बिलासपुर। झीरम घाटी हमले में घायल हुए शिवनारायण द्विवेदी ने जांच आयोग के सामने दिये गए सनसनीखेज बयान में तत्कालीन विधायक व वर्तमान में प्रदेश के आबकारी मंत्री की कवासी लखमा पर सवाल उठाया और कहा कि नक्सलियों ने उनके कहने पर फायरिंग बंद कर दी थी और लखमा को घटनास्थल से भागने में मदद की गई।

कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के दौरान बस्तर की झीरम घाटी में 25 मई 2013 को नक्सलियों ने भीषण हमला किया था, जिसमें कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल, उदय मुदलियार सहित 30 नेताओं की हत्या कर दी गई थी। इसकी न्यायिक जांच जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा के एक सदस्यीय आयोग में चल रही है। आज आयोग के समक्ष झीरम घाटी हमले में घायल हुए शिवनारायण द्विवेदी, कांग्रेस संचार विभाग के प्रदेश प्रमुख शैलेष नितिन त्रिवेदी और भिलाई के महापौर, विधायक देवेन्द्र यादव का बयान दर्ज किया गया।

द्विवेदी ने झीरम घाटी हमले की घटना के कुछ माह बाद भाजपा की सदस्यता ले ली थी। गुरुवार को आयोग के समक्ष अपना बयान दर्ज कराते हुए द्विवेदी ने कहा कि जब हमारे काफिले को नक्सलियों ने घेरा तो उन्होंने लोगों ने लगातार फायरिंग शुरू की। इस दौरान उन्होंने नाम पूछ-पूछकर सबको अपने साथ ले जाने लगे। इनमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके पुत्र दिनेश पटेल, उनका ड्राइवर तथा बस्तर के नेता महेन्द्र कर्मा शामिल थे। इसी दौरान फायरिंग से बचने के लिए कवासी लखमा जमीन पर लेट गये थे। द्विवेदी ने बताया कि वे भी जमीन पर लेट गये थे। लखमा ने जमीन उठकर दोनों हाथ ऊपर किये और अपना नाम बताते हुए कहा कि मैं कवासी लखमा। फायरिंग मत करो। इसके बाद कुछ देर के लिए फायरिंग रुक गई। कवासी लखमा को भी नक्सली अपने साथ ले गये लेकिन कुछ ही देर में लौटे और घटनास्थल पर रखी गई एक बाइक में बैठकर सीधे अस्पताल पहुंच गये। द्विवेदी ने सवाल उठाया कि लखमा के कहने पर फायरिंग क्यों बंद हो गई? क्या नक्सली लखमा को पहचानते थे? उन्होंने लखमा को अपने साथ ले जाने के कुछ देर बाद क्यों छोड़ दिया? उन्हें लगता है कि नक्सलियों से लखमा की मिलीभगत रही होगी, वरना लखमा ने जैसे ही अपना परिचय दिया उसे वहां से कैसे जाने दे दिया गया। इस पहलू पर जांच होनी चाहिए।

 

 

 

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