रायपुर। पंद्रह दिन तक तड़पते रहने के बाद जशपुर के रीड़ की हड्डी टूटे और दोनों पावों में लकवाग्रस्त होने के बाद हाथी शावक की सोमवार को अत्यंत पीड़ादायक स्थिति में मौत हो गई। इस बीच वन विभाग ने मीडिया को हाथी शावक को देखने ना दिया, न ही उसके स्वास्थ्य की जानकारी सार्वजनिक की। अब सवाल उठ रहा है कि ऐसा क्या जादुई इलाज कराया जा रहा था कि उसे दया मृत्यु नहीं दी गई, जबकि इसका प्रावधान है।

एक्टिविस्ट नितिन सिंघवी ने कहा कि जब दोनों पांव में लकवा मार दिया था और जब वन विभाग को भी मालूम था कि वह जिंदा नहीं रह सकेगा तो उसका इलाज क्यों कराते रहे? क्यों इतनी दर्दनाक मृत्यु दी गई, क्या यह मानवता है? सात दिन पहले दया मृत्यु के लिए लिखे गए पत्र का संज्ञान क्यों नहीं लिया गया? विशेषज्ञ डॉक्टर क्या इलाज करते रहे? जब मालूम था वो जिन्दा नहीं रहेगा तो 12 बोतल सेलाइन प्रतिदिन क्यों चढाते रहे? पहले दिन क्यों नहीं बताया कि वह जिंदा नहीं रह सकेगा और उसे दया मृत्यु दी जानी चाहिए।

उल्लेखनीय है कि कुनकुरी रेंज में बीते 29-30 नवम्बर को गड्ढे में गिरने से 5 वर्षीय हाथी शावक की रीढ़ की हड्डी टूट गई। उसके पीछे के दोनों पैर लकवाग्रस्त हो गए। उसे कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए सिंघवी ने मुख्य वन्य जीव संरक्षक सह प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) को हाथी शावक को दया मृत्यु देने पत्र के लिए पत्र लिखा है।  सिंघवी ने कहा था कि वन विभाग  शावक के स्वास्थ्य की जानकारी छुपा रहा है। परन्तु जानकारी के अनुसार रीड़ की हड्डी टूटने से वह अब कभी ठीक नहीं हो सकेगा। हाथी शावक को घाव होने लग गए हैं, जिससे शावक के शरीर में अगले दो-तीन दिनों में ही कीड़े पैदा हो जायेंगे। इससे मूक प्राणी को असहनीय दर्द होगा। कीड़े पैदा होने के बाद धीरे धीरे सेप्टिसीमिया अर्थात रक्त विषाक्तता विकसित हो जाएगी। यह तेजी से फैलने वाला ब्लड इनफेक्शन होता है। इसके बाद शावक के शरीर के कई अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देंगे, जिससे हाथी शावक की मौत तड़प-तड़प कर होगी। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 11 में प्रावधान है कि यदि अनुसूची-1 में विनिर्दिष्ट कोई वन्यप्राणी, जैसे हाथी नि:शक्त या रोगी हो जो कि ठीक नहीं हो सकता, तो उसे दया मृत्यु दी जा सकती है। यह अधिकार मुख्य वन्य जीव संरक्षक को प्राप्त है। पीपल फॉर एनिमल रायपुर की संचालक कस्तूरी बल्लाल ने भी हाथी शावक को दया मृत्यु दिए जाने के सुझाव का समर्थन किया था। उन्होंने बताया कि जब यह निश्चित हो जाता है कि वन्यजीव को बचाया नहीं जा सकेगा और वह कष्ट पूर्ण तरीके से मरेगा तो पूरे विश्व में ऐसे जीवों के लिए यूथिनिसिया प्रोसीजर किया जाता है।

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