*धरातल पर बेअसर साबित हुआ था स्वीप अभियान

*तत्कालीन कलेक्टर पी. दयानंद के नाम जारी हुआ है सर्टिफिकेट

बिलासपुर। बीते विधानसभा चुनाव में लाखों रुपये खर्च कर मतदाताओं के बीच चलाये गये जागरूकता अभियान के लिए तत्कालीन जिला निर्वाचन अधिकारी पी. दयानंद को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की ओर से एक प्रमाण-पत्र सौंपा गया है। दिलचस्प यह है कि इस चुनाव में बिलासपुर जिले के अधिकांश सीटों में मतदान का प्रतिशत गिर गया था। बिलासपुर तो प्रदेश की सबसे कम मतदान वाली विधानसभा सीटों में शामिल रहा।

गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की ओर से तत्कालीन कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारी पी. दयानंद के नाम से एक प्रशस्ति पत्र दिया गया है। इसमें कहा गया है कि किसी एक चुनाव में मतदाताओं को वोट देने के लिए संकल्प दिलाने का सबसे बड़ा अभियान उन्होंने और जिला निर्वाचन कार्यालय ने चलाया जिसमें, 2 लाख 19 हजार 428 लोगों ने भाग लिया। इसे गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड इसे अधिकारिक रूप से आश्चर्यजनक उपलब्धि मानता है।

यह हैरान करता है कि जिस काम के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड का सर्टिफिकेट तत्कालीन कलेक्टर को मिला, उसका उसका असर धरातल पर दिखा ही नहीं। बिलासपुर विधानसभा सीट में सन् 2013 के मुकाबले सिर्फ 0.60 प्रतिशत मतदान बढ़ सका। बिलासपुर प्रदेश की उन निचली पांच सीटों में से एक है जहां सबसे कम वोट पड़े। बिलासपुर में मतदाता जागरूकता के लिए सर्वाधिक कार्यक्रम रखे गये, जहां जिले में सबसे कम 61.33 प्रतिशत वोट डाले गये। सन् 2013 के मुकाबले मस्तूरी में 5.8, बेलतरा में 1.54, बिल्हा में 3.6, तखतपुर में 4.15 तथा कोटा में 2.44 प्रतिशत मतदान कम हुआ। मरवाही में हर बार मतदान सर्वाधिक होता है, इस बार यहां भी 2.99 प्रतिशत कम मतदान हुआ था।

भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर पिछले कुछ चुनावों के दौरान मतदाता जागरूकता अभियान चलाया जाता है, जिसे स्वीप (Systematic voters’ education and electoral participation) नाम दिया गया है।

विधानसभा चुनाव से पहले हर रोज तस्वीरों के साथ स्वीप कार्यक्रम की उपलब्धियां सामने आई। राखी, गरबा, दीपावली जैसे त्यौहारों में, खेलकूद के मैदान में, कॉलेजों के छात्रों के बीच, मजदूरों, ई-रिक्शा चलाने वालों के बीच कार्यक्रम किये गए। दीपावली पर मिठाई के डिब्बों पर भी यह लिखवाया गया। एनसीसी, स्काउट गाइड्स को अभियान से जोड़ा गया। रतनपुर मंदिर, बैगाओं, कुम्हारों के साथ भी तस्वीरें सामने आईं। पर धरातल पर यह अभियान बेअसर रहा। दरअसल सीधे मतदाताओं तक संवाद करने का कोई आयोजन नहीं रखा गया था, जिन लोगों को जोड़ा गया उनको संभवतः अफसरों के नजदीक आने में ही दिलचस्पी थी, मतदाताओं को वोट देने के लिए निकालने में नहीं। स्वीप के कार्यक्रम भी शहर के सुविधाजनक स्थानों पर ज्यादा हुए, ग्रामीण मतदाताओं तक अभियान पहुंच ही नहीं पाया।

दरअसल, अधिकांश कार्यक्रम रस्मी हुए और जुटाई गई भीड़ के जरिये हुआ। मतदाताओं के साथ मैदानी अमले के अधिकारी-कर्मचारी ‘शत-प्रतिशत मतदान’ और ‘वोट तो देना ही है’ अभियान लेकर पहुंचे ही नहीं। मतदान के दिन कई बूथों में वीवीपैट मशीन की जानकारी नहीं होने के कारण मतदाता असमंजस में थे।

 

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