कचरा प्रबंधन पर जंगल बुक क्लब की ओर से प्रेस क्लब में परिचर्चा

प्रेस क्लब में आज आयोजित एक परिचर्चा में पर्यावरण, मीडिया तथा सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने कहा कि कचरा प्रबंधन के लिए हमें प्लास्टिक की जगह दोना पत्तल की पुरानी आदत को फिर से अपनाना चाहिए। प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचें और हम अपने घरों में उत्पन्न होने वाले कचरे से खाद खुद ही बनाने की आदत डालें।

जंगल बुक क्लब की ओर से रविवार को प्रेस क्लब में कचरा प्रबंधन पर एक परिचर्चा रखी गई थी। परिचर्चा की शुरूआत करते हुए पर्यावरणविद् विवेक जोगलेकर ने कहा कि जब तक समस्या अपनी सीमाएं न लांघने लगे तब तक उसके समाधान के लिए हम कोई पहल नहीं करते। कचरे की समस्या को लेकर पहले ही महात्मा गांधी ने इशारा कर दिया था लेकिन तब हमने इसको गंभीरता से नहीं लिया। अब समस्या बढ़ गई और पानी सिर से ऊपर जाने लगा तब हमने इस समस्या के समाधान के लिए पहल की। अब जब सरकार ने स्वच्छता अभियान चलाना शुरू किया तब लोगों को ध्यान गया कि स्वच्छता की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। यदि कचरे की समस्या से निजात पाना है तो हमें फिर से दोना-पत्तल के युग में वापस जाना होगा। इससे पर्यावरण का विस्तार भी छिपा है। जब लोगों को दोना-पत्तल की आवश्यकता होगी तो लोग पेड़ लगाएंगे और बचाएंगे और कभी नष्ट नहीं होने वाले पॉलिथीन तथा प्लास्टिक से बचेंगे। उन्होंने कहा कि सरकारों ने प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह देकर जनता की जवाबदेही तो बताई पर उसका उत्पादन रोकने के लिए कोई कदम वह नहीं उठाती।

कचरे से कमाई हो रही-ठाकरे

प्रेस क्लब के सचिव विश्वेश ठाकरे ने कहा कि जहां भी मानव समाज में कचरे का उत्पन्न होना लाजमी है। कचरे से बचा नहीं जा सकता लेकिन इसका प्रबंधन करके समस्या का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने अम्बिकापुर जिला मुख्यालय में हो रहे काम का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां कचरे से मिली चीजें भी बेची जाती हैं। जिन चीजों को हम अनुपयोगी समझकर डस्टबिन में डाल देते हैं वहां उन चीजों के कई खरीददार खड़े हुए मिल जाते हैं। कचरे के टीले पर वहां उद्यान विकसित कर दिया गया है। यह आमदनी का भी बड़ा साधन बन सकता है और कचरे से घर में ही खाद तैयार कर बागवानी की जा सकती है।

उपभोग की प्रवृत्ति बदलें- डॉ.बोस

स्वयंसेवी डॉ. सुबीर बसु ने दुनिया भर में कचरे के निष्पादन के लिए किए जा रहे उपायों पर आंकड़ों के साथ प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हम अपने उपभोग की प्रवृत्ति में बदलाव लाकर कचरे की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। उन्होंने बताया कि तमाम कोशिशों के बाद भी प्लास्टिक का सिर्फ 70 फीसदी रि साइकिल हो रहा है, शेष अभी भी हमारे पर्यावरण को खराब कर रहा है।

निष्पादन घर में ही करें-अग्रवाल

समाजसेवी व साहित्यकार द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने अपनी पत्नी की सलाह पर घर में ही कचरे के निष्पादन के लिए गड्ढा बना रखा है। यह गड्ढा गांवों के पारम्परिक घुरुवा जैसा है। प्लास्टिक के अलावा कोई भी चीज हम कचरा लेने वाली गाड़ी को नहीं देते। ऐसा हर कोई कर सकता है। हमें प्लास्टिक से बचने के लिए दोना-पत्तल के इस्तेमाल पर वापस लौटना होगा।

प्रकृत्ति के साथ चलें-डॉ. मिश्रा

कवियित्री एवं शिक्षिका डॉ. सुनीता मिश्रा ने भी कचरे का खुद के घर में संग्रह कर खाद बनाने पर तथा प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हम प्रकृति के साथ चलें पकृति पर हमला नहीं करें। उन्होंने काव्य पंक्तियों के माध्यम से पर्यावरण के ह्रास पर अपनी बात रखी।

मेडिकल वायरस भी चिंताजनक-गौड़

शिक्षा से ही जुड़े अमित भूषण गौड़ ने कहा कि मानवनिर्मित किसी भी कचरे को शत-प्रतिशत रिसाइकिल नहीं किया जा सकता। प्लास्टिक के आने से कचरे की समस्या ज्यादा बढ़ी है। मेडिकल कचरा का वायरस सालों तक सुप्त अवस्था में रहता है। उसे नष्ट करना सबसे कठिन है। कचरे को तो खाद बनाकर डिस्पोज किया जा सकता है लेकिन प्लास्टिक या औद्योगिक कचरे को नष्ट करना बहुत कठिन काम है।  इस मौके पर साहित्यकार व चिंतक रामकुमार तिवारी ने भी अपने विचार रखे।

कार्यक्रम में शुरूआत में जंगल बुक के सम्पादक वीवी रमन किरण ने कचरा प्रबंधन पर चर्चा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी में प्रेस क्लब के अध्यक्ष तिलकराज सलूजा मुख्य अतिथि थे। संचालन वरिष्ठ पत्रकार सुनील शर्मा ने किया। इस अवसर पर गणमान्य नागरिक व पत्रकार मौजूद थे।

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