करोड़ों रुपये खर्च के बावजूद गौठान योजना फेल, गायों की न गांव में देखभाल न शहर में

करगीरोड(कोटा)। दूसरी जगह से 200 गायों को लाकर अज्ञात लोगों ने करगीरोड कोटा के समीप खजुरी नवागांव में पटक दिया। ये गाय चारा-पानी तलाशते हुए लहलहाती फसल चरने-रौंदने लगे। अचानक आई विपत्ति को देखकर गांव के लोगों ने इन्हें बाहर निकाला पर समस्या खड़ी हो गई कि गायों को कहां रखा जाये। आखिरकार तहसीलदार से अनुमति लेकर इन्हें जंगल की ओर छोड़ा जा रहा है।

धान की फसल इन दिनों पकने जा रही है। गायों को इन दिनों खुला नहीं छोड़ना है, इसके लिये रोका-छेका अभियान चलाया गया था। गौठान जगह-जगह तैयार किये गये हैं। इसके बावजूद गाय गांव-कस्बों और शहरों में बड़ी तादात में विचरण करते दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, गायों को गौठान में बंद रखने पर वहां बारिश व चारा-पानी नहीं मिलने की समस्या खड़ी हो रही है। जिन गायों का प्रजनन नहीं होना है उन्हें मवेशी मालिक खुद ही अपने घर नहीं रखते। ऐसे में जगह-जगह समस्या खड़ी हो रही है। ऐसे ही एक मामले में अचानक तखतपुर विकासखंड के ग्राम खजुरी नवागांव में 200 गायों को आसपास के किसी इलाके से लाकर छोड़ दिया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि जिन लोगों ने इतनी बड़ी संख्या में गायों को यहां लाकर छोड़ा है उनके पास गायों को पकड़ने की कोई न कोई सहूलियत रही हो होगी। यह किसी नगर-निकाय या पंचायत पदाधिकारियों का काम हो सकता है ताकि वे गायों की मौत के आरोप से बच जायें या फिर फसलों को बचा सकें।

इधर खजुरी नवागांव में इतने सारे गायों को देखकर ग्रामीण परेशान हो उठे। चारा-पानी ढूंढते हुए गायों ने खेतों की खड़ी फसल पर धावा बोल दिया। अब धान की फसलों में बीज आ चुके हैं और पकने के लिये तैयार हैं। इस बार बाढ़ और तेज बारिश के बीच बड़ी मुश्किल से ग्रामीण अपनी फसल बचा पाये हैं। ऐसी स्थिति में ग्रामीणों के दर्जनों एकड़ खेत की फसल खराब हो गई। गायों को किसी तरह से ग्रामीणों ने खेतों से निकाला लेकिन इसके बाद समस्या खड़ी हो गई कि इन गायों को कहां रखा जाये क्योंकि न तो इतने सारे गायों के लिये गांव में कोई गौठान है और न ही उनके लिये अलग से चारे पानी का गांव वाले प्रबंध कर सकते हैं। उनके पास इसके लिये कोई बजट भी नहीं है। इस बात की सूचना थाने हिर्री में दी गई। गांव वालों से मश्विरा कर सरपंच ने सकरी के अतिरिक्त तहसीलदार के समक्ष आवेदन लगाया कि वे गायों को जंगल की ओर छोड़ना चाहते हैं। अनुमति मिल जाने के बाद खजुरी-नवागांव के करीब आधा दर्जन ग्रामीण पैदल ही डंडे लेकर खदेड़ते ही गायों को करीब 70-75 किलोमीटर दूर अचानकमार की जंगल की ओर ले गये हैं। रास्ते के लिये इन गायों के पास चारे पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। जिन गांवों से ये गायें गुजर रही हैं वहां पहले से ही डंडे लेकर ग्रामीण रात-भर अपने खेतों की फसल बचाने में लगे हुए हैं। गायों की खेतों में घुसने की कोशिश करते ही उन्हे खदेड़ा जा रहा है। ग्रामीणों की आशंका है कि गायों की इतनी बड़ी संख्या शहरी क्षेत्र से ही लाकर छोड़ी गई है क्योंकि किसी एक गांव में एक साथ इतने पशु बाहर छोड़ने के लिये नहीं मिलते। जिन गायों को खदेड़कर जंगल ले जाया जा रहा है उनमें अनेक छोटे बछड़े भी हैं जो चल नहीं पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में वे बहुत मुश्किल भरा सफर कर रहे हैं। बिलासपुर, कोटा क्षेत्र में ही कई आदर्श गौठान बनाये गये जिनमें लाखों रुपये खर्च किये गये हैं लेकिन अब वे धीरे-धीरे खंडहर के रूप में तब्दील हो रहे हैं। यहां न तो गायों की रखवाली हो रही है न उनकी देखभाल का कोई प्रबंध है।

स्थानीय प्रशासन और निर्वाचित प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिये गायों को जंगल में छोड़ रहे हैं पर वहां या तो इनका शिकार हो जायेगा अथवा जीवित रहे तो जंगल को नुकसान पहुंचायेंगे। ये पालतू पशु जंगल में रहने के अभ्यस्त भी नहीं हैं। शासन की ओर से भी ऐसी कोई गाइडलाइन नहीं जारी की गई है कि गायों को जंगल में छोड़ा जाये।

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