बिलासपुर, 10 अप्रैल। निजी स्कूलों की फीस में बेतहाशा वृद्धि के खिलाफ पालकों ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की शह पर निजी स्कूलों ने 30 से 40 प्रतिशत तक फीस बढ़ा दी है। निर्धारित मदों के अलावा कई अलग-अलग तरह से राशि वसूल की जा रही है।

विभिन्न निजी स्कूलों के पालकों ने पिछले कई दिनों से इस मुद्दे पर आंदोलन छेड़ रखा है। आज बिलासपुर प्रेस क्लब में अपनी बात रखते हुए उन्होंने मांग की कि बढ़ी हुई फीस वापस ली जाये, वार्षिक शुल्क बंद किया जाये। निजी स्कूलों में निजी प्रकाशकों की किताबों का चलन बंद कर एनसीईआरटी की किताबें लागू की जायें। सभी स्कूलों में प्रबंधन के साथ पालकों की समिति बने, हर साल स्कूलों का ऑडिट हो जिसमें पालकों का प्रतिनिधित्व हो, ट्रांसपोर्ट शुल्क को नियंत्रित किया जाये और वाहनों में सुरक्षा के पूरे उपाय किये जाएं।

पालकों ने कहा कि कोई भी संस्था कैपिटेशन, एडमिशन, रि-एडमिशन और डोनेशन नहीं ले सकते। शिक्षा विभाग से अनुमोदित 12 मदों में ही शुल्क ले सकते हैं, पर इसका उल्लंघन किया जा रहा है। वार्षिक शुल्क के नाम पर लाखों रुपये पालकों से लूटे जा रहे हैं, यह एक छात्र से करीब 10 हजार रुपये के हिसाब से लिया जा रहा है। एनसीईआरटी की किताबों का सेट 250 रुपये से 300 रुपये तक मिल जाता है, वही जिन निजी प्रकाशकों की किताबें लेने का बच्चों को निर्देश इन स्कूलों ने दिया है, उनकी कीमत 2500 से चार हजार रुपये तक है। निजी स्कूलों पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है। राज्य में इंजीनियरिंग, मेडिकल के लिए फीस तय करने के लिए तो समिति है, पर स्कूलों के लिए नहीं। फीस नियंत्रित करने के लिए सरकार ने कमेटी बनाने का पिछले सालों में दावा दिया लेकिन उसे लागू नहीं किया। पालकों ने बताया कि निजी स्कूलों की फीस के लिए शिक्षा संहिता नियम 124 के तहत 12 मद निर्धारित हैं। इनमें शिक्षण (कंप्यूटर शिक्षा सहित), परीक्षा, क्रीड़ा (स्पोर्ट्स), क्रियाकलाप, रेडक्रॉस, स्काउट एंड गाइड, विज्ञान, पुस्तकालय, शाला विकास, निर्धन छात्र-छात्रा, स्वास्थ्य बीमा (यदि छात्रों को स्वास्थ्य बीमा सुविधा दी जाती है तो) और बागवानी (यदि शाला परिसर में बागवानी की जाती है) शामिल हैं। इसके अलावा अन्य मदों में ली जाने वाली फीस कैपिटेशन की श्रेणी में आएगी जो गलत है। फीस पर निगरानी के लिए सरकार के पास सिस्टम नहीं है। कई निजी स्कूल ऐसे हैं जहां विवरण पत्रिका ही पांच सौ से हजार रुपए में बिक रही है।

पालकों ने कहा कि प्रदेश में तीन तरह के निजी स्कूल संचालित हैं। इनमें एक रसूखदारों का स्कूल है, जहां पर न्यूनतम फीस 50 हजार रुपए से शुरू होकर सवा लाख रुपए तक है। दूसरे मध्यम स्कूल हैं जहां फीस 30 से 70 हजार रुपये तक है और सबसे निचले स्तर पर निजी स्कूलों में फीस न्यूनतम 10 हजार रुपए वार्षिक से लेकर 35 हजार रुपए तक है। सबसे अधिक संख्या निचले स्तर के स्कूलों की है, जहां सबसे अधिक पालक फीस दे रहे हैं।
सीबीएसई स्कूलों की मनमानी ऐसी है कि कई शुल्क ऐसे लिए जा रहें हैं जिसमें बच्चों की ट्यूशन फीस से कोई लेना-देना नहीं है। सीबीएसई स्कूलों में अगर अभिभावक एक या दो बच्चों को पढ़ा रहे हैं तो उन्हें सालभर में एक से डेढ़ लाख रुपए तक खर्च करने पड़ेंगे। अगर शहर के कुछ स्कूलों की बात करें तो पहली कक्षा की सालभर की फीस करीब 25 हजार रुपए तक पहुंच जा रही हैं। इन सीबीएसई स्कूलों में हर साल एनूयअल चार्ज के नाम पर भी बच्चों से फीस ली जा रही है।

निजी स्कूलों में पालकों को अंग्रेजी का आकर्षण दिखाकर कक्षाएं तो 10 महीने ही लगा रहे हैं, लेकिन फीस 12 महीने तक की वसूल रहे हैं। इन स्कूलों में सीबीएसई की किताबें पढ़ाकर बच्चों को अप्रैल में गर्मी में ही कक्षाएं लगाई जा रही हैं। इसके एवज में निजी स्कूल मई और जून की भी फीस वसूलेंगे। ध्यान देने वाली बात है कि छुट्टी के दौरान मार्च से मई तक बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, फिर भी उन्हें ट्रांसपोर्ट और ट्यूशन फीस देनी होती है।  सत्र की शुरूआत में इन स्कूलों द्वारा एडमिशन फीस के साथ ही तीन से 6 महीने की मासिक फीस एडवांस में ले ली जाती है। इसके बारे में कहीं उल्लेख भी नहीं किया जाता। जब दाखिले के लिए अभिभावक जाते हैं तो स्कूल उनसे ट्यूशन, एक्टिविटी और डेवलेपमेंट फीस तीनों ही कई गुना वसूल लेते हैं। साथ ही हर स्कूल में अलग-अलग किताबें हैं, जबकि सभी स्कूलों में सिलेबस लगभग एक जैसा है। एनसीईआरटी से सस्ती किताबें मुहैया कराने के बजाय बाजार से महंगी किताबें खरीदने के लिए अभिभावकों को मजबूर किया जा रहा है। एनसीईआरटी की एक या दो किताबें देकर निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदनी पड़ रहीं है, जो कि बाजार में पांचवीं कक्षा के लिए पांच से छह हजार रुपए में मिल रहीं हैं।
निजी स्कूलों द्वारा संबंधित नोडल प्राचार्यों से प्रमाणित कराकर लिए जाने वाले फीस की जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को दिया जाना अनिवार्य है। लेकिन कोई भी निजी स्कूल ऐसा नहीं करता। कड़ाई किए जाने के बाद इक्का-दुक्का स्कूलों द्वारा इन नियमों का पालन किया जाता है। जबकि निजी स्कूल कोई भी गुप्त फीस नहीं ले सकता। स्कूलों को फीस निर्धारित करना जरूरी होने के साथ ही अपने सालाना ऑडिट में दर्शाना भी अनिवार्य है। शिक्षा का अधिकार के तहत कैपिटेशन फीस लेने वाले स्कूलों पर प्राप्त रकम से 10 गुना राशि से दंडित किया जा सकता है।पालकों का आरोप है कि  इस पूरे मामले में प्रशासन और जिला शिक्षा विभाग की मिलीभगत साफ दिखाई दे रही है। किताब यूनिफार्म, ट्रांसपोर्ट, बिल्डिंग क्षतिपूर्ति आदि के नाम पर मनमानी ढंग से पालकों से वसूली की जा रही है। प्रयोगशाला, खेल का मैदान का अभाव है लेकिन उसके नाम से भी फीस ली जा रही है। इसका विरोध करते हुए 10 से अधिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के पालकों ने कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी तक से शिकायत की है लेकिन कहीं से कोई आश्वासन नहीं मिला हैं। हर जगह हमारी आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।

 

 

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