जकांछ, भाजपा के पास मरवाही को देने के लिये कुछ नहीं था, पर कांग्रेस के पास शेष पूरा कार्यकाल
बिलासपुर । मरवाही विधानसभा उप-चुनाव का बहुप्रतीक्षित परिणाम आ गया है। मतदाताओं ने कांग्रेस को भारी बहुमत से जीत दिलाकर अपने परिपक्व और सजग होने का परिचय दे दिया है। राज्य बनने के बाद से ही मिले खास दर्जे को बनाये रखने के लिये उन्होंने तय किया कि आगे की ओर देखेंगे, मुड़कर नहीं।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से ही इस विधानसभा क्षेत्र की पहचान पूरे प्रदेश ही नहीं, बाहर भी स्व. अजीत जोगी की सीट होने के कारण अलग रही है। इसके पहले के पांच चुनावों में चार बार खुद अजीत जोगी और एक बार अमित जोगी भारी मतों के अंतर से जीत हासिल करते आये। जोगी को हर परिस्थिति में मरवाही ने गले लगाया चाहे वे सत्ता से बाहर हुए या उसके बाद अपनी कांग्रेस पार्टी से। इस बार मैदान में जोगी नहीं थे। जोगी की ओर से उनके परिवार से किसी के मैदान में नहीं उतर पाने के बाद सहानुभूति वोट किनके लिये जाते? छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ने इसके लिये विकल्प दिया भाजपा का। यह उत्पन्न हुई परिस्थिति ही थी कि जिस जोगी को भाजपा ने अपने पूरे कार्यकाल में जाति के नाम पर उलझाये रखा, उसे ही समर्थन देने के लिये कहा गया। मरवाही की जनता यह समझ नहीं पाई कि भाजपा को वोट दे देने से जोगी परिवार को ‘न्याय’ कैसे मिलेगा, जिसके अन्याय को जोगी परिवार अब तक भोग रहा है? यह तो अदालतें ही तय करेंगीं। न्याय का जो विकल्प उनके सामने अमित जोगी और उनकी पार्टी ने रखा वह उन्हें जंचा नहीं। भाजपा नेता हर एक सभा में जोगी के लिये प्रलाप करते दिखे। बड़ी संख्या में नोटा को वोट देते आ रहे मरवाही के मतदाता जानते थे कि यह अवसर है, जिसका भाजपा लाभ लेना चाहती है। जकांछ, भाजपा- दोनों ही पार्टियों का तर्क था कि कांग्रेस और खासकर सरकार का नेतृत्व कर रहे भूपेश बघेल को सबक सिखाने के लिये कांग्रेस को हराना जरूरी है। छजकां की अधिकारिक अपील करने से पहले भी इसका मतलब सीट भाजपा को सौंपना ही था। ऐसा क्यों किया जाये, मरवाही के मतदाता छजकां और भाजपा दोनों के तर्कों से संतुष्ट नहीं हुए।
विधानसभा 2018 का नतीजा आने के बाद स्व. अजीत जोगी से दामन छुड़ाने का जो सिलसिला प्रदेश के दूसरे हिस्सों में चला, उनकी मौत के बाद बेहद करीबी लोगों ने भी अमित जोगी के नेतृत्व में काम करना स्वीकार नहीं किया। बिखराव ऐसा हुआ है कि चार में से दो विधायक पार्टी में रहते हुए भी उनके लिये चुनौती बन गये हैं। एक ऐसे ही नजदीकी कार्यकर्ता का कहना है कि हमें पोते में जोगी की छवि दिखाई जा रही है हम तो बेटे में भी देखना चाहते थे। भाजपा और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के पास मरवाही के मतदाताओं को देने के लिये कुछ नहीं था, सिर्फ मांग कर रहे थे कि जोगी से उनका जो जुड़ाव है, उसे अपनी वोट से जीत में बदल दें।
दूसरी तरफ, कांग्रेस के घोषणा पत्र में गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही को जिला बनाने का वायदा था, जिसे सरकार में आते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किसी राजनैतिक फायदे का विचार किये बिना पूरा कर दिया। इतनी आसानी से यह फैसला हो गया कि लोगों को समझ में आ गया कि आखिर रोड़ा कहां था। आदिवासी बाहुल्य मरवाही के मतदाताओं ने देखा कि इस एक सीट की हार-जीत से तीन चौथाई बहुमत वाली सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है पर मुख्यमंत्री ने खुद मोर्चा ऐसे संभाल रखा है मानो उनकी कुर्सी दांव पर लगी हो। बघेल ने चुनाव अभियान के दौरान बड़े-बड़े कार्यकर्ताओं को उनका मन जीतने में लगा दिया और छोटी-छोटी सभायें लीं।
मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया है कि जीपीएम को एक नंबर का जिला बनायेंगे। जाहिर है, मध्यप्रदेश की सीमा पर, धार्मिक गतिविधि व पर्यटन के लिये महत्वपूर्ण अमरकंटक के नीचे बसे इस इलाके के पिछड़ेपन को, विकास और रोजगार को गति देने की जरूरत ज्यादा है। मरवाही का खास दर्जा बनाये रखने के लिये यही जरूरी फैसला था। मतदाता कांग्रेस पर भरोसा करते हुए मजबूती से खड़े हो गये। इस नतीजे को स्व. जोगी और उनके परिवार के प्रति अन्याय की तरह लेना तो ठीक नहीं होगा।