अंतर्राष्ट्रीय ई-कांफ्रेंस में कोरोना के सामाजिक प्रभावों पर चर्चा

बिलासपुर। डी.पी.विप्र महाविद्यालय के लोक प्रशासन विभाग के प्राध्यापक डॉ. एम.एस. तम्बोली ने पी.एन.जे. कॉलेज औरंगाबाद के अंतर्राष्ट्रीय ई-कान्फ्रेन्स में रिसोर्स पर्सन के रूप में कोविड-19 का सामाजिक जीवन पर प्रभाव विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।

कोरोना के कारण विश्व में पढ़ने वाले सामाजिक प्रभावों का वर्णन करते हुए समाज पर पढ़ने वाले प्रभाव को बताते हुए डॉ. तम्बोली ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति कोरोना महामारी होने से पहले बिगड़ी हुई थी, वर्तमान में अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। भारत में ही नहीं वरन् संपूर्ण विश्व में मंहगाई और बेरोजगारी दर उच्च स्तर पर है। ऐसे में इस महामारी के चलते भारत तथा विश्व के अधिकांश देशों में पूर्ण लॉकडाउन की नीति अपनाई गई है, इससे न केवल भारत को बल्कि पूरे विश्व के हर देश को इसकी आर्थिक एवं सामाजिक कीमत चुकानी पडे़गी। इस महामारी के निपटने के लिए अभी तक कोई वैक्सीन इजाद नहीं हो पायी है।  बचाव, जागरूकता एवं एकांतवास, इस समस्या के निपटने में कारगर है, जिसे तमाम देशों ने अपना रखा है। इस महामारी का सामाजिक जीवन पर प्रथम प्रभाव उन परिवारों पर पड़ेगा जिसके घर बीमारी के चलते मौत हुई हैं। दूसरा सामाजिक प्रभाव नस्ल भेदी प्रभाव उत्पन्न होना है। जैसा कि हमें मालूम है कोरोना की शुरूवात चीन से हुई है, इसलिए चीनी नागरिकों को कुछ वर्षों तक कोरोना के नाम से पहचाना जा सकता है। अन्य देश के लोगों द्वारा उन पर न केवल नस्ल भेदी टिप्पणी की जा सकती है  बल्कि उन्हें उपेक्षा का शिकार होना पड़ सकता है। तीसरा सामाजिक प्रभाव जो आर्थिक तौर पर पिछड़े हुए है, घुमन्तू समुदाय,  दिहाड़ी मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगार मजदूरी कर रहे आदिवासियों के सामने आजीविका का संकट जैसे और भी बहुत से सामाजिक प्रभाव समाज पर पड़े हैं। सरकार एवं सुरक्षा उपाय संबंधित निर्देशों का कड़ाई से पालन करना होगा। तभी इस महामारी को समाप्त किया जा सकता है। इस महामारी से जितनी जल्दी हो सके पूरा विश्व मुक्त हो जाये जिससे जन जीवन पहले जैसे सामान्य हो सके। इसके लिए हर देश के नागरिकों को अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा।

 

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