एसपी ने कहा- कोई आपत्तिजनक बात होती तो वे कार्रवाई जरूर करते

बिलासपुर। गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिले में कोविड वैक्सीनेशन के लिये पुलिस की ड्यूटी लगा दी गई है। टीका लगवाने के लिये टीम के साथ गांवों में जाकर पुलिस लोगों को धमका रही है। ऐसा आज वायरल हुए एक वीडियो से साफ हुआ है। जिले के एसपी कह रहे हैं कि पुलिस ने कुछ गलत किया होता तो अब तक वे कार्रवाई कर चुके होते।


सोशल मीडिया पर आज दोपहर से एक वीडियो चल रहा है जिसे कोटमी पुलिस चौकी के अंतर्गत आने वाले ग्राम कोलबीरा का बताया गया है। इसमें पुलिस एक महिला और कुछ गांव वालों को टीकाकरण के लिये चलने के लिये जबरदस्ती कर रही है और महिलायें जाने से मना कर रही हैं। तहकीकात से पता चला कि यवीडियो में चौकी प्रभारी योगेश अग्रवाल हैं, जो वैक्सीनेशन टीम के साथ गांव पहुंचे थे। वे लाठीनुमा हरे रंग की पाइप पकड़कर लहराते हुए लोगों पर टीका लगवाने का दबाव डाल रहे हैं। ग्रामीण कह रहे हैं कि हम घर से नहीं निकल, कहीं आना-जाना नहीं कर रहे हैं, बीमार पड़ जायेंगे, कुछ हो जायेगा, तो हमें कौन देखेगा। हमारे परिवार को कौन संभालेगा। हम टीका नहीं लगवायेंगे। पुलिस को एक महिला कह रही है लाठी की धौंस पर बदतमीजी कर रहे हो, हमें जबरदस्ती टीका नहीं लगवा सकते। चौकी प्रभारी भी उनका वीडियो बना रहे हैं। महिला भी कह रही है कि हम भी वीडियो वायरल करेंगे। वह टीकाकरण को फिजूल बता रही है। कह रही है- हौवा बना दिया गया है सबका काम धंधा ठप पड़ गया, कोरोना के नाम पर। चौकी प्रभारी लगातार हड़काते हुए महिलाओं को राजी करने में लगे हैं। बात नहीं बनते दिखी तो उन्होंने फोन पर किसी से बात कर महिला टीम भेजने के लिये बात भी की, हालांकि वीडियो में किसी और पुलिस वाले या महिला टीम के पहुंचने का कोई हिस्सा नहीं आया है। इस बीच चौकी प्रभारी सफाई भी दे रहे हैं कि उन्होंने लाठी नहीं, टेलीफोन लाइन की पाइप पकड़ रखी है। वीडियो में साफ दिख रहा है कि वे लोगों पर टीका लगवाने के लिये दबाव भी बना रहे हैं और इसका भी ध्यान रख रहे हैं कि यह तनातनी उनके खिलाफ न चली जाये।

इस वीडियो को लेकर पुलिस अधीक्षक एसएस परिहार से बात की गई तो उन्होंने प्रतिप्रश्न किया कि क्या पुलिस वाला उनसे गाली गलौच कर रहा था, या लाठी चला रहा था? फिर उन्होंने ही बताया कि ऐसा कुछ नहीं किया गया है। कार्रवाई करने के लायक कुछ होता तो वे जरूर करते। कोरोना संक्रमण को देखते हुए टीकाकरण के लिये जिले में अभियान चल रहा है, जिसमें पुलिस भी मदद कर रही है। नया जिला है, यहां संसाधनों की कमी है इसलिये सब विभाग मिश्रित रूप से काम करते हुए कोरोना से निपटने में लगे हैं। हम भी जिले के बार्डर में दूसरे विभाग के लोगों से मदद ले रहे हैं।

पुलिस की जरूरत क्यों पड़ी?

टीकाकरण जागरूकता के लिये अन्य जिलों में मितानिन, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, पंचायतों के प्रतिनिधि, ग्राम सचिव आदि के जरिये अभियान चल रहा है लेकिन जीपीएम जिले में पुलिस की भी मदद मिल रही है। ऐसी नौबत क्यों आ रही है ?  कार्यक्रम स्वैच्छिक है पर आंकड़े राज्य और केन्द्र के स्तर पर मांगे जा रहे हैं। इस जिले में शायद जनप्रतिनिधियों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की समझाइश यहां काम नहीं आ रही है। टीकाकरण की स्थिति संतोषजनक नहीं है। बताया जाता है कि कुछ गांवों में टीकाकरण करने गये दल को गांव वालों ने घुसने नहीं दिया। आज ही टीकाकरण के लिये लोगों को प्रेरित करने गई एक मितानिन पर लाठियों से हमला कर दिया गया।

आदिवासी बाहुल्य इस जिले के भीतरी गांवों में बड़ी संख्या में झाड़-फूंक और पारम्परिक जड़ी-बूटी से इलाज पर भरोसा करते हैं। ग्रामीणों के मन में भय है कि टीका लगवाने से वे बीमार पड़ जायेंगे या फिर मौत भी हो सकती है। दूसरी तरफ जिले में संक्रमण के 2200 केस आ चुके हैं और अब तक 36 मरीजों की जान जा चुकी है। यहां पर कोविड केयर सेंटर भी बहुत दिक्कतों के बाद खुल सके हैं। अभी 200 बिस्तरों की सुविधा टीकरकला में है, 200 बिस्तर की सुविधा डोंगरिया में शुरू होने वाली है। आने वाले दिनों में कोरोना के केस जिले में कम होंगे या नहीं कहा नहीं जा सकता, लेकिन यह साफ है कि टीकाकरण के लिये पुलिस का इस्तेमाल करने से लक्ष्य हासिल करना संदिग्ध हो जायेगा।

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