गहलोत की चिट्ठी के जवाब में आदिवासी नेता नेताम ने सोनिया गांधी को लिखा पत्र

बिलासपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की शिकायत ही है कि वह हसदेव एरिया में आवंटित कोल ब्लॉक में खनन की मंजूरी नहीं दे रहे हैं। इसके जवाब में अखिल भारतीय आदिवासी परिषद के प्रदेश अध्यक्ष संत कुमार नेताम ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर मांग की है कि राजस्थान सरकार को निर्देश दें वह छत्तीसगढ़ के बजाय मध्यप्रदेश के सोहागपुर कोलफील्ड से कोयला निकालने की मंजूरी ले। वह कोयला उनको न केवल सस्ता पड़ेगा बल्कि ज्यादा जंगल नष्ट नहीं होंगे। नेताम ने पत्र की कॉपी राजस्थान के मुख्यमंत्री को भी भेजी है।

मालूम है की राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी को एक पत्र लिखकर कहा है कि बार-बार अनुरोध करने के बावजूद छत्तीसगढ़ सरकार राजस्थान को आवंटित कोयला ब्लॉकों में खनन की मंजूरी नहीं दे रही है। इसके कारण राजस्थान को आवंटित परसा केते एक्सटेंशन और केते बासन से कोयला नहीं मिल पा रहा है। इससे 4340 मेगा वाट बिजली का उत्पादन ठप हो सकता है। नये नियमों के मुताबिक राज्य को इन खदानों से खनन के लिए पंचायतों से अनुमति लेनी पड़ेगी और इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार को पहल करनी पड़ेगी। कोयला नहीं मिलने के कारण राज्य में राजस्थान को बिजली दर में 33 पैसे प्रति यूनिट की वृद्धि करनी पड़ी है। यहां देश में सबसे ज्यादा महंगी बिजली है।

इसी को लेकर अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के प्रदेश अध्यक्ष संत कुमार नेताम ने आज एक पत्र सोनिया गांधी को लिखा है। उन्होंने कहा है कि सरगुजा क्षेत्र में राजस्थान की सरकारी कंपनी राज्य विद्युत उत्पादन निगम को कोल ब्लॉक आवंटित करने के कारण सरगुजा क्षेत्र के आदिवासियों को भू विस्थापन, वायु और जल प्रदूषण तथा भारी वाहनों के कारण दुर्घटनाओं और खनन के चलते होने वाले व्यवधान से हाथियों के उग्र हो जाने का दुष्परिणाम भोगना पड़ रहा है।

वर्तमान में सरगुजा क्षेत्र के परसा ईस्ट केते बासन, केते एक्सटेंशन और परसा 3 कोल ब्लॉक राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित है। यह पूरा क्षेत्र घने जंगलों से घिरा है, जिसके कारण खनन अनुमति की लागत बहुत ज्यादा है। यह ब्लॉक मध्य प्रदेश के सोहागपुर की तुलना में लगभग 200 किलोमीटर अधिक दूरी पर है जिसके कारण परिवहन का खर्च 400 रुपए प्रति टन अधिक है। सोहागपुर कोलफील्ड में जंगल कम है और वहां भी पर्याप्त मात्रा में कोयले का भंडार है। इन तथ्यों के बावजूद राजस्थान में कभी भी अपने विद्युत संयंत्रों के नजदीक स्थित भंडारों से खनन आवंटन की मांग केंद्र सरकार से नहीं की।

नेताम ने पत्र में कहा है कि राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम का  अडानी की कंपनी के साथ किया गया अनुबंध वर्तमान में नए कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते अवैध हो चुका है। इस अनुबंध के कारण वर्तमान में चालू परसा ईस्ट केते बासन से अपने स्वयं का कोयला राजस्थान को अडानी की कंपनी से महंगे में खरीदने को मजबूर होना पड़ा है। दूसरी ओर उत्पादन का 20 प्रतिशत अडानी कंपनी मुफ्त में अपने उपयोग के लिए रखती है।

पत्र में कहा गया है कि परसा कोल ब्लॉक के भूमि अधिग्रहण के दौरान सरगुजा जैसे पांचवी अनुसूची के क्षेत्र में ग्राम सभाओं की मंजूरी के फर्जी दस्तावेज बनाए गए और अब दबाव पूर्वक भूमि अधिग्रहण का प्रयास किया जा रहा है। नए भूमि अधिग्रहण कानून के बाद कॉल बेयरिंग एक्ट से भूमि अधिग्रहण किया जाना आपत्तिजनक है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भी चेतावनी दी है कि क्षेत्र में खनन बढ़ने से मानव हाथी संघर्ष में भारी वृद्धि होगी।

उपरोक्त विवरण को देखते हुए यह आवश्यक है राजस्थान के उपभोक्ताओं और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के हितों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी राजस्थान सरकार को यह निर्देश दें कि वह अडानी कंपनी के साथ किया हुआ अनुबंध रद्द करे। साथ ही चालू खदान परसा ईस्ट केते बासन को छोड़कर अन्य दो ब्लॉक परसा और केते एक्सटेंशन की जगह मध्यप्रदेश के सोहागपुर कोल फील्ड में कोल ब्लॉक का आवंटन केंद्र सरकार से कराए।

नेताम ने पत्र में यह समझाने का प्रयास किया है कि कोल इंडिया की एसईसीएल वर्तमान में कोयले का पर्याप्त उत्पादन कर रही है, जो निकट भविष्य में बढ़ सकती है। राजस्थान सरकार को जिस दर पर कोयला अपनी खदान से मिल रहा है लगभग उसी दर पर एसईसीएल का कोयला पहुंच रहा है। अतः अपनी ही ब्लॉक से अडानी के द्वारा खनन कराते हुए कोयला प्राप्त करने की जिद का कोई आधार नहीं है। वैसे भी खनन का पूरा लाभ अडानी को प्राप्त हो रहा है और राजस्थान के उपभोक्ताओं को महंगी बिजली मिल रही है। अतः इस स्थिति को राजस्थान के नागरिकों के हित में भी तुरंत बदले जाने की आवश्यकता है।

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