प्रवासी मजदूर की 9 साल की बेटी की सिम्स से घर ले जाने के बाद जान गई, गांव में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया, पोस्टमार्टम भी नहीं हो सका

बिलासपुर। कोरोना संक्रमित 9 साल की बालिका की मौत के मामले में स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि उसकी स्थिति ब्लड कैंसर के कारण बहुत गंभीर थी। इसे कोरोना के चलते हुए मौत नहीं कहा जा सकता।

प्रदेश में कोरोना संक्रमण से होने वाली यह दूसरी मौत है। इसके पहले 29 मई को बिरगांव, रायपुर के 34 वर्षीय एक फैक्ट्री कर्मचारी की मौत हो चुकी है। मस्तूरी की जिस बालिका की मौत का मामला आज सामने आया है दरअसल उसकी मौत तीन दिन पहले हो चुकी थी। बालिका अपने मजदूर माता-पिता के सात इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश से यहां लौटी थी। बालिका की तबियत खराब होने के कारण उसे सीधे सिम्स लाया गया था। सिम्स प्रबंधन का कहना है कि पिता ने मेडिकल चेकअप के दौरान जानकारी दी कि उसकी बेटी को इलाहाबाद में खून चढ़ाया गया था। सिम्स आने के बाद भी उसने उल्टियां की। सिम्स के कोरोना ओपीडी में बेटी और उनके माता-पिता के स्वाब का सैम्पल उसी दिन ले लिया गया था।

सिम्स की मीडिया प्रभारी डॉ. आरती पांडेय के अनुसार उसका पिता बच्ची को यह कहकर अपने साथ ले गया कि उसका इलाज किसी अच्छे अस्पताल मे करायेगा। उनके जाने के बाद 1 जून को कोरोना सैम्पल रिपोर्ट रायपुर से आई जिसमें बालिका को पॉजिटिव बताया गया। इसके बाद बालिका की खोजबीन शुरू हुई तो पता चला कि उसे सिम्स से ले जाने के बाद किसी निजी अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया बल्कि मजदूर के गांव डंगनिया में ही अगले दिन उसकी मौत हो गई। इसके बाद उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया।

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. प्रमोद महाजन का कहना है कि लड़की कोरोना संक्रमित थी लेकिन उसकी तबियत पहले से ही खून की कमी के कारण बहुत खराब थी इसलिये यह नहीं कहा जा सकता कि कोरोना के चलते ही यह मौत हुई है।

सीएमएचओ से सीधे सवाल किया गया कि इस मौत को कोरोना से हुई मौत माना जायेगा या नहीं, इस पर उन्होंने कहा कि पूरी मेडिकल रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को रायपुर भेज दी गई है वहीं से तय होगा।

यहां यह उल्लेखनीय है कि 10 वर्ष से कम बच्चों और 65 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों को कोरोना के संक्रमण से बचने की खास तौर पर हिदायत दी गई है। यदि उन्हें पहले से कोई और बीमारी हो तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। मस्तूरी की बालिका की मौत ऐसा ही मामला दिखाई देता है।

गंभीर बीमार प्रवासी मजदूरों के लिए कोई सुविधा नहीं

ब्लड कैंसर पीड़ित, जैसा कि डॉक्टरों ने बताया है बालिका की मौत से यह सवाल खड़ा हो गया है कि यदि कोई प्रवासी मजदूर संदिग्ध कोरोना पीड़ित है तो उसका इलाज कहां होगा? गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों को बिलासपुर के संभागीय कोविड-19 अस्पताल में भर्ती न कर उन्हें एम्स रायपुर रेफर किया जाता है लेकिन इस बालिका के केस में उसके कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि बाद में हुई। सिम्स के कोविड 19 आईपीडी में बेहद गंभीर मरीजों के इलाज के लिए अलग कोई सुविधा नहीं है।

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