बिलासपुर, 8 जनवरी।  महापौर के चुनाव की अप्रत्यक्ष प्रणाली को चुनौती देने वाली याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। इसके पहले याचिका में निर्वाचन प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की गई थी, जिसे भी कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया था।

मालूम हो कि याचिकाकर्ता लोरमी के विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर, बिलासपुर के पार्षद व पूर्व सभापति अशोक विधानी, अशोक चावलानी एवं अन्य ने हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं। इनमें शासन के उस अध्यादेश को चुनौती दी गई थी जिसमें महापौर व नगर निकायों के अध्यक्ष पद पर चुनाव सीधे जनता से नहीं कराते हुए पार्षदों से कराने का निर्णय लिया गया था।

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि अप्रत्यक्ष चुनाव नियम विरुद्ध तथा असंवैधानिक है। याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई के दौरान अधिसूचना के खिलाफ स्थगन देने की मांग भी की गई थी, जिसे न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया था।

याचिका पर सुनवाई के बाद आज चीफ जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन की डबल बेंच ने शासन के तर्कों से सहमति जताते हुए याचिका खारिज कर दी। मालूम हो कि प्रदेश के 10 में से नौ नगर निगमों में नई अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर चुने जा चुके हैं, साथ ही अधिकांश नगरीय निकायों में अध्यक्ष पद का चुनाव पार्षदों के माध्यम से किया जा चुका है।

राज्य सरकार की ओर से उपस्थित महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने तर्क दिया कि नगरीय निकाय चुनाव प्रक्रिया को लेकर प्रावधान स्पष्ट हैं। इसके अंतर्गत महापौर व अध्यक्ष दोनों ही पदों पर प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष दोनों में किसी भी तरीके से चुनाव कराने का अधिकार राज्य सरकार को है। पार्षदों के माध्यम से चुनाव कराने पर परिषद् के संचालन में अधिक स्थायित्व रहेगा और निकायों को मजबूत करने में मदद मिलेगी।

 

 

 

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