सीवीआरयू में विज्ञान कवि सम्मेलन

बिलासपुर। डॉ.सी.वी.रामन् विश्वविद्यालय में विज्ञान प्रसार दिल्ली की विज्ञानिका और विश्वविद्यालय के विज्ञान संचार केंद्र की ओर से विज्ञान कवि सम्मेलन (science poets conference) का आयोजन किया गया। इस अवसर पर देश के विख्यात कवियों ने विज्ञान पर कविताएं पढ़ी साथ ही साहित्य और विज्ञान पर विचार मंथन भी किया।

इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और वरिष्ठ कवि सुरेश नीरव ने विज्ञान विषय पर अनेक कविताएं सुनाईं। उन्होंने कहा कि- जो फलसफा था ध्यान में, वह ढल गया है विज्ञान में। उन्होंने कहा कि आज के समय में सिर्फ विज्ञान की कविताएं ही सार्थक हैं। संस्कारहीन कविताएं और चुटकुले फूहड़ चुटकुलों के कुहांसों को चीरता हुआ कविता की समझदार संस्कृति का चेहरा है, विज्ञान कविता। यह दिमाग ही नहीं डीएनए तक पहुंचती है। उन्होंने कहा है कि आज गणेश चतुर्थी की तरह विज्ञान चतुर्थी है जिसमें हम यहां उपस्थित हैं और विज्ञान की कविताओं का पाठ किया जा रहा है।

कवि बलराम गुमास्ता ने भी विज्ञान पर अपनी कविताएं सुनाईं, जिसे सभी ने सराहा। इस अवसर पर कवि शरद कोकास ने कहा कि विज्ञान और वैज्ञानिक चेतना में अंतर होता है। इसी तरह विज्ञान और छद्म विज्ञान में भी अंतर होता है। हमें विज्ञान कविता करने से पहले इन दोनों के अंतर को समझना होगा। उन्होंने अपनी सुप्रसिद्ध कविता देह का पाठ किया।

विभाष कुमार झा ने दृष्टि नए विज्ञान की…,  हर नन्हा पौधा एक नवजात बच्चा होता है…, सहित अनेक कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम में भोपाल से आए कवि मोहन सगोरिया ने गजलों में विज्ञान विषय पर चर्चा करते हुए विज्ञान से जुड़ी गजलें और कविताएं सुनाई। यह सारे तर्क, मुबाहिस दुनिया के जहान के हैं…, लेकिन निष्कर्ष जो है वह विज्ञान के हैं। उन्होंने अनेक कविताएं पढ़ीं। कवि सम्मेलन में कुमार सुरेश,  मधु मिश्रा,  आशी चौहान, शुचि मिश्रा ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.पी.दुबे, सम कुलपति प्रो.पी.के.नायक वनमाली सृजनपीठ के अध्यक्ष सतीश जायसवाल, कला समीक्षक विनय उपाध्याय, सभी विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक, अधिकारी-कर्मचारी और विद्यार्थी उपस्थित थे।

लोक विज्ञान व आदिवासी समाज पर हो विज्ञान कविता- संतोष

इस अवसर पर विज्ञान संचारक और  सीवीआरयू के कुलाधिपति संतोष चौबे ने कहा कि विज्ञान की कविता विज्ञान की परिभाषा से शुरू होकर अन्य विषयों से अंतरक्रिया करते हुए,  जिसमें दर्शन, समाज, मनुष्य, ब्रह्मांड तक जाती है और वापस लौटकर मनुष्य तक आती है। इस तरह वह पूरा सर्किल बनाती है। विज्ञान का वृत्त है और समाज का भी वृत्त है। वो वृत्त जहां पर एक दूसरे को काटते हैं, वहां पर कविता संभव हो पाती है। चौबे ने कहा कि विज्ञान कविता का विषय क्या होना चाहिए, इस पर भी चर्चा की जरुरत है। मेरे विचार में यदि कोई विज्ञान के प्रतिपादित सिद्धांतों पर कविता लिखता है,  तो वह कविता नहीं होगी। हम सामाजिक विषयों पर या मनुष्य संबंधी विपय प्रेम, करुणा, दया, विषय पर कविता लिखते हैं, तो वह भी विज्ञान कविता नहीं होगी। कविता को विज्ञान के दायरे में आना है, तो दोनों को मिलाकर बात करनी होगी। मनुष्य केंद्र में होगा और विज्ञान भी केंद्र में होगा। विज्ञान और मनुष्य के बीच में जो अंतःक्रिया होगी  उससे जो कविता बनेगी वह विज्ञान कविता होगी। चौबे ने कहा कि अब जो लोक विज्ञान है जो आदिवासी समाज में विज्ञान है उसे भी कविताओं में आना चाहिए। इस अवसर पर श्री चौबे ने पर्यावरण पर अपनी कविता आदमी और सूरज सहित आईना, आकाश खाली है और कम्प्यूगाड़ी एवं अन्य कविताओं का पाठ किया।

नई-नई सी विज्ञानिका है-मानवर्धन

डीडी साइंस, दूरदर्शन दिल्ली से आए के कंटेंट एडिटर मानवर्धन कंठ ने कहा कि विज्ञानिका का उद्देश्य साहित्य को साइंस और साइंस टेक्नोलॉजी के साथ जोड़ने का है। उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोलकाता अंतर्राप्ट्रीय के आयोजन में की थी। इसके बाद दूसरा आयोजन रुड़की, तीसरा आयोजन भोपाल और देश का यह चौथा आयोजन डॉ. सी.वी.रामन विश्वविद्यालय में किया गया है। यह विज्ञान को साहित्य के साथ जोड़ने का अद्भुत आयोजन है। उन्होंने विज्ञानिका की मूल कविता का पाठ भी किया।  नया है अंबर,  नई है धारा…।  विज्ञान का है, यह मुशायरा है ….। नई है कविता नई है सरिता… नई-नई सी विज्ञानिका है।

कवि सम्मेलन में डॉ. सी वी रामन विश्वविद्यालय के कुलसचिव गौरव शुक्ला ने कहा कि यह देश का ज्ञानप्रद व अद्भुत आयोजन डॉ. सी. वी. रामन विश्वविद्यालय में हो रहा है। इस बात को लेकर हम गौरवान्वित हैं। विज्ञानिका की ऐसी पहल को मैं साधुवाद देता हूं।

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