बिलासपुर। झीरम घाटी जांच आयोग के समक्ष कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख शैलेष नितिन त्रिवेदी ने कहा कि नक्सली हमले की यह घटना एक राजनीतिक षड़यंत्र थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री और करीबियों के तीन माह का कॉल डिटेल निकलवा लिया जाये तो पूरा सच छत्तीसगढ़ की जनता के सामने आ जायेगा। परिवर्तन यात्रा में आवश्यकता से बेहद कम और तत्कालीन मुख्यमंत्री के लिये आवश्यकता से अधिक बल उपलब्ध कराना स्पष्ट दिखाता है कि कांग्रेस नेताओं की सुरक्षा में जान बूझकर लापरवाही बरती गई। आयोग के समक्ष भिलाई के महापौर व विधायक देवेन्द्र यादव ने भी अपना बयान दर्ज कराया।

त्रिवेदी ने अपने बयान के साथ अख़बारों व अन्य मीडिया के क्लिप पेन ड्राइव में आयोग के समक्ष पेश किया। त्रिवेदी ने आठ बिन्दुओं पर अपनी बात की। उन्होंने कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री को आवश्यकता से अधिक सुरक्षा मुहैया कराई गई और परिवर्तन यात्रा में सुरक्षा के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाई गई। विधायक देवेन्द्र यादव ने बताया कि सुरक्षा मांगे जाने पर थाने में कहा गया कि ऊपर से आदेश नहीं है और थाने में बल भी नहीं है, जबकि थाने में पर्याप्त बल था।

त्रिवेदी ने झीरम घाटी हमले को इन तर्कों के आधार पर साजिश बतायाः-

  1. पुलिस को सूचना दी गई थी कि 23 मई को परिवर्तन यात्रा जगदलपुर से सुकमा जायेगी, इसके बाद भी जेड प्लस सुरक्षा वाले नेताओं के होने के बावजूद पर्याप्त बल नहीं लगाया गया।
  2. महेन्द्र कर्मा नक्सलियों की हिट लिस्ट में थे। उनकी साजिश की योजना पीसीओसी ने बनाई थी, जिसकी गुप्त सूचना 10 अप्रैल 2013 को इंटिलिजेंस के पास थी। यह सूचना दंतेवाड़ा और बीजापुर एसपी को तो भेजी गई लेकिन बस्तर और सुकमा के एसपी को नहीं भेजी गई।
  3. सलवा जुडुम के बाद से महेन्द्र कर्मा नक्सलियों के हिट लिस्ट में थे। 8 नवंबर 2012 को उन पर नक्सली हमला हुआ था। उन्हें केवल जेड प्लस सुरक्षा दी गई, जेड प्लस या एनएसजी कमांडो की सुरक्षा नही दी गई।
  4. छत्तीसगढ़ की जनता को आज तक पता नहीं है कि 21 अप्रैल 2012 को अपह्रत सुकमा कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन को छुड़ाने के लिए नक्सलियों के साथ सरकार ने क्या डील की। कहीं कोई गुप्त समझौता सरकार ने नक्सलियों से नहीं किया?
  5. 29 जुलाई 2011 को गरियाबंद में किसान सभा से लौटते समय नंदकुमार पटेल सहित कांग्रेस नेताओं पर नक्सली हमला हुआ था, उनकी गाड़ियो में ब्लास्ट किया गया। पटेल मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री रह चुके थे, इसके बावजूद उन्हें भी जेड प्लस सुरक्षा नहीं दी गई।
  6. परिवर्तन यात्रा के पहले आईपीएस मुकेश गुप्ता और आर के विज ने पटेल के घर आकर कहा था कि हम आपको पूरी सुरक्षा देंगे, फिर उनको सुरक्षा प्रदान क्यों नही की गई?
  7. जून 2012 को घोर नक्सली इलाके सारकेगुड़ा में नरसंहार के दौरान सभी बड़े पुलिस अधिकारी नेताओं के साथ गये थे, पर परिवर्तन यात्रा जब झीरम से गुजरी तो उनकी यात्रा की जानकारी होने के बावजूद पुलिस का कोई भी बड़ा अधिकारी साथ नहीं था।
  8. ताड़मेटला, मदनबाड़ा, रानीबोदली जैसी बहुत सी नक्सली वारदातें इस घटना से पहले हो चुकी थीं। गरियाबंद में पटेल के काफिले में चल रही गाड़ी को आईईडी ब्लास्ट करके उड़ाया गया था। इस सब घटनाओं के बावजूद झीरम घाटी हमले के दौरान रोड ओपनिंग टीम साथ नहीं चल रही थी।
  9. विकास यात्रा में एक हजार से ज्यादा जवान थे पर परिवर्तन यात्रा के 25 किलोमीटर रास्ते में केवल 125 जवान तैनात किये गये। जहां कार्यक्रम था वहां भी सिर्फ 29 जवान तैनात किये गये।
  10. यूनिफाइड कमांड जिसके प्रमुख तत्कालीन मुख्यमंत्री थे, में 40 हजार जवान थे। कलेक्टर और एसपी विकास यात्रा के पहले तो सुरक्षा व्यवस्था की जानकारी प्रेस-कांफ्रेंस करके देते रहे पर परिवर्तन यात्रा की कोई समीक्षा नहीं की गई।
  11. 16 मई 2013 को इन 40 हजार सशस्त्र बल में से 20 से 25 हजार जवान बस्तर में सुरक्षा में लगे थे पर परिवर्तन यात्रा में केवल 125 जवान दिये गये।
  12. घटना शाम को 4.15 बजे हुई पर दरभा और तोंगपाल पुलिस थाने से तुरंत न तो टुकड़ियों को भेजा गया न ही घायल नेताओं को चिकित्सा सुविधा समय पर मिली। यदि ऐसा किया जाता तो कई की जान बच सकती थी।
  13. नक्सलियों ने बार-बार पूछा, नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल कौन हैं? हत्या के बाद उनका लैपटॉप और मोबाइल ले जाना सिर्फ नक्सली हमला प्रतीत नहीं होता। ये दोनों नेता जमीनी स्तर पर कांग्रेस को मजबूत कर रहे थे, जिससे छत्तीसगढ़ सरकार में बैठे कुछ लोगों को डर था कि ये लोग फिर सत्ता में आ गये तो हमारे बहुत से भ्रष्टाचार को उजागर कर देंगे। झीरम जाने से पहले दिनेश पटेल ने कुछ बड़े नेताओं से कहा था कि लौटकर वे प्रेस कांफ्रेंस करेंगे जिससे सत्ता पर बैठे लोगों को इस्तीफा देना पड़ जायेगा।
  14. छत्तीसगढ़ में सरकार बस्तर के कारण ही बनती है। पूर्व मुख्यमंत्री और उनके करीबियों का तीन महीने का फोन और मोबाइल काल डिटेल निकाल कर जांच की जाये तो बहुत से राज बाहर आ जायेंगे, जिससे झीरम घाटी का सच छत्तीसगढ़ की जनता के सामने आ जायेगा।
  15. भाजपा के पूर्व नेत वीरेन्द्र पांडे ने एक आईपीएस के हवाले से कहा था कि झीरम घाटी की डील 60 करोड़ रुपये में हुई है। दिल्ली के अख़बारों ने इसे प्रमुखता से छापा था पर आज तक इसकी जांच नहीं की गई।
  16. तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि झीरम घाटी बहुत संवेदनशील है। वहां 100 जवान हों तो तब भी अटैक हो सकता है। तब फिर क्या नक्सलियों का टारगेट बनाने के लिए बड़े-बड़े नेताओं को केवल 29 जवानों के भरोसे छोड़ दिया गया था? दो दिन पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की विकास यात्रा में एक हजार जवान, पूरा प्रशासनिक अमला कलेक्टर और एसपी सहित मौजूद था, पर परिवर्तन यात्रा में एसपी का नहीं होना शंका को जन्म देता है।
  17. झीरम घाटी में बहुत से कांग्रेस नेता घायल हुए, कई को गोली लगी, जगह-जगह चोटें आईं, ये सब चश्मदीद गवाह थे पर उनका बयान नहीं लिया गया।

झीरम घाटी जांच आयोग की सुनवाई शुक्रवार को भी जारी रहेगी।

 

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