बिलासपुर। शराब जब्ती के एक मामले की सुनवाई के बाद निचली अदालत द्वारा प्रधान आरक्षक के खिलाफ की गई टिप्पणी और विभागीय जांच के आदेश को उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया है।
प्रधान आरक्षक चंदन सिंह ने कोरबा जिले के उरगा में पदस्थापना के दौरान अवैध शराब की जब्ती कर दो अभियुक्तों के खिलाफ धारा 34, 35 आबकारी अधिनियम के तहत कार्रवाई की थी। इन अभियुक्तों ने जिला न्यायालय कोरबा में जमानत आवेदन प्रस्तुत किया और बताया कि प्रधान आरक्षक को आबकारी अधिनियम के इन धाराओं के अंतर्गत शराब जब्ती का अधिकार नहीं है। जिला न्यायालय ने दोनों अभियुक्तों को जमानत प्रदान कर दी। साथ ही कहा कि प्रधान आरक्षक द्वारा की गई अवैधानिक कार्रवाई के कारण ही अभियुक्तों को जमानत मिली है इस कारण आदेश की प्रतिलिपि पुलिस अधीक्षक कोरबा और वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा जाए। उन्होंने पुलिस अधिकारियों को प्रधान आरक्षक के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई के लिए भी लिखा।
जिला न्यायालय के आदेश की वैधानिकता को प्रधान आरक्षक ने अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से चुनौती दी और कहा कि किसी प्रकार का कलंकित आदेश जो संबंधित के हितों के विपरीत है, पारित करने का अधिकार जिला न्यायालय को नहीं है। अधिवक्ता की ओर से उच्चतम न्यायालय के अनेक न्याय दृष्टांत पेश किए गए और कहा कि आदेश मनमाना, भेदभाव पूर्ण तथा दूषित है।
उच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुए माना कि अभियुक्तों को जमानत दी जा सकती है किंतु जिला न्यायाधीश द्वारा याचिकाकर्ता को सुने बिना उसके विरुद्ध विभागीय जांच का आदेश दिया जाना गलत है। जिला न्यायालय के आदेश को उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया।

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