‘विद्वान कुलपति का होना विश्वविद्यालय परिवार का सौभाग्य’

लोक कला महोत्सव- 2022 का आगाज

बिलासपुर। डॉ सी वी रामन विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय लोक कला महोत्सव का उद्घाटन राज्यपाल अनुसुइया उईके ने किया । उन्होंने इस मौके पर कहा कि डॉ सी वी रामन विश्वविद्यालय ऐसे आयोजनों के माध्यम से आदिवासी कला संस्कृति साहित्य परंपराओं को बड़ा मंच दे रहा है, जिससे इनकी  विश्व पटल पर पहचान बनेगी।

उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में केवल छत्तीसगढ़ की संस्कृति ऐसी है जिसकी महक हर किसी को बहुत पसंद आती है। छत्तीसगढ़ का संगीत मधुर और हृदय को छू लेने वाला है, जिससे हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाता है। यहां के यहां के आदिवासी बहुत भोले भाले हैं, छल कपट से हमेशा दूर रहते हैं। ऐसे समाज के उत्थान, उन्हें मंच प्रदान करने के लिए, उन्हें वैश्विक स्तर तक स्थापित करने के लिए डॉक्टर सी वी रामन विश्वविद्यालय यह कार्य कर रहा है, जो अनुकरणीय हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलाधिपति की प्रशंसा करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय परिवार सौभाग्यशाली है, जिनके पास ऐसे विद्वान कुलाधिपति हैं जिनका हर क्षेत्र में बराबर अधिकार है।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव गौरव शुक्ला ने कहा कि सही मायने में डॉ. सी वी रामन विश्वविद्यालय अभाव में रचनाशीलता की पराकाष्ठा का नाम है। बहुत कम समय में सुविधाओं के अभाव के बीच विश्वविद्यालय स्थापित किया गया था लेकिन रचनाशीलता व संघर्ष के कारण आज यह मध्यभारत का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। विश्व स्तरीय सुविधाओं के साथ शिक्षा देने के साथ ही छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति व साहित्य को भावी पीढ़ी तक वास्तविक रूप में हस्तांतरित करने का बीड़ा भी विश्वविद्यालय ने उठाया है। इसके लिए पिछले कई वर्षों से लोक कला महोत्सव कराया जाता है। हर साल इसका विस्तार हो रहा है, जिसमें वास्तविक और जमीनी कलाकार को हम मंच प्रदान करते हैं।

कुलपति प्रो. रवि प्रकाश दुबे ने कहा कि विश्वविद्यालय सदैव से ही स्थानीय भाषा, बोली, कला-संस्कृति और साहित्य को बढ़ावा देते आ रहा है। इसी क्रम में विश्वविद्यालय में छत्तीसगढ़ी विभाग की स्थापना भी की गई है। यह महोत्सव पूर्ण रूप से लोक कलाकार छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति साहित्य और परंपराओं को समर्पित है। कार्यक्रम के संयोजक डॉ अरविंद तिवारी ने आभार प्रकट करते हुए कहा विश्वविद्यालय अपने विधि द्वारा निर्धारित दायित्व को पूरा करते हुए, लोक कला संस्कृति तथा परंपरागत ज्ञान को संरक्षित संवर्धित करने के लिए संकल्पित है।

कार्यक्रम में उपस्थित विशिष्ट अतिथि सांसद अरुण साव ने कहा कि निश्चित रूप से ऐसे आदिवासियों को मंच  सम्मान मिलेगा और उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वह वैश्विक मंच पर अपने आप को सबके साथ महसूस कर पाएंगे। विशिष्ट अतिथि लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह ने कहा कि भारत गांवों में बसता है और यहां की कला संस्कृति ही जीवन हैं। यह बहुत ही प्रसन्नता का विषय है कि वर्ष 2019 से लगातार यहां रामन लोक कला महोत्सव आयोजित किया जाता है। जल जंगल और जमीन के असली मालिक आदिवासी ही हैं और ऐसे लोगों की कला संस्कृति और साहित्य परंपराओं को संरक्षित करने का महान कार्य विश्वविद्यालय कर रहा है।

समारोह में उपस्थित उपस्थित विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने कहा कि आदिवासी क्षेत्र में स्थापित प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय है, जो आदिवासी युवाओं को शिक्षा की मूलधारा से जोड़ने और उन्हें समाज के बराबर स्थापित करने के लिए कार्य कर रहा है। इसे प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्र संचालित करने वाला एकमात्र विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त है। यहां सामुदायिक रेडियो रामन केंद्र सरकार के सहयोग से स्थापित है। यह ग्रुप एशिया का सबसे बड़ा आयोजन विश्वरंग आयोजन भी करता है जिसमें 50 से अधिक देश शामिल होते हैं.। उन्होंने भारतीय भाषाओं, तकनीक सहित विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे विभिन्न क्षेत्रों के कार्यों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होने बताया कि नई शिक्षा नीति के अनुसार विश्वविद्यालय पूर्व से ही कार्य कर रहा है। विवि की मातृ संस्था आईसेक्ट ने कथादेश, कथा मध्य प्रदेश तथा कथा विश्व का प्रकाशन किया है। ऐसे कई साहित्यिक और शैक्षणिक गतिमान लगातार स्थापित करते जा रहा है।

कर्मा और ककसाड़ नृत्य ने मोहा मन

लोक कला उत्सव के पहले दिन कर्मा और ककसाड़ नृत्य ने लोगों का मन मोह लिया। पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे आदिवासी मांदर की थाप पर थिरकते नजर आए। सिद्धेश्वर करमा नृत्य मंडली पड़ीगांव तमनार रायगढ़ की करमा नृत्य मंडली ने शानदार प्रस्तुति दी। मांदर की धुन पर सभी का मन थिरकने लगा। इसके बाद बस्तर से आए गागरू राम के ककसाड नृत्य में बस्तर की झलक दिखाई दी। बस्तर के हर रंग को उन्होंने में दिखाया।

विश्वविद्यालय परिसर में गांव की तर्ज पर गुड़ी बनाई गई है जिसमें अंचल के जमीनी कलाकारों ने नंगाडा, बांस-गीत, गड़वा बाजा, जस गीत आदि की कलाकारों ने प्रस्तुति दी और अंचल के लोगों ने उसका आनंद लिया। महोत्सव में सरकारी गैर सरकारी निजी और विश्वविद्यालयों के साथ लगभग 50 से अधिक स्टाल लगाए गए। इस दौरान छत्तीसगढ़ी व्यंजन का स्टाल आकर्षण का केंद्र रहा। इसमें फरा, दाल बड़ा, साबूदाना बड़ा, गुलगुला, ठेठरी, खुरमी, मुर्रा के लड्डू, शक्कर पपड़ी,  गुड पापड़ी, धोसका, चौसेला, चना, मुर्रा, चीला आदि कई प्रकार के पारंपरिक व्यंजनों का लोगों ने आनंद लिया।

 

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