बिलासपुर। हाईकोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग का 20 सप्ताह का गर्भपात कराने की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि यदि बच्चे को जन्म देने के लिये विवश किया गया तो उसे जीवन भर शारीरिक व मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ेगा।

गर्भपात की प्रक्रिया आज 14 जुलाई को ही पूरी कराई जा रही है। मामले की प्रारंभिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर एक चार सदस्यीय मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था। इस टीम ने 12 जुलाई को मेडिकल रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें बताया गया कि चूंकि पीड़िता का गर्भ 20 सप्ताह से अधिक का नहीं है, अतः गर्भपात (एमटीपी) कराया जा सकता है। कोर्ट ने डॉक्टरों की निगरानी में गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने का निर्देश दिया है साथ ही भ्रूण का डीएनए भी संरक्षित रखने के लिये कहा। चिकित्सकों को पीड़िता के स्वास्थ्य की देखभाल व आवश्यकता के अनुरूप इलाज की सुविधा देने का निर्देश भी दिया गया है।

हाईकोर्ट ने यह फैसला एक सप्ताह पूर्व कोरबा की 15 वर्षीय नाबालिग पीड़िता की तरफ से दायर याचिका पर सुनाया। याचिका के अनुसार पीडिता बलात्कार के बाद गर्भवती हो गई थी। पीड़िता ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट के प्रावधानों के तहत गर्भपात की अनुमति मांगी थी।

एडवोकेट अनिश तिवारी ने बताया कि हाईकोर्ट में जस्टिस गौतम भादुड़ी ने मंगलवार को दिये गये अपने फैसले में कहा है कि यदि पीड़िता के साथ बलात्कार किया गया है और उसे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया जाता है, तो उसे जीवन भर शारीरिक और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ेगा। साथ ही पैदा होने वाले बच्चे को भी सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ सकता है। अतः याचिकाकर्ता को गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति का अधिकार है। पीड़िता को गर्भपात के लिये कोरबा जिले के एक सरकारी अस्पताल में 14 जुलाई को भर्ती कराया गया है।

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