बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर किसान व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट ने इस पर नोटिस जारी करते हुए केन्द्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा है।

ज्ञात हो कि कोविड-19 के दौरान राहत पैकेज की घोषणा करते हुए केन्द्र सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिये इस अध्यादेश को जारी किया था। इसमें कहा गया था कि किसान इसके बाद अब अपनी उपज को देश के किसी भी हिस्से में बेच सकेंगे जिससे उन्हें अपने उत्पादन की अच्छी कीमत मिले।

छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस की छत्तीसगढ़ इकाई द्वारा अधिवक्ता अमन सक्सेना की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि यह अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद 246, 23 तथा 14 का उल्लंघन है। यह अध्यादेश कृषि उत्पादों को विनियमित करने के राज्य सरकार के अधिनियम को निरस्त करता है। इस अध्यादेश से राज्य की कृषि उपज मंडियों के लिये बनाये गये नियमों विशेषकर कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 के कानून को दबाने का प्रयास है। संविधान के अनुच्छेद 246 (3) के अनुसार कृषि पर कानून बनाने की शक्ति राज्य सरकार के पास है। दूसरी तरफ यह अध्यादेश कृषि सुधारों की आड़ में एक केन्द्रीयकृत बाजार बनाने के लिये है जो संघवाद की तरफ ले जा रहा है। इस कानून को राष्ट्रपति के माध्यम से किसी भी सदन में चर्चा किये लागू कर दिया गया है।

याचिका में कहा गया है कि यह अध्यादेश गरीब, असंगठित, सीमान्त और छोटे किसानों की रक्षा करने में विफल साबित होगा जो संविधान के अनुच्छेद 23 में उन्हें दिये गये अधिकार का उल्लंघन है। राज्य के कानूनों में इन्हें जो ठोस सुरक्षा पहले से दी गई है इस अध्यादेश से वह समाप्त हो जायेगी। यह अध्यादेश मंडियों के अधिकार को खत्म करने का प्रयास है, जो देश भर में एपीएमसी कानून ( कृषि उपज मंडी कानून) के अंतर्गत हजारों की संख्या में छोटे किसानों के हित संरक्षण के लिये स्थापित किये गये हैं। नया अध्यादेश व्यापारियों को अनेक तरीकों से किसानों के शोषण का अवसर देगा। व्यापारियों को बाहर व्यापार करने की अनुमति देने से सौदेबाजी की हैसियत नहीं रखने वाले कम उपज वाले सीमांत और छोटे किसानों का अहित होगा। अध्यादेश में बेईमान व्यापारियों से इन किसानों को बचाने का कोई उपाय नहीं किया गया है।

मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस पी.आर.रामचंद्र मेनन और जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू की बेंच ने की।

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