लाभ उठाने वालों में 14 साल की बच्ची से लेकर 92 वर्ष के पुरुष शामिल

बिलासपुर। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के केन्द्रीय चिकित्सालय में 25 मार्च को 21वें नि:शुल्क पेस मेकर जांच शिविर रखा गया। इस शिविर में 137 मरीजों के नि:शुल्क पेस मेकर जांच की गई। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों से जरूरतमंद लोगों ने इस शिविर में भाग लिया था। रेलवे के मरीजों की संख्या 84 थी और 53 अन्य थे। सबसे कम उम्र की मरीज 14 साल की एक बच्ची थी और सबसे बड़ा 92 साल का एक पुरुष था।

इस नि:शुल्क पेस मेकर जांच शिविर में पहुंचे महाप्रबंधक आलोक कुमार ने राज्य के विभिन्न हिस्सों और राज्य के बाहर से आए शिविर के मरीजों के साथ बातचीत की। उन्होंने ऐसे शिविर के आयोजकों की सराहना करते हुए कहा कि बिलासपुर जैसे दूरस्थ स्थान पर इतने वर्षों से वे मानव जाति की अमूल्य सेवा कर रहे हैं। आलोक कुमार के साथ केंद्रीय अस्पताल, एसईसीआर के चिकित्सा निदेशक डॉ.एस.ए.नजमी, डॉ.एस.धन, डॉ.एस.एल.मैथ्यूज और सचिव हिमांशु जैन भी थे ।

पेसमेकर जीवन रक्षक उपकरण होते हैं जो उन रोगियों में छाती के सामने की त्वचा के नीचे लगाए जाते हैं जो कॉलर बोन के नीचे दोनों ओर होते हैं, जिन्हें घातक ताल गड़बड़ी का पता चला है। लेकिन एक बार उपकरण प्रत्यारोपित हो जाने के बाद मरीज आमतौर पर भीड़ में खो जाते हैं, इसका पता तब चलता है जब उनके उपकरण विफल हो जाते हैं, खराब हो जाते हैं या बैटरी जीवन समाप्त हो जाता है। यह वास्तव में आज अत्यधिक उन्नत चिकित्सा विज्ञान के युग में नोट करने के लिए बहुत ही दयनीय है। दिशा-निर्देशों के अनुसार हर साल औसतन एक एकल कक्ष पेसमेकर का मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है, जबकि प्रत्येक छठे महीने में एक दोहरे कक्ष के रूप में।

रेलवे के केंद्रीय अस्पताल बिलासपुर के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. सीके दास ने हर छठे महीने बिलासपुर और आसपास के सभी हृदय रोगियों के लिए यह पेसमेकर जांच शिविर नि: शुल्क शुरू किया था। फरवरी 2011 से यह निरंतर चला। इस बार कोविड-19 की महामारी की स्थिति के कारण शिविर नियमित रूप से आयोजित नहीं किया जा सका। पिछला शिविर 14 फरवरी 2020 को आयोजित किया गया था।

रेलवे कर्मचारियों के साथ-साथ अन्य रोगियों को यह सुविधा पूरी तरह से मुफ्त प्रदान की गई । ऐसे प्रत्येक शिविर में डिवाइस में विभिन्न दोषों का पता लगाकर और उन्हें ठीक करके कम से कम 3 से 4 रोगियों की जान बचाई गई है। भारत में अग्रणी पेसमेकर कंपनियों ने अपने वरिष्ठ इंजीनियरों को उन्नत उपकरणों के साथ प्रतिनियुक्त करके ऐसे कीमती और सफल शिविरों के पीछे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे सेंट जूड, मेडट्रॉनिक, बोस्टन साइंटिफिक और बायोट्रॉनिक हैं। यह एक छत के नीचे समन्वित कुशल तकनीकी सेवा है। यह भारत में पहली बार डॉ. दास द्वारा रिपोर्ट की गई है। डॉ. दास ने सभी भारतीय हृदय रोग विशेषज्ञों से इस मुद्दे पर विचार करने और बिलासपुर जैसे छोटे शहरों में इस तरह के शिविरों के समन्वय और आयोजन के लिए अपने दैनिक व्यस्त कार्यक्रम में कुछ समय निर्धारित करने की विनम्र अपील की है।

शिविर में डॉ. सीके दास, डॉ. आरएल भांजा, डॉ मारुति त्रिपाठी, डॉ मनमीत टोप्नो, डॉ अभिषेक सुख, डॉ रंजीत थवैत, डॉ प्रकाश जायसवाल, डॉ आशीष पुरोहित, डॉ. दीपक देवांगन और एएनओ सुनीता सोनवणे के साथ नर्सिंग स्टाफ ई.इनेस, मीना, नामलिन, मनीषा, जीवन लाल, अमिता, शशि, उमाशंकर, भरतू, बीना, कौशल्या, रीतू और विल्सन की टीम लगी रही। अजीत कुमार जंघेल और घनश्याम का भी योगदान था। 4 अंतरराष्ट्रीय पेसमेकर कंपनियों के इंजीनियरों ने भी धर्मार्थ सेवा दी। इनमें सुधीर दत्ता (सेंट जूड), श्री मोहित पचौरी (मेडट्रॉनिक), राहुल चोपडे (बोस्टन) और लुकी शर्मा (बायोट्रॉनिक्स) शामिल थे।

 

 

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