बिलासपुर। कल हम नहीं होंगे पर हमारी स्मृतियां बरसों-बरस समाज में बनी रह सकती है। हम चाहें तो अपने शरीर को त्याग देने के बाद भी अपनी पहचान कायम रख सकते हैं। देहदान को महादान माना जाता है। यह पर्व अनुष्ठानों में किये जाने वाले दान से भी ज्यादा महत्व रखता है और व्यक्ति को दुनिया की नज़रों में महान बना देता है। ऐसा ही अनुकरणीय कार्य किया है राजेन्द्रनगर के आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. मनोहर टेकचंदानी की पत्नी स्वर्गीय राज टेकचंदानी ने।

हैंन्ड्स ग्रुप सामाजिक संस्था लोगों में नेत्रदान व देहदान के लिए जागरूकता लाने का लगातार प्रयास करती है। सिंधी समाज के चिकित्सक टेकचंदानी दम्पती ने इसी क्रम में अपने संकल्प को पूरा करते हुए समाज के सामने मिसाल पैदा की है। 70 वर्षीय राज टेकचंदानी फेफड़े की बीमारी से जूझ रही थीं। रायपुर व मुम्बई में लम्बे इलाज के बाद आज गुरुवार को उनका निधन हो गया। पूर्व में ही पति पत्नी दोनों ने नेत्रदान व देहदान का संकल्प ले लिया था। आज उनके पुत्रों श्याम एवं मदन टेकवानी ने अपनी मां की इच्छा पूरी करते हुए सिम्स में उनका देहदान किया। रायपुर मेडिकल कॉलेज में उनका नेत्रदान कराया गया। दोनों कार्यों को उन्होंने हैन्ड्स ग्रुप के सदस्यों के सहयोग से पूरा किया।

हैंड्सग्रुप की ओर से यह 11वां देहदान, 235वां नेत्रदान  

नेत्रदान और देहदान को लेकर लोगों में कई भ्रांतियां हैं। हैंड्स ग्रुप ने लोगों में जागरूकता लाने के लिए पिछले कई वर्षों से अभियान जारी रखा है। हैंड्स ग्रुप की कोशिशों से हुआ यह 11वां देहदान है। इसके साथ ही यह संगठन 235वां नेत्रदान है। हैंड्स ग्रुप ने कहा कि इसी तरह से चिकित्सकों को स्वयं आगे आना होगा ताकि देहदान व नेत्रदान की भ्रांतियों को दूर किया जा सके।

ज्ञात हो कि मेडिकल कॉलेज में शरीर विज्ञान की पढ़ाई में मदद के लिए देहदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। देहदान में मिले हुए शरीर का मेडिकल छात्र परीक्षण कर शरीर की आंतरिक संरचना को समझ पाते हैं साथ ही इलाज में भी उन्हें मदद मिलती है। बेहतर इलाज के लिए नई दवाओं का प्रयोग भी पार्थिव शरीर पर ही किया जाता है। ऑपरेशन में भी पार्थिव शरीर का उपयोग किया जाता है। एक देह में 10 विद्यार्थियों को परीक्षण करना चाहिए किन्तु देह की कमी के कारण 30-30 विद्यार्थियों को यह परीक्षण एक देह पर ही करना पड़ता है।

 

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