शीर्ष न्यायालय ने चीफ जस्टिस से किया अनुरोध- न्यायिक नोट जारी कर इस पर रोक लगाएं

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ से संबंधित एक मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अंतरिम जमानत की याचिका को बगैर सुनवाई के खारिज करना और उसे नियमित सुनवाई के लिए रखने के लिए कहा जाना असामान्य तथा कुछ हद तक अजीब परिपाटी है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को इस बारे में एक ज्यूडिशियल नोट जारी करना चाहिए।

प्रकरण राजनांदगांव जिले के छुई खदान के एक पटवारी तुलसी राम साहू का है। उसके भांजे लोकेश कुमार साहू ने पुलिस में शिकायत की थी कि मामा ने धोखे से उसकी जमीन की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली है। पुलिस ने पटवारी के विरुद्ध आईपीसी की धारा 420 के तहत अपराध दर्ज किया। एफआईआर दर्ज होने के बाद पटवारी ने जिला न्यायालय में अंतरिम जमानत के लिए याचिका लगाई, जो खारिज हो गई। इसके बाद अधिवक्ता विपिन तिवारी और वीरेंद्र वर्मा के माध्यम से उसने हाईकोर्ट में अपील की। जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की सिंगल बेंच ने आवेदन पर सुनवाई नहीं की और इसे नियमित क्रम में लाने के लिए कहा।

मालूम हो कि अंतरिम जमानत याचिका तब दायर की जाती है जब किसी को गिरफ्तारी का भय होता है। यह अग्रिम जमानत के पूर्व दायर की जाती है। अग्रिम जमानत याचिका मुकदमे की डायरी पेश करने और सुनवाई के दौरान राहत पाने के लिए दायर की जाती है। याचिकाकर्ता को ऐसा प्रतीत हुआ कि अंतरिम जमानत पर तत्काल सुनवाई नहीं होने पर उसे राहत मिलने में दो से तीन माह का समय लग सकता है। तब तक उसकी गिरफ्तारी भी हो सकती है। वह शासकीय सेवक है और उसकी नौकरी खतरे में पड़ सकती है। पटवारी ने सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। प्रारंभिक सुनवाई में ही जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागराथन की डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता पटवारी को अंतरिम जमानत दे दी। अंतरिम जमानत मिलने के बाद अग्रिम जमानत के लिए पटवारी अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से फिर हाईकोर्ट पहुंचे। जस्टिस रजनी दुबे की बेंच ने अग्रिम जमानत याचिका पर यह कहते हुए सुनवाई की कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश अंतरिम जमानत के लिए है। अग्रिम जमानत पर सुनवाई करने पर कोई रोक नहीं लगाई गई है। जस्टिस दुबे ने सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दे दी।

इसके बाद याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट फिर गए। उन्होंने शीर्ष न्यायालय को बताया कि वे अपना आवेदन वापस लेना चाहते हैं क्योंकि हाई कोर्ट से उन्हें राहत मिल चुकी है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका का निष्पादन करते हुए टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर ऐसे मामलों में कोर्ट हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं होती है। न ही राहत देने का विचार करना चाहती है लेकिन यह कुछ हद तक अजीब है कि आवेदक की अंतरिम जमानत याचिका को खारिज कर दी गई और मामले को उचित समय पर सुनवाई के लिए रखने के लिए कहा गया। यह एक असामान्य प्रथा है जिसे इस न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने कभी नहीं किया, जबकि हाईकोर्ट में इस तरह की परिपाटी पहले भी देखने को मिली है। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि- इसलिए वे छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध करते हैं एक ज्यूडिशियल नोट इस संबंध में जारी करें। यह सुनिश्चित हो कि अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई को आगे की किसी तारीख के लिए नहीं टाला जाए।

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