इंडियन मेडिकल काउन्सिल और शासकीय चिकित्सक संघ की दलील खारिज

बिलासपुर, 8 फरवरी। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के शासनकाल में लागू किये गये छत्तीसगढ़ चिकित्सा मंडल एक्ट को हाईकोर्ट ने सही ठहराया है। करीब 20 साल चले इस मुकदमे में कोर्ट ने इंडियन मेडिकल एसोसियेशन की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा है कि स्वास्थ्य के सम्बन्ध में नीतिगत निर्णय लेना राज्य सरकार के अधिकार में है।

गांवों में चिकित्सकों की कमी को देखते हुए प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के शासन काल में छत्तीसगढ़ चिकित्सा मंडल का गठन किया था। इसके तीन साल का एक पाठ्यक्रम स्वीकृत कर सहायक-चिकित्सक की डिग्री देने के लिए प्रदेश भर में कई मार्डन एंड हॉलिस्टिक मेडिकल प्रैक्टिशनर का पाठ्यक्रम शुरू किया गया था। इससे करीब दो हजार प्रैक्टिशन भी तैयार हुए थे, जिन्हें शासकीय सेवा में लिया गया था।

इसके खिलाफ मेडिकल काउन्सिल ऑफ  इंडिया की ओर से आपत्ति जताई गई थी। उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले को केन्द्रीय मेडिकल पाठ्यक्रम 1956 का उल्लंघन बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके बाद सन् 2012 में प्रदेश के शासकीय चिकित्सक संघ ने 741 सहायक चिकित्सा अधिकारियों के पद को विलोपित करने की मांग की थी।

हाईकोर्ट ने इस मामले में शुक्रवार को फैसला देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ चिकित्सा मंडल संवैधानिक है और जो लोग सहायक चिकित्सक के रूप में काम कर रहे हैं उनकी नियुक्ति भी वैध है। राज्य सरकार इनके पद और कैडर का निर्धारण कर सकती है। स्वास्थ्य सम्बन्धी नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार भी सरकार को है। इन चिकित्सकों के स्वतंत्र पैक्टिस पर रोक रहेगी पर प्राथमिक चिकित्सा और गंभीर मरीजों का तात्कालिक उपचार कर सकेंगे। ये चिकित्सा सहायक, चिकित्सा अधिकारियों के अधीन कार्य कर सकेंगे।

हाईकोर्ट के इस फैसले का दूरगामी असर होगा और छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सेवाओं को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए सरकार को अधिक अवसर मिलेगा। इसके अलावा हाईकोर्ट द्वारा लगाये गये स्थगन के हट जाने से पाठ्यक्रम पूरा कर चुके नये सहायक चिकित्सकों की नियुक्ति हो सकेगी। हालांकि हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ताओं को अपील करने का अधिकार भी है।

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