बिलासपुर। गीतकार, समीक्षक व कथाकार के रूप में देश-विदेश में ख्यातिप्राप्त स्व. श्रीकान्त वर्मा को याद करने के लिए एक कार्यक्रम उनके 88वें जन्मदिन पर लखीराम अग्रवाल ऑडिटोरियम में रखा गया। वक्ताओं ने इस बात पर खेद जताया कि बिलासपुर को पहचान दिलाने वाले इस महान शख्सियत को याद में कार्यक्रम रखने के लिए 20 साल का वक्त लग गया। सभी ने माना कि बिलासपुर को पहचान दिलाने वाली हस्तियों के लिए कार्यक्रम नियमित रूप से होनी चाहिए और साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में आये ठहराव को खत्म करना चाहिए।

बिलासपुर में पैदा हुए और पढ़े-लिखे श्रीकान्त वर्मा को भटका मेघ, मायादर्पण, दिनारम्भ, मगध, अपोलो का रथ जैसी कृतियों के लिये जाना जाता है। वे करीब एक दशक तक दिनमान से जुड़े रहे। उनकी कृतियों को देशभर में ही नहीं बल्कि विदेशों में अनेक भाषाओं में अनूदित करके पढ़ा गया है। वे राजनीति में बड़ी ऊंचाई हासिल की। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी और तत्कालीन सांसद मिनी माता के वे निकट सहयोगी रहे। उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव का दायित्व भी सौंपा गया था। प्रसिद्ध नारा ‘गरीबी हटाओ’ उन्हीं का दिया हुआ था।

श्रीकांत वर्मा स्मृति न्यास की ओर से 18 सितम्बर उनकी स्मृति में रखा गया, जिसके संयोजक अजय श्रीवास्तव, राजू यादव, बन्टी सोन्थलिया और प्रतीक वासनिक थे। अतिथियों व साहित्यकारों ने बिलासपुर से जुड़ी उनकी स्मृतियों को तथा साहित्यिक योगदान को याद किया। इस मौके पर शहर के कलाधर्मी पद्मश्री अनूप रंजन पांडेय को श्रीकांत वर्मा सम्मान से सम्मानित किया गया। पद्मश्री भारती बंधु की संगीत संध्या, कथक नृत्यांगना वासंती वैष्णव, सुनील वैष्णव की टीम द्वारा शास्त्रीय नृत्य का प्रदर्शन तथा श्रीकांत वर्मा की रचना पर आधारित अग्रज नाट्य दल की प्रस्तुति भी हुई।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कलेक्टर व साहित्यकार डॉ. संजय अलंग ने बताया कि वे श्रीकांत वर्मा को पहले से पढ़ते आ रहे हैं पर जब उनकी पहले-पहल पोस्टिंग हुई तो उनके साथ श्रीकांत वर्मा रचनावली किताब साथ थी, जिसे रात-रात भर पढ़ा करते थे। साहित्यकार रामकुमार तिवारी ने बताया कि उनका बचपन केंदा में बीता और बार-बार आर्थिक परेशानियों तथा बीमारियों से जूझते रहे। इसके बावजूद उन्होंने अपने भीतर के साहस को बनाये रखा। वर्मा ने वही लिखा जो वे थे और महसूस करते थे। साहित्यकार डॉ. विजय सिन्हा ने भी गोड़पारा में बिताये उनके दिनों को याद किया। विशिष्ट अतिथि अटल श्रीवास्तव ने कहा कि श्रीकांत वर्मा के नाम से शहर जाना जाता है। यादव जी (स्व. बीआर यादव) ने उनकी प्रतिमा लगवाई। शहर को श्रीकांत वर्मा, सत्यदेव दुबे और डॉ. शंकर शेष की वजह से की वजह से संस्कारधानी के रूप में जाना जाता है, इस प्रतिष्ठा को फिर से वापस लाने के प्रयास के रूप मे यह आयोजन है। पद्मश्री अनूप रंजन पांडेय ने कहा कि उपरोक्त विभूतियों में एक नाम सुरूजबाई खांडे का भी जुड़ना चाहिए। मुख्य वक्ता भोपाल से पहुंचे साहित्यकार ओम भारती ने अपने उद्बोधन में श्रीकांत वर्मा के साहित्यिक पक्ष को विस्तार से रखा। कार्यक्रम का संचालन संज्ञा टंडन ने किया। सभा में बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी तथा गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

 

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