-प्राण चड्ढा, वन्य जीव प्रेमी एवं वरिष्ठ पत्रकार

अचानकमार टाइगर रिजर्व में टाइगर  की संख्या बढ़ाने के लिए छतीसगढ़ के वन मंत्री मोहम्मद अकबर को वन विभाग के अधिकारियों ने सुझाव दिया है कि कोर एरिया में बसे 19 गांवों को हटा दिया जाए। अचानकमार टाइगर रिजर्व से इन गांवों तो हटाना और बसाना सुप्रीम कोर्ट के मापदंडों के मुताबिक फिलहाल  तो किसी के बस में नहीं है। सबको बसाने उतनी जमीन अभी उपलब्ध  नहीं है। हां, पार्क मैनेजमेंट में सुधार कर टाइगर को इस दौर में भी बढ़ाया जा सकता है।

1975 में जब इस सेंचुरी की स्थापना हुई थी तब इसमें 25 गांव थे। अब तक मात्र 6 गांव पार्क से बमुश्किल बाहर किये जा सके। अब सोचा जा सकता है कि शेष 19 गांवों के विस्थापन में और कितने दशक लगेंगे? तब तक क्या किया जाए?

टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क में सौ के करीब टाइगर का विश्व प्रसिद्ध आवास है। इस नेशनल पार्क के सीने से पक्की सड़क गुजरती है। कोर एरिया में गांव है और सरहदी आबादी के इलाके में पार्क के टाइगर, भालू पहुंच जाते हैं, जो बहुत करीब हैं। गांव वाले पार्क से गुजरते हैं।

जब बांधवगढ़ में टाइगर बढ़ रहे हैं तो अचानकमार टाइगर रिजर्व में क्यों नहीं?  जाहिर है समस्या का हल कहीं और है। बीमारी की नब्ज नहीं पकड़ी जा रही है।

मप्र के बांधवगढ़, कान्हा और महाराष्ट्र के ताडोबा नेशनल पार्क पर एक नजर डालें। वहां का जल प्रबंधन देखें। वहां और अचानकमार में बड़ा अंतर है। वहां बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा पंप लगे हैं और मोटी धार चलती रहती है। होलोन और बंजर नदी कान्हा में सदानीरा है। बांधवगढ़ में भी नदी और वेटलैंड की कमी नहीं। तोडोबा में तो बड़े बड़े दरिया हैं, पंप हैं। इधर तुलना करें तो अचानकमार की मनियारी नदी गर्मी से पहले सूख जाती है। कुछ सौर पंप यहां पर भी हैं पर धार कमजोर। वन्यजीव के लिए पानी की कमी शुरू से है, जबकि टाइगर को पीने और नहाने के लिए काफी पानी की जरूरत होती है। वह गर्मी में घंटों पानी में रहता है, ऐसी दशा में कोई और वन्य जीव वहां फटकता नहीं, दूर खड़ा रहता है। उनके लिए दूर अलग पानी की व्यवस्था करनी चाहिये। मगर सभी अचानकमार में फंड की कमी का रोना रोते मिलते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here