-प्राण चड्ढा

लगता है वन विभाग के अफसर टाइग्रेस की उस दहाड़ को भूल गए हैं, जब दो माह पूर्व अचानकमार टाइगर रिजर्व से लगे टिंगीपुर एरिया में मृत टाइगर शावक के मामले की गुत्थी सुलझाने वे जंगल में थे और उनको उल्टे पांव भागना पड़ा था। यदि नहीं भूले होते तो एसटीपीएफ गठन कर एटीआर में कैमरा पकड़ा कर टाइगर और वन्यजीवों की फोटो लेने शायद नहीं भेजते।

टाइगर बचाने एटीपीएफ का गठन किया गया है। उन्हें अन्य दायित्व भी सौंपे गए हैं। वे अल्पवेतन भोगी या दैनिक वेतनभोगी भी हो सकते हैं। यानि बीमा भी नहीं होगा। पहले इनको मोबाइल से फोटो खीचने का काम दिया गया था। पर फोटो ठीक नहीं आई तो अब कैमरा दिया गया है।

अचानकमार का टाइगर कान्हा या बांधवगढ़ के टाइगर के समान आदमी को रोज देखने का अभ्यस्त नहीं है। यह पूरी तरह जंगली है। या ये आदमी देख भागेगा अथवा करीब रहा तो हमला करेगा।

पूर्व में जब शिकारी टाइगर के शिकार करने उसका हांका करता था, तब भी टाइगर हांकने वाले ग्रामीणों की तरफ पलट जाता और जो राह में आता, वह जान गंवाता अथवा घायल होता। जबकि हांका में 60 से 100 लोग गाजे-बाजे के साथ शामिल होते।

बेहतर होता इस दस्ते के साथ साथ मार्ग दर्शन के लिए विभाग के कुछ अफ़सर भी जंगल में जाते लेकिन यह शायद कभी नहीं होगा। वन्य प्राणियों के रहवास में दखलंदाजी की ऐसी इजाजत नहीं मिलनी चाहिए। क्या इससे टाइगर की संख्या में बढ़ोतरी होगी? उत्तर- नहीं होगा।

टाइगर यदि बढ़ाने है, तो सींग वाले वन्यजीवों को बढ़ाना होगा। इसके लिए पार्क मैनेजमेंट की आवश्यकता होगी। गर्मी सामने है, एटीआर में जल प्रबन्धन बहुत जरूरी है। घास के मैदान जरूरी हैं। एटीआर में बसे 19 गांवों का विस्थापन जरूरी है जिस तरफ कछुआ की गति से भी काम नहीं हो रहा।

3 मई 2020 फेसबुक में मेरी पोस्ट थी-टाइगर रिजर्व में टाइगर कैसे बढ़ें, सुझाव’-

अचानकमार टाइगर रिजर्व में टाइगर बढ़ाने के लिए वन मंत्री मो. अकबर को वन विभाग के अधिकारियों ने सुझाव दिया है कि कोर एरिया में बसे 19 गांवों को हटा दिया जाए तो टाइगर बढ़ सकते हैं। 1975 में जब इस सेंचुरी की स्थापना हुई थी तब इसमें 25 गांव थे। अब तक मात्र 6 गांव पार्क से बमुश्किल बाहर किये जा सके। अब सोचा जा सकता है कि शेष 19 गांव के विस्थापन में और कितने दशक लगेंगे? तब तक क्या किया जाए?

टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क में सौ के करीब टाइगर्स का विश्व प्रसिद्ध आवास है। इस नेशनल पार्क के सीने से पक्की सड़क गुजरती है। कोर एरिया में गांव हैं और सरहदी आबादी के इलाके में पार्क के टाइगर, भालू पहुंच जाते हैं।

जब बांधवगढ़ में टाइगर बढ़ रहे हैं तो अचानकमार में क्यों नहीं? जाहिर है समस्या का हल कहीं और है। बीमारी की नब्ज नहीं पकड़ी जा रही।

मप्र के बांधवगढ़, कान्हा, और महाराष्ट्र के ताडोबा नेशनल पार्क पर एक नजर डालें। वहां का जल प्रबंधन देखें और अचानकमार का, बड़ा अंतर है। वहां बड़े पैमाने में सौर ऊर्जा पंप लगे हैं और मोटी धार चलती रहती है। होलोन और बंजर नदी कान्हा में सदानीरा हैं। बांधवगढ़ में भी नदी और वेटलैंड की कमी नहीं। तोडोबा में तो बड़े बड़े दरिया हैं, पंप हैं। तुलना करें तो अचानकमार की मनियारी नदी गर्मी से पहले सूख जाती है। कुछ सौर पंप हैं, पर धार कमजोर। वन्यजीवों के लिए पानी की कमी है, जबकि टाइगर को पीने और नहाने के लिए काफी पानी की जरूरत होती है। वह गर्मी में घंटों पानी में रहता है। ऐसी दशा में कोई और वन्य जीव वहां फटकता नहीं, दूर खड़ा रहता है। उनके लिए दूर अलग पानी की व्यवस्था करनी चाहिये। मगर अचानकमार में फंड की कमी का सभी रोना रोते मिलते हैं।

टाइगर को खुराक के लिए चीतल, साम्भर की जरूरत है। चीतल आबादी के करीब रहते हैं, जहां टाइगर फटकता भी नहीं। पानी रहा तो सींग और खुर वाले वाले जीव बढेंगे तो पंजे वालों का पेट भरेगा। वर्तमान सरहद से मजूबत टाइगर द्वारा हंकाल दिया कमजोर टाइगर या शावकों को बचाने के लिए कान्हा की टाइग्रेस इधर प्रवास पर आती हैं। यह जंगल का कॉरिडोर बना है। पर बाद में शिकार की कमी की वजह से लौट जाते हैं।

पार्क प्रबन्धन की कमजोरी हर सफारी में देखी जा सकती है। गांव के मवेशी टाइगर पाइंट साटा पानी, सरई पानी में चरते दिखते हैं। इसी तरह चीतल और गाय अचानकमार से छपरवा तक साथ चरते दिख जाते हैं। यह बीमारी सदा बनी रही। अफसर, सरकार, मंत्री बदलते रहे।

गांव का आदमी जंगल में कुल्हाड़ी, तीर कमान, भरमारी लिए ना दिखें और गांव की घेराबंदी कर दी जाए। पालतू कुत्ते भी गांव में नहीं रहें। ये शिकार में मददगार होते हैं।

खुर वाले वन्यजीवों के लिए रिक्त जमीन पर सिंचाई कर घास के मैदान बढ़ाए जाएं। इससे पंजे वाले शिकारी जीव स्वमेव बढ़ जाएंगे। कान्हा में ऐसे मैदानों में चीतल चरते दिखते हैं। वन विभाग में अधिकारियों की कमी नहीं कमी, अनुभव और दक्षता व सोच की कमी है।

इंडियन गौर की संख्या इतनी अधिक नहीं होती जितनी अचानकमार में है। इसका कारण है कि इन विशाल जीवों का शिकार करने के लिये टाइगर कम हैं। अचानकमार में टाइगर बढ़ाने के लिए पहली जरूरत है,टाइगर को पानी, खुराक, सुरक्षा और जंगल में मानव की दखलन्दाजी कम हो। जंगल में फायर प्रोटेक्शन वर्क की बेहद कमी है और अधिकांश अधिकारी जंगल में रात नहीं रुकते। सबके शहर में मकान हैं।

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