बिलासपुर। राज्य में मानसिक रोगियों के इलाज के लिए 2017 में बनाए गए अधिनियम के उल्लंघन के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव, राज्य मानसिक चिकित्सालय बिलासपुर के प्रभारी और शासन के संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब मांगा है।

रायपुर निवासी अधिवक्ता विशाल कोहली ने अधिवक्ता हिमांशु पांडे के माध्यम से बीते साल अगस्त महीने में याचिका दायर कर बताया था कि प्रदेश में मानसिक रोगियों के उपचार की समुचित व्यवस्था नहीं की गई है, जिसके चलते अंधविश्वास, जादू टोने झाड़-फूंक तंत्र मंत्र आदि पर लोग आश्रित होते जा रहे हैं।

याचिका में कहा गया है कि 10 हजार लोगों के बीच एक मनोचिकित्सक होना चाहिए जबकि राज्य में 8 लाख लोगों पर एक है। सन 2017 में बने अधिनियम के अनुसार प्रत्येक जिले में एक मानसिक चिकित्सालय बनाया जाना चाहिए, लेकिन अब तक सिर्फ एक राज्य मानसिक चिकित्सालय बिलासपुर में ही खोला गया है। यहां 11 चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं, पर केवल तीन की नियुक्ति की गई है। अधिनियम में मानसिक चिकित्सालय के लिए अलग बजट का प्रावधान था लेकिन यह बजट में सन 2020-21 तक शामिल नहीं किया गया।

बीते बुधवार को हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई। इसमें यह पाया गया कि राज्य शासन ने पूर्व में दिए गए निर्देश के अनुसार जवाब दाखिल नहीं किया। अब फिर से 4 सप्ताह के भीतर कोर्ट ने शासन को बताने का निर्देश दिया है कि प्रावधान के अनुसार इलाज के लिए प्रदेश भर में क्या व्यवस्था की गई है। साथ ही राज्य मानसिक चिकित्सालय में रिक्त पदों पर भर्ती करने की क्या व्यवस्था की गई है।

उल्लेखनीय है कि राज्य में मानसिक चिकित्सालय की स्थापना के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। सन 2004 के दिसंबर महीने में यौन उत्पीड़न का शिकार एक विक्षिप्त महिला पुराने बस स्टैंड वे दर्द से कराहते हुए मिली थी, जिसे सिम्स चिकित्सालय में लाकर छाया नाम दिया गया और उपचार किया गया। उसकी कई दर्दनाक तस्वीरें मीडिया में प्रकाशित हुई। इसके बाद एफएफडीए नाम की एक सामाजिक संस्था ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका पर 11 साल तक सुनवाई होने के बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर बिलासपुर में राज्य मानसिक चिकित्सालय की स्थापना की गई।

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