बिलासपुर। हाईकोर्ट ने अनुसूचित जनजाति और वनों के परंपरागत निवासियों को उनका अधिकार दिलाने के लिए पेश की गई जनहित याचिका पर केंद्र, राज्य शासन और 17 जिला कलेक्टरों को नोटिस जारी किया है। सभी को 6 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है।

अखिल भारतीय जंगल आंदोलन मंच के छत्तीसगढ़ संयोजक देवजीत नंदी ने अधिवक्ता रजनी सोरेन के माध्यम से दायर याचिका में कहा है कि वनों के संरक्षण, संवर्धन एवं पर्यावरणीय जलवायु परिवर्तन को बचाए रखने में विशेष संरक्षित और वंचित समुदायों का ऐतिहासिक योगदान है। इन समुदायों के लोग आदि काल से वनों पर निर्भर हैं। इन्हें वन्य प्राणी, विशेष संरक्षित खाद्य पदार्थों, औषधियों, जीवों के साथ-साथ इको सिस्टम की जानकारी होती है। देश के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद ने इन्हें अपना दत्तक पुत्र भी माना था। यह समुदाय विशेष भौगोलिक परिस्थितियों में ही निवास करने के आदी हैं और आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं। इनके संरक्षण के लिए कानून में विशेष प्रावधान भी हैं। इन आदिवासियों को अब वन्य प्राणियों के संरक्षण के नाम पर अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यानों से विस्थापित किया जा रहा है। इनमें अचानकमार टाइगर रिजर्व, भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य, बारनवापारा, उदंती सीतानदी अभ्यारण, बदलखोल अभ्यारण आदि शामिल हैं।

याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस‌ की डबल बेंच ने रायपुर, बिलासपुर, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, कबीरधाम (कवर्धा), कोरिया, मुंगेली, राजनांदगांव, जशपुर, कोरबा, धमतरी, गरियाबंद, कांकेर कोंडागांव, महासमुंद, बलरामपुर और सरगुजा के कलेक्टरों, केंद्रीय मंत्रालय के वन सचिव, राज्य के मुख्य सचिव व वन विभाग के प्रमुख सचिव तथा संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब देने कहा है।

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