बिलासपुर। आधारशिला विद्या मंदिर ने बच्चों में 21वीं सदी में कौशल विकास को केंद्र में रख कर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया। इसका उद्देश्य बच्चों में अवलोकन, तर्क-क्षमता, सृजनात्मक चिंतन एवं अभिव्यक्ति का विकास करना है। इस कार्यक्रम के लिए विशेष वर्कशीट एवं प्रोजेक्ट तैयार किये गए हैं जो उनके अकादमिक विषयों से भी जुड़ते हैं। प्रत्येक दिन की प्रक्रिया में तीन प्रकार के अभ्यास – तार्किक क्षमता, अभिव्यक्ति एवं थिमेटिक लर्निंग शामिल हैं।

इस कार्यक्रम को एक कार्यशाला के प्रारूप में आयोजित किया गया ताकि बच्चों को सहज तरीके से अपनी बात कहने एवं दूसरे से सीखने का अवसर मिले। शिक्षण प्रक्रिया के दौरान बच्चों से सरल उदाहरणों, कहानी, खेल, वीडियो एवं वर्कशीट के माध्यम से सोचने एवं अभिव्यक्ति की प्रक्रिया पर संवाद किया गया।

थीमेटिक लर्निंग सेक्शन में बच्चों ने ‘नेचर लर्निंग’ एवं ‘बायोमिमिक्री’ से संबंधित वीडियो देखा। उन्होंने एक रीडिंग मटेरियल एवं वर्कशीट के माध्यम से मानव के इन्द्रियों से सूचना एकत्र करने की क्षमता पर निरीक्षण एवं चर्चा की। साथ ही अन्य जीवों के बारे में भी जाना। इससे उन्हें यह भी समझ आया कि हमारे जाने एवं सोचने की सीमायें क्या हैं। किस प्रकार हम विभिन्न मशीनों की सहयता से इन सीमाओं के परे जा सके हैं। इस सेशन के अंत में उन्होंने वर्कशीट के माध्यम से अपने विचारों को लिखा।

इस कार्यशाला के दौरान बच्चों को शुरुआत में एक कहानी सुनाई गई जिससे उन्हें ‘बोरडम’ के कारण तलाशने थे और साथ ही अपने-अपने तरीके से यह तय करना था कि अपना दिन रुचिकर एवं सार्थक कैसे रख सकते हैं। सभी बच्चों ने निष्कर्ष बनाया कि बोरडम से लड़ने एवं टाइम पास करने की आवश्यकता नहीं बल्कि कुछ सार्थक एवं रूचिकर करने की आवश्यकता है। अगर हम इसके प्रति सचेत रहें तो न्यूनतम बोर होकर अपने दिन बिता सकते हैं।

इसके बाद उन्होंने ‘मंकी बिज़नस इलुज़न’ नामक वीडियो देखा और पाया कि किस प्रकार हमारा ध्यान आवश्यक सूचनाओं से हट जाता है। इस विडियो से संबंधित सिद्धांतों को दैनिक जीवन के उदाहरणों से जोड़ने के लिए चर्चा एवं वर्कशीट की मदद से प्रशिक्षक ने अभ्यास कराया। इससे उन्होंने ध्यान देने की प्रक्रिया को विस्तार से समझा। साथ ही अवलोकन के दौरान आवश्यक सूचनाओं को एकत्र करने के गुर भी सीखे। इसके बाद उन्हें अनुमान लगाने से संबंधित खेल करवाए गए।

कार्यशाला के आखिरी चरण में उन्होंने ‘पब्लिक स्पीकिंग’ के गुर भी सीखे। उन्होंने पाया कि किसी भी भाषण से पहले श्रोताओं की रूचि, आवश्यकता एवं उपलब्ध जानकारी का किस प्रकार उपयोग करते हैं। साथ ही उपयुक्त बॉडी लैंग्वेज, संवाद शैली आदि पर चर्चा हुई।

प्रशिक्षक रॉबिन पुष्प ने बताया कि आगे की कक्षाओं में सृजनात्मक चिंतन एवं भाषण कला में प्रवीणता हासिल करने के लिए उन्हें नियमित रूप से वीडियो, वर्कशीट एवं अभ्यास उपलब्ध कराया जाएगा। साथ ही इसमें अंग्रेजी में अपनी बात को सृजनात्मक तरीके से लिखने के अभ्यास भी शामिल हैं। उनके वर्कशीट के माध्यम से हम निरंतर यह समझने का प्रयास करेंगे की उन्होंने किन अवधारणाओं  को समझा है एवं उनकी अभिव्यकि में किस प्रकार के बदलाव आ रहे हैं। कार्यशाला में कक्षा छठवीं से 8 वीं के बच्चों ने पूरे उत्साह के साथ भाग लिया।

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