बिलासपुर। गरीब व पिछड़े परिवारों के जो बच्चे सरकार के प्रयास विद्यालयों में डॉक्टर इंजीनियर बनने का सपना लिये पढ़ाई और कोचिंग कर रहे हैं उनको खराब, बदबूदार खाना परोसा जा रहा है। सत्र शुरू हो चुका पर उनके पास किताबें भी नहीं है। जिले के कलेक्टर जब अचानक यहां के आवासीय विद्यालय में पहुंचे तो वहां की बदहाली देखकर दंग रह गये। उन्होंने अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई और हफ्ते भर के भीतर व्यवस्था दुरुस्त न करने पर कठोर कार्रवाई करने की चेतावनी दी।

प्रदेश के हर जिले में सरकारी स्कूलों के प्रतिभावान बच्चों के लिए प्रयास आवासीय विद्यालयों की स्थापना की गई है। छात्र-छात्रा के लिए अलग-अलग आवासीय विद्यालय हैं। कक्षा आठवीं के बाद इन्हें कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद ‘प्रयास’ में प्रवेश मिल पाता है। इन बच्चों को पीईटी, पीएमटी, नेट, नीट आदि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्राइवेट इंस्टीट्यूट्स के जरिये कोचिंग दी जाती है। वे बच्चे जो गरीब हैं और अच्छी पढ़ाई तथा कोचिंग का खर्च नहीं उठा पाते, उन्हें यहां अपना भविष्य संवारने का अवसर मिलता है।

शहर के जरहाभाठा में छात्राओं के लिए प्रयास विद्यालय हैं, जहां 125 मेधावी बच्चियां पढ़ाई कर रही हैं। कलेक्टर डॉ. संजय अलंग सेनेटरी पैड मशीन प्रदान करने के एक सामाजिक संस्था के आयोजन में शामिल होने के लिए शुक्रवार दोपहर में यहां पहुंचे। इस विद्यालय का संचालन करने वाले आदिवासी विकास विभाग के अधिकारियों को अंदाजा था कि कलेक्टर आएंगे और लौट जाएंगे। मगर, कार्यक्रम खत्म होने के बाद कलेक्टर ने सीधे छात्रावास की ओर रुख किया। उनके साथ के अधिकारी सकते में आ गये।

मुआयना करते हुए कलेक्टर किचन के भीतर घुस गये। वहां का तैयार खाना उन्होंने देखा। चावल को ऊंगलियों से मसल कर देखा, ठीक पका ही नहीं था। दाल, सब्जियां भी देखीं और तुरंत ढंक दिया। उन्होंने छात्राओं को बुलाने कहा। किचन में छात्राएं पहुंचीं। कलेक्टर  के सामने छात्राएं बिफर पड़ीं। बताया उन्हें कभी अच्छा खाना नहीं मिलता। सुबह नाश्ते में जो पोहा मिलता है, उसमें चूहे की लीद पड़ी रहती है। सब्जी के नाम पर रोज आलू, बैंगन। सड़ी-गली सब्जियां भी पका दी जाती हैं। कलेक्टर ने स्टाफ से पूछा-स्टोर रूम कहां है। स्टोर रूम का दरवाजा खुलते ही बदबू का झोंका आया। सड़ी गली सब्जियां बिखरी पड़ी थीं। कलेक्टर को छात्राओं ने बताया उन्हें केवल भात खिलाया जाता है, रोटी तो मिलती ही नहीं। उन्होंने पूछा मेनू चार्ट कहां है? दीवार पर एक चार्ट लटका हुआ था, सूची रिक्त थी। चार्ट को पलटकर देखा तो लिखा था सिर्फ, आलू पोहा…।

कलेक्टर यह सब देखकर तमतमा उठे। उन्होंने वहां मौजूद आदिवासी विकास विभाग की सहायक आयुक्त रेशमा खान और विद्यालय की प्रशासनिक अधिकारी जया सिंह से सवाल जवाब शुरू किया। उन्होंने पूछा कि इतनी अव्यवस्था क्यों फैली हैं? जवाब कुछ नहीं मिला, सिवाय इसके कि छात्रावास अधीक्षिका कुछ दिनों से छुट्टी पर हैं, इसलिये देखभाल में कमी हो गई है। रोटी क्यों नहीं दी जाती, जवाब मिला, मेनू में रोटी देने का प्रावधान ही नहीं। कलेक्टर सख्त हुए। उन्होंने छात्राओं की ओर मुखातिब होकर कहा कि आज से आप लोगों को अच्छा खाना मिलेगा और रोटी भी मिलेगी।

छात्राओं से कलेक्टर ने सवाल किया, पढ़ाई चल रही है? नवमीं, दसवीं की छात्राओं ने फिर हैरान करने वाली जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अब तक उन्हें किताबें ही नहीं मिलीं।  कलेक्टर ने सहायक आयुक्त से इसकी वजह पूछी। उन्होंने बताया कि यू डाइस नम्बर नहीं मिल पाने के कारण किताबें उपलब्ध नहीं हो सकी है। कलेक्टर फिर नाराज़ हुए, ऐसा है तो फिर मुझे जानकारी क्यों नहीं दी गई।

मालूम हो कि हर बार पाठ्य पुस्तक निगम हर साल जिलों में मांग के अनुरूप स्कूलों को किताबें छापकर भेज दिया करता था। इस बार से सभी स्कूलों में दर्ज संख्या को ऑनलाइन किया गया है। मुफ़्त किताबें दर्ज संख्या के अनुसार स्कूलों में भेजी जायेगी। www.bilaspurlive.com  की छानबीन से यह पता चला कि प्रदेश के किसी भी प्रयास विद्यालय को यू डाइस कोड नंबर नहीं दिया गया है। आदिवासी विकास विभाग, जिसके हाथ में प्रयास विद्यालयों के संचालन का जिम्मा है उसने शिक्षा विभाग में इसे स्कूल के तौर पर दर्ज नहीं कराया है। प्रयास विद्यालयों में कोचिंग को प्रमुखता है, पर हर छात्र साथ-साथ स्कूल की पढ़ाई भी करता है और उसे परीक्षा भी दिलानी होती है। इसके बावजूद स्कूल के रूप में पंजीकृत नहीं होने के कारण प्रयास को यू डाइस कोड नंबर नहीं मिला, यानि किताबें भी नहीं मिल पाईं।

बहरहाल, कलेक्टर ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को फोन करके किताबों की व्यवस्था करने कहा है। शिक्षा विभाग के कई अधिकारी, कर्मचारी आज दिन भर अतिरिक्त किताबों को इधर उधर की स्कूलों से मंगाने में लगे रहे। कल तक इन छात्राओं को किताबें मिल जाने की उम्मीद है।

छात्राओं ने बताया कि वे जिन जगहों से आई हैं वहां खेलने-कूदने की व्यवस्था थीं, पर यहां ऐसा कुछ नहीं है। कलेक्टर ने फिलहाल इनडोर गेम्स की व्यवस्था करने का निर्देश भी दिया है।

इन सभी व्यवस्थाओं में सुधार के लिए कलेक्टर ने एक सप्ताह का समय आदिवासी विकास विभाग की सहायक आयुक्त रेशमा खान और प्रयास की प्रशासनिक अधिकारी जया सिंह को दिया है। उन्होंने आगाह किया है कि व्यवस्था नहीं सुधरने पर वे कड़ी कार्रवाई करेंगे।

 

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