आरबीआई, चुनाव आयोग के कड़े विरोध की अवहेलना, भाजपा मालामाल हुई

बिलासपुर। “राजनैतिक दलों को इलेक्ट्रोरल बॉन्ड के जरिये चंदा इकट्ठा करने के प्रावधान देशी विदेशी और फर्जी कम्पनियों से चंदा हासिल कर काला-धन खपाने का बड़ा हथकंडा है। चुनाव आयोग और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की चेतावनी और ज्यादातर राजनैतिक दलों के विरोध के बाद भी इसे उच्च सदन की अवहेलना करते हुए लोकसभा से पास कर लागू कर दिया गया। इसका सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को हुआ है जिसके पास इतना चंदा आ रहा है जो बाकी सारे दलों के चंदे से भी ज्यादा है।”

यह बात बिलासपुर प्रेस क्लब की ओर से आईएएम भवन में आयोजित ‘एक संवाद’ कार्यक्रम में दिल्ली से पहुंचे वरिष्ठ पत्रकार नितिन सेठी ने यह बात कही। उन्होंने इलेक्ट्रोरल बॉन्ड पर एक घंटे तक विस्तार से बात की और सूचना के अधिकार के तहत निकाले गये कई दस्तावेज दिखाये जिनसे अपनी बातों की पुष्टि की।

नितिन सेठी मूलतः अरूणाचल प्रदेश से हैं और पिछले 20 सालों से दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने अनेक बड़े अख़बारों, वेबसाइट और मैगजीन पर निर्भीक लेख लिखे हैं।

सेठी ने कहा कि राजनैतिक दलों को 20 हजार रुपये से अधिक के चंदे को उजागर करना होता था। 20 हजार रुपये से अधिक के चंदे को नगद लेने की मनाही भी थी। चेक या ड्रॉफ्ट के जरिये हासिल होने वाले चंदे से यह मालूम किया जा सकता था कि किस कम्पनी, संगठन या व्यक्ति ने किसी राजनैतिक दल को कितना चंदा दिया। यह भी प्रावधान था कि कोई भी कम्पनी या व्यक्ति अपने मुनाफे के 7.5 प्रतिशत से अधिक रकम राजनैतिक दलों को देने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता। इसमें भी गड़बड़ियां होती थीं, राजनैतिक दल 20 हजार रुपये से कम का चंदा कई लोगों के नाम पर दिखा दिया करते थे लेकिन काफी हद तक यह पता लग जाता था कि किस दल के पास किससे, कितना पैसा आया। साथ ही सिर्फ मुनाफे में चल रही कम्पनियों से चंदा लिया जा सकता था। घाटे में चलने वाली कम्पनियों को चंदा देने की छूट ही नहीं थी। यह इसलिये कि घाटे में चलने वाली कम्पनी कुछ स्वार्थ के लिए चंदा दे सकती हैं।

सेठी ने कहा कि सन् 2017 में इलेक्ट्रोरल बॉन्ड लाकर मोदी सरकार ने राजनैतिक दलों के चंदा लेने की पूरे नियम ही पलट दिये। इसमें प्रावधान है कि कोई भी कम्पनी, चाहे वह संदिग्ध हो- बॉन्ड खरीदकर किसी राजनैतिक दल को एक हजार रुपये लेकर एक करोड़ रुपये तक दे सकती है। यह चंदा किससे मिला यह बताने के लिए कोई राजनैतिक दल बाध्य नहीं है। यह स्टेट बैंक भी नहीं बतायेगा कि बॉन्ड किस कम्पनी ने खरीदा है। बॉन्ड में कुछ ऐसा नहीं लिखा जायेगा कि आप पता कर सकें। यह प्रावधान भी खत्म कर दिया गया कि बॉन्ड सिर्फ मुनाफा कमाने वाली कम्पनी खरीद सकती है। देशी-विदेशी कोई भी कम्पनी चाहे वह घाटे में ही क्यों न हो, बॉन्ड खरीदकर भारी रकम ऐसे किसी दल को दे सकती है जिससे जुड़कर उसे अपना हित दिखाई देता हो। बॉन्ड के जारी होने के बाद भाजपा को मिलने वाला चंदा दुगना हो गया। उसे बॉन्ड के जरिये दिये गये चंदे का 90-95 प्रतिशत हिस्सा मिला है। राजनैतिक दलों को 60 प्रतिशत से अधिक रकम बॉन्ड के जरिये ही मिली है।

इलेक्ट्रोरल बॉन्ड जारी करते समय किस तरह से संवैधानिक संस्थाओं के विरोध और चेतावनी का उल्लंघन किया गया, इस पर भी सेठी ने प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि चूंकि बॉन्ड जारी करना रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकार क्षेत्र का मामला है, इसलिये उसके एक्ट में बदलाव की जरूरत थी। मजबूरन, इसे लागू करने के पहले वित्त मंत्रालय ने आरबीआई को पत्र लिखकर इसके बारे में सुझाव मांगा। पत्र शुक्रवार को भेजा गया था। आम तौर शनिवार, रविवार को केन्द्र सरकार के दफ्तर बंद होते हैं पर आरबीआई ने इसे गंभीर मसला मानते हुए छुट्टी के दौरान ही पत्र पर विचार किया और सरकार को जवाब दिया कि ऐसा बॉन्ड जारी करना देश के हित में नहीं होगा। वह इसके पक्ष में नहीं है। आरबीआई ने चेतावनी दी कि इलेक्ट्रोरल बॉन्ड लाने से काला धन खपाने का रास्ता तैयार होगा। देश की मुद्रा खराब होगी और काले धन के चलते बाजार में अनावश्यक विपरीत हलचल होगी। सबसे बड़ी बात यह है कि वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता की जरूरत होती है जो इस बॉन्ड के लाने से खत्म हो जायेगी।

आरबीआई ने पत्र का जवाब जल्द ही दे दिया था लेकिन केन्द्र ने प्रत्युत्तर में कहा कि अब तो देर हो चुकी है। सरकार इस पर फैसला ले चुकी है।

चूंकि राजनैतिक दलों को मिलने वाले चंदे की बात थी तो सरकार ने चुनाव आयोग से पूछने की औपचारिकता निभाई। चुनाव आयोग ने भी प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया। उसने भी कहा कि इससे काला धन राजनैतिक दलों को मिलेगा, दूसरा खतरा है कि विदेशी कम्पनियों को देश की राजनीतिक व्यवस्था में हस्तक्षेप का खतरनाक मौका मिलेगा। चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाये जाने की दिशा में काम करने की जरूरत है जबकि यह अधिक गोपनीय हो जायेगा। आयोग ने पत्र में यह तल्खी भी जताई कि चुनाव सुधार के लिए बीते चार सालों में हमने अनेक सुझाव दिये पर उन पर अमल करने की दिशा में सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। इस पत्र का जवाब ही नहीं दिया। जब संसद में इस पर सवाल किया गया तो कहा गया कि चिट्ठी खो गई।

सेठी ने कहा कि जब इलेक्ट्रोरल बॉन्ड जारी करने का निर्णय ले लिया गया तो समस्या खड़ी हुई कि इसे जारी करने का काम कौन करेगा। यहां फिर स्वतंत्र संवैधानिक संस्था आरबीआई की अनदेखी की गई। चूंकि आरबीआई इस बॉन्ड के विरोध में था, उसने बॉन्ड जारी करने के सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। उस वक्त गुजरात से ही आने वाले उर्जित पटेल आरबीआई के गवर्नर थे, जिन्होंने बाद में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। करेंसी या बॉन्ड जारी करने का अधिकार सिर्फ आरबीआई के पास होता है पर सरकार ने सीधे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को बॉन्ड जारी का काम अपने हाथ में लेने का निर्देश दिया। एसबीआई ने प्रस्ताव तो मान लिया पर इस बात पर अड़ गया कि बॉन्ड किस व्यक्ति ने खरीदा और उसे वह किसे देगा, इसका उल्लेख होना चाहिये वरना वे करोड़ों रुपये के लेन-देन की ऑडिट कैसे कर पायेंगे। वित्त मंत्रालय ने इस समस्या का समाधान ऐसे निकाला कि बॉन्ड का नम्बर अल्ट्रावायलेट लेटर में लिखा जायेगा। अर्थात् सामान्य तौर पर बॉन्ड का नंबर नहीं देखा जा सकेगा, उसका सिर्फ नंबर दिखेगा वह भी खास तौर पर स्कैनिंग करने से। यहां एसबीआई ने यह भी पूछा कि खास सेक्यूरिटी वाले बांड को तैयार करने, लेन देन में लगने वाले संसाधनों में छपाई में आने वाले खर्च को कौन वहन करेगा। एसबीआई ने कहा कि बॉन्ड खरीदने वालों के खर्च में इसे जोड़ दिया जाये। पर सरकार ने निर्देश दिया कि इसका भुगतान वे लोग करेंगे जो टैक्स देते हैं। यानि इस इलेक्ट्रोरल बॉन्ड को तैयार करने और लेन-देन पर आने वाला खर्च हम और आप वहन कर रहे हैं।

सेठी ने कई उदाहरणों के जरिये बताया कि ठीक चुनावों के वक्त बॉन्ड जारी किये गये और इसमें भी नियमों का उल्लंघन किया गया। मई 2018 में कर्नाटक में चुनाव होने वाले थे। मार्च 2018 में एसबीआई को बॉन्ड जारी करने का निर्देश दिया गया। एसबीआई ने कहा कि वित्तीय वर्ष की समाप्ति के कारण मार्च माह में बॉन्ड जारी करने का प्रावधान नहीं है। पर जरूरत तो थी चुनाव से पहले चंदे की। प्रधानमंत्री कार्यालय से सीधे पत्र भेजा गया वित्त मंत्रालय को, जिसमें कहा गया कि बॉन्ड इश्यू करने के लिए स्पेशल विंडो खोला जाये। वित्त सचिव ने एसबीआई से कहा कि यह गैर-कानूनी तो होगा पर इस बार नियम तोड़ दें और बॉन्ड जारी कर दें। दिसम्बर 2018 में फिर विधानसभा चुनाव के पहले नियमों के विरुद्ध बॉन्ड इश्यु करने के लिए विंडो खोले गये, जब छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में चुनाव हुए। इन दौरान 600 करोड़ रुपये का चंदा राजनैतिक दलों को दिया गया। नियमों के मुताबिक बॉन्ड की खिड़की 10 दिन के लिए खुलती है और जिस राजनैतिक दल को यह बॉन्ड दिया जाता है उसे 15 दिन के भीतर इस राशि को भुनाना होता है अन्यथा वह राशि लेप्स हो जाती है। एक पार्टी ने 16वें दिन दिल्ली के एसबीआई ब्रांच में 10 करोड़ रुपये का बॉन्ड जमा किया और राशि अपने खाते में जमा करने का अनुरोध किया। दिल्ली ब्रांच ने इससे मना किया। दबाव पड़ा तो मुम्बई मुख्यालय बात की। मुम्बई से पत्र आया कि है तो यह गैर कानूनी पर इस बार भुगतान कर दीजिये, आगे नहीं करेंगे। इस तरह से सेठी ने बताया कि कई बार इसी तरह गैर-कानूनी माना गया पर नियमों को तोड़ा गया।

सेठी ने बताया कि इलेक्ट्रोरल बॉन्ड का लेफ्ट पार्टियों, कांग्रेस और भाजपा की सहयोगी अकाली दल ने भी बार-बार विरोध जताया है। लेफ्ट तो इसे लेकर सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट गई। उसके बाद सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के आधार पर कई और याचिकाएं दाखिल हैं। सन् 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सुनने से ही मना कर दिया था। बाद में नये तथ्य और नई याचिकाएं आने के बाद कोर्ट ने सरकार से सील बंद लिफाफे में जानकारी मांगी। याचिकाकर्ताओं ने इलेक्ट्रोरल बॉन्ड पर रोक लगाने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की पर फिलहाल स्थगन नहीं दिया गया है। दिल्ली चुनाव के पहले भी इस पर रोक लगे लोग चाहते थे। पर अब मामले की सुनवाई फरवरी में होगी। यह जरूर है कि चुनाव आयोग ने कोर्ट के समक्ष दाखिल अपने जवाब में माना है कि उन्होंने इलेक्ट्रोरल बॉन्ड लाने से मना किया था, जिसे दरकिनार किया गया। सेठी ने बताया कि केन्द्र सरकार ने एक अधिकवक्ता को सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए तय किया। अधिवक्ता ने अध्ययन के बाद कहा कि इसमें तो अनेक असंवैधानिक प्रावधान हैं, केन्द्र ने अपना अधिवक्ता बदल दिया।

सेठी ने कहा कि हम इस बारे में ज्यादा से ज्यादा सूचनाएं हासिल करना चाहते हैं ताकि लोगों के सामने सच सामने आए। सरकार कहती है कि चूंकि इलेक्ट्रोरल बॉन्ड चेक या ड्रॉफ्ट के जरिये खरीदे जा रहे हैं इसमें पारदर्शिता है। पर जब हमने बैंक से जानकारी मांगी कि किन लोगों ने चेक या ड्राफ्ट दिये तो हमें गोपनीयता का हवाला देते हुए मना कर दिया गया। सरकार की ओर से इस गोपनीयता पर रोचक जवाब दिया गया और संविधान में उल्लेखित जीने के अधिकार से जोड़ दिया- कहा कि कम्पनियों के जीने के अधिकार का उल्लंघन होगा अगर उनका नाम उजागर कर दिया गया तो कम्पनियों के खत्म होने का खतरा है।

सेठी ने बताया कि इलेक्ट्रोरल बॉन्ड के समर्थन में भाजपा ने तर्क दिये। कहा कि भाजपा के समर्थक और कार्यकर्ता दूर-दूर गांवों में फैले हुए हैं जो आर्थिक सहायता देकर पार्टी को मजबूत करना चाहते हैं, इसलिये एक हजार रुपये का बॉन्ड खरीदने की भी छूट दी गई। पर जब आरटीआई से जानकारी निकली तो पता चला कि 90 फीसदी बॉन्ड एक लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये के बिके हैं। एक हजार वाला तो बिका ही नहीं।

उन्होंने कहा कि इस इलेक्ट्रोरल बॉन्ड से सबसे ज्यादा नुकसान नई पार्टी बनाने वालों और छोटे राजनैतिक दलों को हुआ है क्योंकि वे एक हजार से अधिक का चंदा नगद नहीं ले सकते। वे छोटी रकम की रसीद काटा करते थे जिस पर अब पाबंदी है। एक दो हजार का चंदा देने का इच्छुक व्यक्ति बैंक में बॉन्ड खरीदने नहीं जाता।

सेठी ने अपने उद्बोधन में 70 साल के पूर्व नौसेना कप्तान और अब आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश बत्रा का कई बार उल्लेख किया। वे इलेक्ट्रोरल बॉन्ड पर ही काम कर रहे हैं। बत्रा ने सरकार के झूठ और गलतबयानी का बार-बार पर्दाफाश किया। जब सरकार की ओर से सदन में कहा गया कि चुनाव आयोग के विपरीत राय वाली चिट्ठी खो गई थी तो बत्रा ने बताया कि यह चिट्ठी अलग-अलग 45 विभागों में मौजूद है।

सेठी ने कहा कि इलेक्ट्रोरल बॉन्ड जनतंत्र की नींव को खोखला करने वाला प्रावधान है। कम्पनियां 600-800 करोड़ रुपये राजनैतिक दलों को दे रही हैं पर क्यों दे रही हैं आपको जानने का अधिकार नहीं हैं। केन्द्र सरकार बार-बार हजारों शैल कम्पनियों को खोज निकालने और उनको सील करने का दावा करती है पर ऐसी ही फर्जी कम्पनियां चंदा देने से पहले उग रही हैं और चंदा देने के बाद बंद हो रही हैं। किसी भी राजनैतिक दल को इस तरह के अज्ञात और गोपनीय तरीके से भुगतान किया जायेगा तो वह दल जनता के प्रति नहीं उस कम्पनी के चलाने वालों के प्रति वफादार रहेगा। राजनैतिक दलों को मिलने वाला चंदा जो पहले काला-धन हुआ करता था अब संवैधानिक प्रावधान के तहत उसे कानूनी दर्जा दे दिया गया है।

कार्यक्रम के सूत्रधार सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता व एक्टिविस्ट सुदीप श्रीवास्तव थे, जिन्होंने सेठी को बिलासपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष तिलकराज सलूजा और सचिव वीरेन्द्र गहवई के अनुरोध पर आमंत्रित किया था। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार बजरंग केडिया, सतीश जायसवाल, नथमल शर्मा, रुद्र अवस्थी, निर्मल माणिक, प्रवीण शुक्ला, अधिवक्ता संदीप दुबे, महापौर रामशरण यादव, अटल श्रीवास्तव सहित बड़ी संख्या में पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।

 

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