बिलासपुर। तालापारा तालाब के किनारे बनी करीब एक हजार झुग्गी झोपड़ियों को तोड़ने का विरोध कर रहे वहां के निवासियों ने रजनीकांत अभिनीत फिल्म ‘काला’ देखी, जिसमें मुम्बई की धारावी बस्ती को उजड़ने से रोकने के लिये किये गये संघर्ष की बुनी एक कहानी है।

सन् 1997 में इस बस्ती को आशा अभियान के तहत तत्कालीन बिलासपुर कमिश्नर हर्षमंदर ने बसाया था। इस पर राजीव आवास योजना के तहत 10 करोड़ रुपये खर्च किये गये थे। यहां शारदा नगर, मिनीमाता नगर, फकीर नगर, संजय नगर आदि बस्तियां बनी हैं जिनमें करीब हजार परिवार रहते हैं। नगर निगम स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत इन झोपड़ियों को तोड़ने जा रहा है। इसके लिये बीते दस दिनों से मोहल्ले के लोगों का संघर्ष चल रहा है। एक मिनीमाता संघर्ष समिति बनाई गई है जिसने रैली निकालकर महापौर, आयुक्त के सामने विरोध दर्ज कराया है लेकिन नगर निगम, स्मार्ट सिटी परियोजना ने अपना निर्णय वापस नहीं लिया है। हालांकि महापौर ने कहा है कि झोपड़ियों को सबकी सहमति मिलने पर भी तोड़ा जायेगा। दूसरी तरफ इन्हें दी गई नोटिस की अवधि समाप्त हो चुकी है और कभी भी बुलडोजर लाकर झोपड़ियां तोड़ने की कार्रवाई की जा सकती है। हाल ही में अरपा किनारे सड़क बनाने के लिये जिस तरह से नगर निगम ने अचानक ताबड़तोड़ कार्रवाई की थी और दर्जनों झोपड़ियों को तोड़ दिया था, उसके चलते वे भयभीत है कि कभी भी उन्हें भी खुले आसमान के नीचे आना पड़ सकता है। अब मोहल्ले के लोग यहां लगातार धरना देकर गांधीवादी तरीका अपना रहे हैं। आंदोलन के आठवें दिन शाम को इन लोगों ने एक बड़े स्क्रीन पर रजनीकांत की ‘काला’ फिल्म देखकर अपनी बस्ती को बचाने की प्रेरणा ली। फिल्म में एक व्यक्ति बस्ती को खाली कराने के लिये धमकी देता है कि जो मिल रहा है उसे ले लो वरना वह भी नहीं मिलेगा। फिल्म में बताया गया है कि आंदोलन करने वाली एक महिला को मार डाला गया। तालापारा में आंदोलन कर रहे लोगों का कहना है कि हमें भी धमकियां और गाली-गलौच सुनने को मिल रही है। जिस तरह फिल्म में संघर्ष कर बस्ती बचाई गई, हम भी बचायेंगे।

शहर में कई झुग्गी बस्तियों को तोड़ने की योजना

प्रधानमंत्री आवास योजना, स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत नगर निगम और स्मार्ट सिटी लिमिटेड की ओर से बीते 6 माह से शहर के अनेक मोहल्लों में नोटिस दी जा रही हैं। इनमें तालापारा के अलावा चांटीडीह, चिंगराजपारा, पानी टंकी कुदुदंड आदि शामिल हैं। नोटिस देने पहुंच रहे अधिकारी आश्वस्त कर रहे हैं कि उन्हें इसकी जगह पक्का मकान मिलेगा पर झुग्गीवासी कहते हैं कि झोपड़ी टूटने के बाद उनके पास रहने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है।

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