करगी रोड (कोटा )। मानस चिंतक सरगांव के प्रवचनकार पं. अरूण दुबे ने पूर्व नगर पंचायत मुरारी गुप्ता के निवास पर श्रीमद् भागवत पुराण के दूसरे दिन की कथा सुनाई।

उन्होंने बताया कि परीक्षित जब गर्भ में थे तो अश्वत्थामा ने उन्हें ब्रह्मशिर अस्त्र से मारने का प्रयत्न किया था। परीक्षित जब राज सिंहासन पर बैठे तो महाभारत युद्ध की समाप्ति को कुछ ही समय हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण परम धाम सिधार चुके थे और युधिष्ठिर 36 वर्ष तक राज कर चुके थे। परीक्षित के काल में ही द्वापर का अंत और कलियुग का प्रारंभ हुआ। परीक्षित ने कलियुग के राज्य में प्रवेश की बात सुनी तो उन्हें वे ढूंढने निकले। उन्होंने देखा कि राजा रूप में शूद्र धर्मरूपी बैल के तीन पैर सत्य, तप व दया को तोड़ डाला पर एक पैर दान के सहारे वह भाग रहा था। यह देखकर परीक्षित को कलियुग पर क्रोध आया और उन्होंने बहुत गिड़गिड़ाने पर कलयुग पर दया की। कलियुग के रहने के लिए उन्होंने जुआ, स्त्री, मद्य, हिंसा और निद्रा। राजा ने उसे पांच वस्तुएं मिथ्या, मद, काम, हिंसा और बैर भी दे दिये। कलियुग बराबर इस ताक में था कि परीक्षित को समाप्त कर निष्कंटक राज करे। राजा के मुकुट में कलियुग घुस गया। राजा परीक्षित शिकार के लिए गये। उन्होंने एक हिरण का पीछा किया। रास्ते में एक वृद्ध मुनि शमीक मार्ग में मिले। मुनि मौनी थे, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। प्यासे परीक्षित को मुनि पर क्रोध आ गया। उसने मुनि के गले पर मरा हुआ सांप डाल दिया। मुनि को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि जिसने उसके शरीर पर सांप डाला है उसकी मौत तक्षक नाग के डसने से होगी।

कथा श्रवण के लिए वार्ड तथा नगर के श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

 

 

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