उद्देश्य हानिकारक रसायनों का फसलों में इस्तेमाल रोकना है। भारत सरकार द्वारा इन उत्पादों को प्रमाणित कर प्रमाण-पत्र भी दिया जायेगा, जिससे किसानों को उचित मूल्य मिल सके। जैविक खेती पर प्रति हेक्टेयर 10 से 12 हजार रुपये अनुदान भी दिया गया है। किसान संतोष राज का कहना है कि जैविक खेती पारम्परिक है, इससे रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता घटी है तथा भूमि की कार्बनिक उपजाऊ क्षमता बढ़ी है।

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