संचालक की ओर से जिला शिक्षा अधिकारियों को भेजे गये पत्र में अभिभावकों की नहीं सिर्फ स्कूल प्रबंधकों की चिंता

बिलासपुर (राजेश अग्रवाल)। कोरोना संकट के दौरान आर्थिक तंगी के शिकार अभिभावक हाईकोर्ट के उस फैसले से निराश हैं जिसमें स्कूल प्रबंधकों को ट्यूशन फीस वसूल करने का अधिकार दे दिया गया है। वे इसके खिलाफ अपील पर जाने की तैयारी कर रहे हैं। पर, इसी आदेश में कोर्ट द्वारा स्कूल प्रबंधकों पर स्कूल स्टाफ और विद्यार्थियों के प्रति बड़ी जवाबदेही भी तय गई है। आदेश के बाद लोक शिक्षण संचालनालय की ओर से सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को एक पत्र भेजा गया है पर इसमें अभिभावक नहीं सिर्फ निजी स्कूलों का हित सधे, इस पर ध्यान दिया गया है।

बिलासपुर के 22 स्कूलों के प्रबंधकों के संगठन प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसियेशन सोसायटी के रिट पिटिशन पर 27 जुलाई को फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने उन्हें ट्यूशन फीस वसूल करने की छूट दे दी है। आदेश के मुताबिक इस सत्र का बकाया फीस भी उन्हें वसूल करने का अधिकार दिया गया है। निजी स्कूल जैसे इस तरह के किसी आदेश के पारित होने की प्रतीक्षा में ही थे अगले ही दिन 28 जुलाई से अभिभावकों को बकाया राशि जमा करने की नोटिस भेजना शुरू कर दिया है। इसके लिये अंतिम तिथि भी बताई जा रही है।

दूसरी ओर लोक शिक्षण संचालनालय ने शुक्रवार 31 जुलाई को एक आदेश सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को जारी किया है, जिसमें हाईकोर्ट के आदेश की कंडिका 30 से 33 तक का उल्लेख करते हुए इसका पालन सुनिश्चित करने कहा है।

हाईकोर्ट ने कहा है कि वह स्थिति से वाकिफ है कि केवल ट्यूशन फीस एकत्र करने की अनुमति देना स्कूल संचालकों के लिये पर्याप्त नहीं है किन्तु जैसी वैश्विक परिस्थिति बन गई है सभी को कुछ न कुछ समझौता करना पड़ेगा।

लेकिन इसके अलावा कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि जिन छात्रों से फीस ली जा रही है उन्हें शिक्षा का ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया जाये। प्रोजेक्ट वर्क, एसाइनमेंट में किसी तरह की बाधा न डालें और पढ़ाई के मोर्चे पर किसी तरह का समझौता न करें बल्कि उसमें और सुधार लाने का प्रयास करें।

यह भी कहा है कि कोई भी विद्यार्थी वंचित न हो और उनकी पढ़ाई निर्बाध जारी रह सके, इसके लिये तंत्र विकसित करें। यह भी सुनिश्चित करें कि वे कोरोना संक्रमण के बाद स्थिति सामान्य होते तक ट्यूशन फीस में किसी तरह की वृद्धि या संशोधन नहीं करें।

कोर्ट ने यह भी कहा है कि जब ट्यूशन फीस लेने की अनुमति दी जा रही है तो फिर उन्हें शिक्षक व अन्य कर्मचारियों का वेतन कम करने या उन्हें निकालने का अधिकार नहीं रहेगा। लॉकडाउन से पहले उन्हें जो वेतन मिल रहा था वही जारी रखना होगा।

हाईकोर्ट का यह आदेश बिलासपुर जिले के उन 22 शिक्षण संस्थानों के पक्ष में है जिन्होंने याचिका दायर की थी। पूरे राज्य में आदेश लागू होगा, हाईकोर्ट के आदेश में अलग से इसका उल्लेख नहीं है। पर राज्य सरकार ने मान लिया है कि यह पूरे आदेश में लागू हो गया।

लोक शिक्षण संचालनालय के पत्र में सिर्फ यह उल्लेख किया गया है कि राज्य सरकार ने निजी स्कूलों को पालकों से फीस नहीं लेने का निर्देश जारी किया गया था जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। संचालक ने अपनी ओर से कोई जोखिम नहीं उठाते हुए शिक्षा अधिकारियों को आदेश के कंडिका क्रमांक 30 से लेकर 33 तक का हिस्सा ही ज्यों का त्यों भेज दिया है।

अलग से कोई निर्देश नहीं दिया गया है कि निजी स्कूल फीस वसूलने के बाद भी हाईकोर्ट के निर्देश के मुताबिक बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई निर्बाध रूप से चले इसकी निगरानी किस तरह की जानी है। जो बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं उन तक हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक शिक्षण सामग्री निजी स्कूल पहुंचा रहे हैं या नहीं?

शिक्षा संचालक के इस परिपत्र में आदेश के 28वें बिन्दु का कोई उल्लेख ही नहीं है जिसमें कहा गया है कि ऐसे माता-पिता जो तीव्र आर्थिक संकट से गुजरने के कारण फीस देने में सक्षम नहीं हैं उनसे फीस न लें। शिक्षा विभाग को आदेश के इस हिस्से पर निगरानी करने के लिये भी कोई निर्देश नहीं है। हालांकि कोर्ट ने फीस माफ करने के सम्बन्ध में मापदंड, आवेदन की जांच, मूल्यांकन और सत्यापन निजी स्कूलों को ही बनाने के लिये कहा है। निजी स्कूल ऐसे आवेदनों पर सहानुभूति विचार करेंगे या नहीं इस पर सवाल बना रहेगा।

आदेश में टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की नौकरियों को कोरोना काल में सुरक्षित की गई है। न केवल नौकरियों से नहीं हटाया जाना है बल्कि लॉकडाउन के पहले जितना मिल रहा था उतना वेतन भी देना है। यह एक अच्छी बात हो गई पर कोर्ट के इस आदेश का पालन निजी स्कूल अक्षरशः पालन करेंगे, इस पर प्रश्नचिन्ह बना रहेगा। निजी स्कूलों के शिक्षक व स्टाफ को मिलने वाला वेतन प्रबंधकों द्वारा दबाया जाता है। नौकरियां खोने के डर से पीड़ित कर्मचारी कभी आवाज़ नहीं उठाता।

शिक्षा विभाग की ओर से जारी पत्र पूरी तरह सिर्फ फीस को लेकर दिये गये हाईकोर्ट के आदेश पर केन्द्रित है, जबकि अभिभावकों की विषम आर्थिक स्थिति और बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिये दिये गये निर्देश को लेकर जिलों के शिक्षा अधिकारियों को कोई निर्देश नहीं दिया गया है।

दूसरी ओर सर्व स्कूल अभिभावक एवं विद्यार्थी कल्याण संघ का कहना है कि फीस के लिये स्कूल प्रबंधकों द्वारा भेजी जा रही नोटिस में हाईकोर्ट के आदेश का हवाला दिया जा रहा है। हाईकोर्ट में जब निजी स्कूल संचालकों द्वारा याचिका दायर की गई तो पालकों ने भी हस्तक्षेप याचिका लगाई थी। अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल का कहना है कि वे अपना पक्ष कोर्ट में नहीं रख पाये। सिंगल बेंच के आदेश से अभिभावक संतुष्ट नहीं है। इसमें कोरोना के चलते कारोबारियों और निजी संस्थानों में काम करने वालों के समक्ष आये संकट पर ध्यान नहीं दिया गया। वे इस आदेश के खिलाफ अपील पर जायेंगे।

 

 

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