मौत के लिए जिम्मेदार पीसीसीएफ और डीएफओ को निलंबित करने की मांग

रायपुर।  कांकेर वन मंडल में कुछ दिनों पूर्व तेंदुए की शिकार महिला की मौत के बाद कांकेर के डीएफओ अरविंद पीएम ने 12 सितंबर को कांकेर वन मंडल के पलेवा और भैंसाकट्टी में पिंजरा लगाकर एक नर और एक मादा तेंदुआ को पकड़कर जंगल सफारी रायपुर ले आए। मादा तो वापस भेज दी गई परन्तु नर की 16 सितम्बर को मौत हो गई। मृत्यु सेप्तिसिमिया से होना बताया गया है। उसके पिछले पांव में घाव पाया गया जबकि जब उसे रायपुर लाया गया था तब उसे पूरी तरह स्वस्थ घोषित किया गया था।

रायपुर लाने के बाद जांच में पता लगा कि मादा शावक मात्र ढाई साल की है तथा उसका वजन सिर्फ 25 किलो है, इसलिए वह किसी मनुष्य को नहीं मार सकती। तब आनन-फानन में लौटती गाड़ी से मादा को वापस ले गए। कहां छोड़ा किसी को नहीं बताया। भारत सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार तेंदुए को वापस जंगल में छोड़ते वक्त रेडियो कॉलर लगाया जाना है। रेडियो कॉलर तो छोड़ें चिप भी नहीं लगाई गई।

रायपुर के नितिन सिंघवी ने प्रश्न उठाया है कि क्या डीएफओ को कांकेर में यह नहीं दिखा कि मादा तेंदुआ कम उम्र की है?  क्या उन्हें इतना भी अनुभव नहीं है?  डीएफओ की नासमझी से मादा तेंदुआ को अकारण ही अवसाद दिया गया। पुष्ट जानकारी के अनुसार जंगल सफारी प्रबंधन ने मादा की कम उम्र को देखते हुए उसे लेने से मना कर दिया।

सिंघवी ने बताया कि उन्होंने सुबह 8 बजे व्हाट्सएप करके पीसीसीएफ से कहा था कि फोटो देखकर ऐसा लग रहा है कि दोनों तेंदुए इतने बड़े नहीं हैं कि किसी मनुष्य का शिकार कर सके, इसलिए इन्हें तुरंत जंगल में छोड़ दें। गाइडलाइन के अनुसार इन्हें अपने आवासी जंगल में छोड़ा जाना है क्योंकि यह बहुत ज्यादा घरेलू प्रवृत्ति के होते हैं।

नर तेंदुए को जब रायपुर लाया गया तो वह स्वस्थ था। उसका वजन 40 किलो और उम्र 4 वर्ष पाई गई। उसे रायपुर में ऑब्जर्वेशन के लिए इसलिए रोक लिया गया कि कहीं उसी ने तो महिला को नहीं मारा?

चर्चा अनुसार वन विभाग यह इंतजार कर रहा था कि कांकेर क्षेत्र में कोई नई घटना हो तो वह जान लेंगे कि क्या संदिग्ध तेंदुआ यही है।

इधर डीएफओ अरविंद पीएम ने बयान दिया कि पकड़े गए तेंदुए के पगमार्क की जांच की जाएगी।  पता लगेगा कि हमला करने वाला तेंदुआ यही है या नहीं। इस पर सिंघवी ने बताया कि जिस दिन महिला की मौत हुई तब बाद में घटनास्थल पर बहुत पानी गिरा और कई लोगों की आवाजाही से उस तेंदुए का नियमानुसार पगमार्क इकट्ठा नहीं किया जा सका। अगर पग मार्क इकट्ठा किया गया है तो क्या नतीजा आया, खुलासा किया जाना चाहिए। पांच दिनों में तो पगमार्क मैच करने का नतीजा आ जाना था।

सिंघवी ने बताया कि 15 तारीख को उन्होंने दिन के एक बजे पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ  को फिर व्हाट्सएप भेजकर बताया कि तेंदुए की अत्यंत अनुकूलनीय प्रवृति के कारण विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि उसको बिना विलंब छोड़ देना चाहिए। देर करने से इनमें मानव का भय कम हो जाता है। वे छोड़े जाने के बाद आसान भोजन की तलाश में मुर्गी इत्यादि खाने के लिए बाड़ी में घुसते हैं।

जिस जंगल से दोनों को पकड़ा गया है वहां 40 से 50 तेंदुए का मूवमेंट है। पता लगा है कि वन विभाग यह इंतजार कर रहा है कि कांकेर क्षेत्र में कोई नई घटना हो तो वह पहचान लेंगे की हमलावर तेंदुआ कौन सा है जबकि बिना विशेषज्ञता के प्रॉब्लमैटिक तेंदुए को चिन्हित करना मुश्किल काम है। पकड़े गए तेंदुए को भी प्रॉब्लममैटिक घोषित नहीं किया जा सकता क्योंकि पकड़े जाने के बाद यह आक्रामकता और तनाव में होगा। अगर कोई नई घटना नहीं घटती है तब भी विभाग पकड़े गए तेंदुए को प्रॉब्लमैटिक तेंदुआ या नरभक्षी तेंदुआ घोषित नहीं कर सकता फिर इसे पकड़ कर जंगल सफारी में क्यों रखा गया है?

प्रदेश के जाने-माने वन्यजीव विशेषज्ञ तथा छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ बोर्ड के पूर्व सदस्य प्राण चड्ढा ने मांग की है कि पूरे मामले की जांच कराई जाये और पता लगाया जाए कि मौत कैसे हुई? किसकी लापरवाही से हुई और दोषियों को सजा दें ताकि फिर कभी जंगल से पकड़ कर लाए गए जानवर की मृत्यु ना हो।

सिंघवी ने मांग की कि पूरे घटनाक्रम में पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ और डीएफओ दोषी है इसलिए दोनों को निलंबित कर के जांच होनी चाहिए. पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ ने बिना किसी कारण के तेंदुए को बंधक बनाकर रखा, उन्हें नैतिक आधार पर नौकरी से इस्तीफा दे देना चाहिए।

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