बिलासपुर। फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने नौ साल की बीमार बच्ची के साथ चाकू दिखाकर दुष्कर्म करने वाले आरोपी को उसके शेष पूरे जीवनकाल तक कारावास की सजा सुनाई है।

बच्ची सरकंडा थाना क्षेत्र की है। वह अपने माता-पिता और दादी के साथ रहती है। करीब दो साल पहले 4 दिसंबर 2019 को बच्ची के माता-पिता मजदूरी करने गए हुए थे। बच्ची भी अपनी दादी के साथ साथ मजदूरी करने जाती थी। घटना वाले दिन बच्ची की तबियत ख़राब थी इसलिए उसकी दादी ने पास में ही रहने वाली उसकी नानी के घर बच्ची को छोड़ दिया और काम पर चली गई। बच्ची घर में सो रही थी और उसकी नानी घर के दूसरे काम-काज में व्यस्त थी। इसी दौरान उसी इलाके में रहने वाला भोला साहू चोरी-छिपे घर में घुस आया और उसने चाकू दिखाकर बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। दादी के घर आने पर बच्ची ने उसे अपने साथ हुई वारदात की जानकारी दी। दादी ने सरकंडा थाना में इसकी रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज कर भोला सिंह को गिरफ्तार कर लिया।

अपर सत्र न्यायाधीश तथा प्रथम फ़ास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (पाक्सो) के न्यायाधीश विवेक कुमार तिवारी की अदालत में यह फैसला सुनाया गया। न्यायाधीश ने 3 अगस्त 2021 को फैसला सुनाया और अभियुक्त भोला साहू को दोषी करार दिया।

न्यायाधीश विवेक कुमार तिवारी ने अपने फैसले में कहा है कि यौन हिंसा अमानवीय कार्य होने के अतिरिक्त महिला की गोपनीयता और पवित्रता के अधिकार का ऐसा उल्लंघन है जो उसके सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करता है। यह न सिर्फ उसके सर्वोच्च सम्मान पर गंभीर प्रहार है बल्कि उसके आत्मविश्वास तथा उसकी प्रतिष्ठा के प्रति अपराध होकर, उसे कम कर, उसे अपमानित करता है जिसका बालको के साथ होने पर उसकी गंभीरता और अधिक हो जाती है। वर्तमान में इस प्रकृति के अपराधों की संख्या में हो रही अत्यधिक वृद्धि से इन अपराधों पर नरम दृष्टिकोण अपनाना उचित नहीं है। इस प्रकरण में अभियुक्त द्वारा एक 9 वर्ष की बच्ची के साथ चाकू से डराते हुए उसके साथ बलात्कार किया गया है जो यह दर्शित करता है, कोई व्यक्ति इस हद तक कामांध हो सकता है कि उसे छोटे-बड़े होने या किसी रिश्ते से भी कोई अंतर नहीं पड़ता है। ऐसी प्रवृति यह सोचने के लिए विवश करती है कि क्या सही में मानव ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है? क्योंकि यह प्रवृत्ति तो जानवरों में भी नहीं होती है और वह इस तरह का कार्य भी नहीं करते हैं।

अपने फैसले में कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि आरोपी की यह प्रवृति यह सोचने को विवश करती है कि क्या सही में मानव ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है? क्योंकि यह प्रवृति तो जानवरों में भी नहीं होती और वह इस तरह का कार्य भी नहीं करते हैं।

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