दो दिवसीय कथक संगोष्ठी का समापन

बिलासपुर। दो दिवसीय कथक संगोष्ठी के समापन पर अध्यक्ष के रूप में उपस्थित जयपुर से आये कला समीक्षक डॉ.राजेश व्यास ने कहा कि यह आयोजन विरला आयोजन है। विशेष बात यह है कि यह आयोजन विश्वविद्यालय द्वारा किया जा रहा है और इसे अकादमिक दायरे में बांधा नहीं गया है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में नृत्य की परंपरा रही है परंपरा में जड़त्व आ जाता है, यदि उसमें बढ़त न हो। बिखरे कथक को सहेजने का कार्य रायगढ़ कथक घराने ने किया है। आज भी रायगढ़ घराना दूसरे घरानों से कितना अलग है, कितना ऊर्जावान है, कितना विशेष है, इस पर विस्तार से चर्चा किए जाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि रायगढ कथक घराना ने कथक को सूक्ष्म बिंदु से व्यापक स्तर तक ले जाने का संघर्ष किया है। उन्होने कहा कि रायगढ़ कथक नृत्य देह गान है। कलाएं आपको मषीनी जीवन से अलग करती हैं और जीवन रस एवं जीवन आनंद से जोड़ती हैं। उन्होंने बताया कि लोक एवं शास्त्रीय में महीन भेद है, जिसे समझने की जरूरत है।

इस अवसर पर मोहिनी मोघे ने राग-रागिनी से संबंधित रचनाओं को प्रस्तुत किया। उन्होंने रायगढ़ राजदरबार के वेदमणि की दुर्लभ रचनाओं को संगोष्ठी में सबके सामने रखा। कथक संगोष्ठी पर डॉ. विजया शर्मा ने लखनऊ जयपुर की बंदिशों की तुलना करते हुए रायगढ़ घराने के कथक की प्रस्तुति दी और उसे स्थापित करने की बात कही। डॉ.विजया शर्मा ने देश के सभी घरानों की बंदिशों की तुलनात्मक चर्चा करते हुए रायगढ़ घराना के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकार और वनमाली सृजनपीठ बिलासपुर के अध्यक्ष सतीश जायसवाल ने कहा कि एक समय ऐसा आया कि लोगों ने अपने आनंद के या समुदाय के आनंद के लिए नहीं, बल्कि सरकारी अनुदान के लिए कला विकास किया। हमारी परंपराएं सामुदायिक मनोरंजन के बीच लोक कला पल्लवित करने का काम करती रही हैं। दो दिवसीय संगोष्ठी  की क्यूरेटर डॉ. चित्रा शर्मा ने कहा कि राजा चक्रधर ने कत्थक को शास्त्र के रूप में स्थापित किया और कत्थक का पुनर्जागरण किया। आज कथक का भविष्य उज्ज्वल नजर आ रहा है । आज के समापन अवसर पर ग्वालियर से भगवानदास माणिक, खैरागढ़ से चेतना ज्योतिषी ब्यौहार, डॉ.सुचित्रा हरमलकर इंदौर, वासंती वैष्णव, ज्योतिषी वैष्णव, सुनील वैष्णव, विष्वविद्यालय के कुलपति प्रो.रवि प्रकाश दुबे,सम कुलपति प्रो.पी.के.नायक, कुलसचिव गौरव शुक्ला, दूरवर्ती शिक्षा के निदेशक अरविंद तिवारी सहित सभी विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक, कला प्रेमी और विद्यार्थी उपस्थित थे।

कथक के मूल रूप को युवा पीढ़ी तक पहुंचाएं- चौबे

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने कहा कि कथक को संरक्षित करने और इसे दुनिया के हर कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए डॉ.सी.वी.रामन् विश्वविद्यालय में कथक केंद्र स्थापित किया जाएगा साथ ही केंद्र में संग्रहालय की स्थापना भी की जाएगी, जिसमें पांडुलिपियों का संग्रह किया जाएगा। चौबे ने कहा कि निरंतर कथक गुरुओं को जोड़ने के लिए संगोप्ठियां भी आयोजित की जाएगी,  जिससे हम कथक को भावी पीढ़ी के पास उसके मूल रूप में हस्तांतरित कर सकें।

 

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