बिलासपुर। सामाजिक कार्यकर्ता व अधिवक्ता सुधा भारद्वाज के दोस्त और परिवार के सदस्यों ने उनके स्वास्थ्य की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए उन्हें शीघ्र जमानत देने की मांग उठाई है।
सुधा भारद्वाज के तबियत बिगड़ने की सूचना मिलने पर ये सभी ऑनलाइन एकत्रित हुए थे। उन्होंने इसके बाद एक बयान जारी कर कहा कि जेल में विचाराधीन बंदियों को दो साल तक रखना, जानबूझकर जमानत देने में देरी करना, केस में विचारण शुरु करने के बजाय उन्हें स्वास्थ्य को गंभीर संकट में ढ़केलना, कैदियों के अधिकारों का घोर उल्लंघन है। जेलों में भीड़-भाड़ की स्थिति को देखते हुए वैश्विक महामारी के समय यह खतरा और बढ़ा हुआ है। सुधा भारद्वाज और ग्यारह अन्य लोगों पर भीमा कोरेगांव की हिंसा का आरोप झूठा है।
यह हिंसा 1 जनवरी 2018 को पुणे शहर के करीब भीमा कोरेगाँव में भड़की थी। यह मौका भीमा कोरेगाँव युद्ध की 200 वीं वर्षगांठ का था जिस में सन् 1818 में दलितों ने पेशवाओं पर जीत हासिल की थी।
प्रतिभागियों ने कहा कि 23 जुलाई को कोर्ट से मिली जेल की मेडिकल रिपोर्ट चिन्ताजनक है। रिपोर्ट में बताया गया है कि सुधा भारद्वाज “इस्केमिक हार्ट डिजिज” से पीड़ित हैं, जो हृदय की धमनियों के संकुचित होने के कारण होती है। इससे हृदय की मांसपेशियों में रक्त के प्रवाह की कमी होती है और जिससे दिल का दौरा पड़ सकता है। यह बेहद चिंताजनक है, क्योंकि उनकी बेटी मायशा के अनुसार 27 अक्टूबर, 2018 को हिरासत में लिए जाने से पहले सुधा भारद्वाज को दिल से जुड़ी कोई शिकायत नहीं थी।
मायशा ने बताया कि उसकी मां के दिल की बिगड़ती स्थिति स्पष्ट रूप से दो साल से कारागर में परिरुद्ध होने के तनाव के कारण ही पैदा हुई है और अभी भी विचारण शुरू होने के कोई लक्षण नज़र नहीं आ रहे हैं। चिकित्सकीय डॉक्टरों ने हृदय की ऐसी स्थिति को गंभीर बताया, जिससे दिल का दौरा पड़ सकता है। जेल से प्राप्त चिकित्सा रिपोर्ट यह स्पष्ट नहीं करती है कि इस स्थिति का निदान कब किया गया था, न ही इस निदान का आधार बताती है। इस अनिश्चितता और पूर्ण चिकित्सा इतिहास के प्रकटीकरण की कमी के कारण सुधा भारद्वाज के विस्तृत परिवार और करीबी सहयोगियों को गहरी चिंता है।
सुधा भारद्वाज की दिल की बीमारी की खबर नई है, पर पहले से ही उनको मधुमेह और रक्तचाप है। कुछ साल पहले तपेदिक भी था, जिसके कारण उनको कोविड के संक्रमण का सामान्य से अधिक खतरा है। इस तरह की महामारी के समय, किसी असुरक्षित, भीड़-भाड़ वाली जगह पर ऐसे व्यक्ति का एक दिन भी व्यतीत करना उनको अनावश्यक जोखिम में डालना होता है। न्यायिक प्रक्रिया में इस तरह की देरी अति दुःखदायी है।
ऑनलाइन चर्चा में सुधा भारद्वाज की बेटी ने साझा किया कि उनकी मां और उनके साथ बैरक में रहने वाले अन्य बंदियों को कोरोनवायरस संक्रमण से बचाव के रूप में केवल एक मास्क प्रदान किया था। भीड़भाड़ वाले बैरक में एक दूसरे से अनिवार्य दूरी बनाये रखना असंभव है।
विदित हो कि एक जनहित याचिका के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट के एक प्रश्न के जवाब में, भायखुला जेल ने खुलासा किया कि शारीरिक दूरी के मानदंडों को बनाए रखने के लिए, जेल में अधिकतम 175 कैदी ही रह सकते हैं, फिर भी, 28 जुलाई तक इस जेल में 257 कैदी थे।
पिछले महीने तक, जेल में बंदियों के कोविड 19 परीक्षण नहीं हुए थे। हालांकि इस जेल के डाक्टर और अधीक्षक को कोरोनोवायरस पॉसिटिव पाया गया था और एक 54 वर्षीय महिला कैदी, जो ऑक्सीजन की कमी के कारण अस्पताल में भर्ती थी, को भी अस्पताल में कोरोनोवायरस पॉसिटिव पाया गया था।
स्वास्थ्य आपातकाल के इस अभूतपूर्व समय में यह बेहद चिंताजनक है कि 11 जून को बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष दायर मेडिकल आधार पर जमानत याचिका ढाई महीने से लंबित है। इस अवधि में कम से कम 12 बार 23 जून, 26 जून, 30 जून, 3 जुलाई, 10 जुलाई, 17 जुलाई, 20 जुलाई, 23 जुलाई, 28 जुलाई, 4 अगस्त, 10 अगस्त और 17 अगस्त को कोर्ट की सुनवाई सूची में यह याचिका अंकित हुई। पर अभी तक, इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है। या तो मामले की बारी नहीं आती है और कोई सुनवाई नहीं होती है, या फिर मामला किन्हीं कारणों से स्थगित हो जाता है। जैसे कि एनआईए को जवाब देने में देरी या जेल ऐसा जवाब पेश करता है जिसे पढ़ना असंभव होता है।

17 अगस्त की पिछली सुनवाई में भी मामले को अगले हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया गया था। इस बार, अदालत एनआईए द्वारा दायर एक अतिरिक्त हलफनामे को ढ़ूंढ़ नहीं पाई और फिर शासन को भी अधिक समय दिया कि वह कैदियों के बीच कोरोनोवायरस के प्रसार को रोकने के लिए जेल में किए गए उपायों पर एक अतिरिक्त जवाब पेश करे। बार-बार शासन से अतिरिक्त रिपोर्ट मांगना और सुनवाई की धीमी गति, इन दोनों कारणों से जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया में लंबी देरी हो रही है, जो बहुत निराशापूर्ण है।
सुधा भारद्वाज के करीबी सहयोगियों, दोस्तों और परिजन ने मांग की है कि सुधा भारद्वाज की रिहाई के लिए सुनवाई जल्द पूर्ण हो, जो उनके स्वास्थ्य पर आधारित हो। उनके मेडिकल परीक्षण का संपूर्ण रिकार्ड प्राप्त हो। साथ ही जेल अधिकारियों से अपील है कि वे जेलों में भीड़ कम करें। सभी बंदियों का नियमित रूप से कोविड परीक्षण करें और जेल में कोविड से बचाव के सारे उपाय करें ।
ऑनलाइन चर्चा में मायशा भारद्वाज, कलादास डहरिया, रमाकांत बंजारे, श्रेया, कविता श्रीवास्तव, इंदिरा चक्रवर्ती, आलोक शुक्ला, वैभव वैश, मधुर भारतीय, विमल भाई, प्रियांशु गुप्ता, अपर्णा चौधरी, बिजया चांदा, ए पी जोसी, मालिनी सुब्रमणियम, के जे मुखर्जी, स्मिति शर्मा, नीलाभ दुबे, शिखा पांडे, मनन गांगुली, प्रियंका शुक्ला, मोनू कुहाड़, अनुराधा तलवार, रजनी सोरेन, राजकुमार साहू, बंसी साहू, शिवानी तनेजा, महेश कुमार व महीन मिर्ज़ा शामिल हुए।

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