बिलासपुर। अतिरिक्त दवा नेत्रों की सूक्ष्म नलिकाओं द्वारा शरीर के अन्य अंगों पर अनावश्यक दुष्प्रभाव डालती हैं। इसके बार-बार या लगातार प्रयोग से भी दवाओं का शरीर के अन्य हिस्सों एवं अंगों पर दुष्प्रभाव देखने को मिलता है। इस समस्या के निराकरण के लिए औषधि के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न शोध हो रहे हैं। इसी विषय पर गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग में भी शोध किया जा रहा है।

गुरू घासीदास विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) की प्राकृतिक संसाधन अध्ययनशाला के अंतर्गत फार्मेसी विभाग में नेत्र संबंधी बीमारियों के उपचार के लिए आदर्श ड्रग डिलीवरी सिस्टम विकसित किया जा रहा है। इस पर शोध छात्रा कु. निवेदिता गौतम शोध कर रही हैं। उनके शोध निर्देशक डॉ. के. केशवन, सहायक प्राध्यापक फार्मेसी हैं।

उक्त शोध का विषय ‘‘नॉवेल ड्रग डिलीवरी सिस्टम फॉर इफेक्टिव ट्रीटमेंट ऑफ आक्यूलर डिसआर्डर्स” है। मानव शरीर में नेत्र एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील अंग है, जिसकी संरचना जटिल होती है। नेत्र संबंधी विकारों के उपचार के लिए ज्यादातर ड्रॉप के रूप में दवाइयों का उपयोग किया जाता है। आई ड्राप का उपयोग सरल एवं सहज होता है। परन्तु आई ड्राप से डाली गई दवा नेत्रों को पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाती है पर इसके विकल्प के रूप में दी जाने वाली अतिरिक्त दवाएं भी नुकसान करती हैं।

साथ ही उक्त शोध कार्य के अंतर्गत ग्लूकोमा एवं यूवाइटिस जैसे नेत्र विकारों के यथा संभव उच्च स्तर पर रोकथाम एवं निवारण के लिए नवीन एवं आदर्श ड्रग डिलीवरी सिस्टम विकसित किया जा रहा है। नवनिर्मित सिस्टम की विशेषता यह है कि यह सामान्य आई ड्रॉप की तुलना में यह सिस्टम नेत्रों में दवा की उपलब्धता ज्यादा लम्बे समय तक बनाए रखने में कारगर है। इससे बार-बार दवा लेने की परेशानी से निजात पाया जा सकता है। साथ ही कम इस्तेमाल की वजह से दवा से होने वाले दुष्प्रभावों में भी कमी आ जाती है। इस तरह के विशेष सिस्टम से एक ही फार्मुलेशन में दो विभिन्न दवाओं की सही मात्रा आंखों तक पहुंचाई जा सकती है।

 

 

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