सीयू के हिंदी विभाग में साहित्य वार्ता

बिलासपुर। विडम्बना यह है कि नजीर साहब को हिंदी वालों ने स्वीकार नहीं किया और उर्दू वालों ने अपनाया नहीं। ब्रज और अवधी भाषा और दरबारी काव्य के वर्चस्ववादी समय में नजीर की खड़ी बोली का व्यापक महत्व वाली रचनाओं को अदबी हलकों में बाजारू और अश्लील करार दिया गया।

गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय की कला अध्ययनशाला के अंतर्गत हिंदी साहित्य वार्ता  में हिंदी साहित्य और नजीर अकबराबादी की महत्ता विषय पर अपने व्याख्यान में विभाग के पूर्व छात्र कुमुद रंजन ने नजीर अकबराबादी के व्यापक रचना संसार, समयबोध, तत्कालीन साहित्यिक पटल पर उनकी महत्ता और प्रासंगिकता तथा उनसे जुड़े विवादों को जोड़कर अपनी बात बहुत गहराई और विस्तार से रखी।

उन्होंने कहा कि भक्ति और रीति कालीन कविताओं को समेटते हुए सम्पूर्ण मध्यकालीन काव्य संसार पर ध्यान दिया जाए तो नजीर की भाषा और लहजा सर्वहारा समाज के और ज्यादा करीब दिखती है। उस समय के छोटे दुकानदार और रेहड़ी खोमचे वालों तक में नजीर साहब की कविताएं अद्भुत रूप से स्वीकार्य थीं। साथ ही ‛आदमीनामा, बंजारानामा, कन्हैया का बालपन, देख बहारें होली की’ जैसी बहुत ऊंचे दर्जे की कविताओं का अपना अलग स्थान भी है।

हिंदुस्तान की  गंगा-जमुनी तहजीब के इस अद्भुत फनकार की रचनाएं बहुत दिनों तक अप्राप्य रहीं और बाद में मिलीं भी तो साहित्य के इतिहास लेखकों द्वारा नाइंसाफी की भेंट भी चढ़ीं। बहरहाल वर्तमान समय में नजीर साहब पर खूब पढ़ा-पढ़ाया जा रहा है, बात की जा रही है, शोध हो रहे हैं। यह एक बहुत ही सुखद बात है।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में एमए प्रथम वर्ष की छात्रा मनीषा, गीता, संतोषी, बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा रीना, प्रथम सेमेस्टर से पायल चतुर्वेदी, मानव विज्ञान की दीपांजलि शुक्ला इत्यादि ने कविताओं की शानदार सांगीतिक प्रस्तुति दी।

विभागाध्यक्ष डॉ. रमेश कुमार गोहे ने भी महादेवी की कविता का सुंदर सांगीतिक पाठ किया। कार्यक्रम का बीज वक्तव्य विभाग के सहायक प्राध्यापक मुरली मनोहर सिंह द्वारा दिया गया। अध्यक्षता और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रमेश कुमार गोहे ने किया। कार्यक्रम का संचालन सहायक प्राध्यापक डॉ. जगदीश सौरभ ने किया। कार्यक्रम के दौरान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. अखिलेश गुप्ता, उमेश कुमार चरपे, डॉ. शोभा बिसेन, डॉ. कादम्बिनी मिश्र और डॉ. राजेश मिश्रा सहित विभाग के सभी छात्र-छात्राएं मौजूद रहीं।

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