बिलासपुर । 15 साल से बिछुड़ चुकी पार्वती घर पहुंची तो मां उससे लिपटकर फूट-फूट कर रो पड़ी। पूरा गांव इस दृश्य को देखकर भावविह्ल हो उठा।

विधिक सहायता प्राधिकरण की छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल इकाई के बीच समन्वय से यह नामुमकिन दिखाई देने वाली सहायता हो सकी। तीन साल पहले पार्वती (33 वर्ष) विक्षिप्त अवस्था में कोरबा में मिली थी। उसे कोरबा पुलिस ने बिलासपुर स्थित राज्य मानसिक चिकित्सालय में भर्ती कराया और राज्य विधिक सहायता प्राधिकरण के बिलासपुर स्थित मुख्य कार्यालय में सूचित किया। पार्वती का इलाज चलता रहा। बीते जून में वह स्वस्थ हो गई। इसकी सूचना मिलने पर विधिक सहायता प्राधिकरण ने उसके पुनर्वास के लिये प्रयास शुरू किया। स्वस्थ होने के बाद पार्वती ने अपना पता बताया। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन, कार्यपालक अध्यक्ष जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और प्राधिकरण के अन्य विधि अधिकारियों ने इस मामले में खुद रूचि ली। पश्चिम बंगाल की राज्य प्राधिकरण इकाई ने पार्वती के घर का पता और उसके माता-पिता को ढूंढ लिया। दक्षिण 24 परगना जिले के दक्षिण शिबपुर में उनके पिता गोपाल पोराई और गुरुदासी पोराई को इसकी जानकारी दी। उनकी खुशी व आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने बताया कि 15 साल पहले पार्वती की मानसिक स्थिति बिगड़ गई थी। एक दिन अचानक वह कहां चली गई, पता नहीं चला। वे मानकर चल रहे थे कि  उन्हें उनकी बेटी कभी वापस नहीं मिलेगी। पश्चिम बंगाल इकाई ने कहा कि वह पार्वती को भेजने की व्यवस्था करें। राज्य विधिक प्राधिकरण के सदस्य सचिव सिद्धार्थ अग्रवाल शनिवार को स्वयं उन्हें हावड़ा मेल में छोड़ने गये। जीआरपी के महिला आरक्षकों के साथ उन्हें हावड़ा रवाना किया गया। हावड़ा से पश्चिम बंगाल राज्य प्राधिकरण ने उन्हें गांव ले जाकर माता-पिता के सुपुर्द कर दिया गया।

इस साल आठ लोगों का पुनर्वास  

मानसिक विक्षिप्त भटके लोगों के पुनर्वास और उनको परिवार के लोगों से मिलाने के काम में विधिक सहायता प्राधिकरण की ओर से सन् 2015 में पहली बार अभियान चलाया गया था। इसके बाद सन् 2017 में भी अभियान चला। बीते एक साल में ऐसे 8 लोगों को राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से उनके घरों में छोड़ा जा चुका है। विधिक सहायता अधिकारी शशांक शेखर दुबे ने बताया कि राज्य मानसिक चिकित्सालय से 36 नये और नाम उन्हें मिले हैं, जो स्वस्थ हो चुके हैं पर उनका पुनर्वास नहीं हो पाया है। इनमें से ज्यादातर लोग छत्तीसगढ़ के ही हैं। इन पर भी काम शुरू किया जायेगा। देखा जा रहा है कि कई स्वस्थ लोगों को सम्पत्ति में हिस्सा देने से बचने के लिये परिवार के लोग नहीं ले जा रहे हैं। कुछ मामलों में आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होना भी है। सभी प्रकरणों का निराकरण प्राधिकरण द्वारा किया जायेगा।

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