छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने केन्द्र व राज्य सरकार से दो सप्ताह के भीतर मांगा जवाब

पीआईएल में एनजीटी बेंच बिलासपुर में भी बनाने की मांग

बिलासपुर। सामाजिक कार्यकर्ता संत कुमार नेताम द्वारा की एक जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने केन्द्र व राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। याचिका में किसी भी आदेश के सार्वजनिक होने पर एनजीटी में अपील दायर करने के लिये निर्धारित की गई 30 दिन की समय सीमा की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है।

मुख्य न्यायाधीश पीवी रामचन्द्र मेनन और जस्टिस पीपी साहू के समक्ष याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने आज सुनवाई के दौरान कहा कि एनजीटी एक्ट 2010 की धारा 16 के अनुसार एनजीटी में अपील दायर करने की निर्धारित समय सीमा किसी भी आदेश के सार्वजनिक होने के पश्चात् केवल 30 दिन की है। यहा तक कि 30 दिन के बाद 60 और दिनों तक  नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल इस देरी को माफ कर अपील को सुन सकता है परन्तु 90 दिनों के पश्चात् इन आदेशों के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती।

एनजीटी एक्ट में किसी भी परियोजना के पर्यावरण अनुमति, वन अनुमति, वायु प्रदूषण अधिनियम के तहत अनुमति, जल प्रदूषण अधिनियम एवं अन्य कई अनुमतियों के खिलाफ अपील दायर करने का अधिकार नागरिकों को मिला हुआ है। एनजीटी एक्ट को कई अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों और सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों के पालन के आधार पर बनाया गया है। इस ट्रिब्यूनल में न्यायाधीश के अलावा तकनीकी ज्ञान रखने वाले विशेषज्ञ भी होते हैं जिससे कि वे किसी परियोजना के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव आदि को सही तरीके से समझ सकें। इस एक्ट के आने के बाद अधिकतर हाईकोर्ट ने पर्यावरण एवं अन्य अनुमतियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को एनजीटी में ट्रांसफर कर दिया था और आज भी ऐसे मामलों को एनजीटी ही भेजने का आदेश दिया जाता है।

याचिका में कहा गया है कि 30 और 60 दिन की अनुमति का यह प्रावधान पूरी तरह अतार्किक, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ, एनजीटी एक्ट के उद्देश्यों को विफल करने वाला और सविधान की धारा 14 और 21 का उल्लघंन करता है।

याचिका में तुलना करते हुए बताया गया कि एक तरफ तो पर्यावरण या वन अनुमति को 90 दिनों के भीतर चुनौती देने की समय सीमा बांध दी गई है वहीं ये अनुमति 5 से 7 साल तक कार्य शुरू करने के लिए वैध है। अर्थात् यदि शुरू के 6 महीने किसी साइट पर कोई कार्य शुरू न हो तो किसी को पता ही नहीं पड़ेगा कि कोई अनुमति दी गई है और इस बीच चुनौती का समय ही निकल जायेगा।

याचिका में बिलासपुर में एनजीटी बेंच की मांग भी की गई है क्योंकि विधि आयोग की 186वीं रिपोर्ट में हर राज्य में पर्यावरण कोर्ट स्थापना की सिफारिश है। छत्तीसगढ़ से सबसे नजदीकी बेंच भोपाल में है जो नागरिकों के न्याय के अधिकार का उल्लंघन है।

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