दोषी अधिकारी कर्मचारियों पर कार्रवाई व पीड़ित के परिवार को मुआवजा देने का आदेश

बिलासपुर। बाल संप्रेक्षण गृह पहुंचने के बाद एक नाबालिग ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी थी। हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए प्रशासन के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने तथा परिजनों को मुआवजा देने का आदेश दिया है।
19 जुलाई 2019 को उक्त नाबालिग को सरकंडा, बिलासपुर पुलिस ने चोरी के आरोप में गिरफ्तार कर सीजेएम कोर्ट में पेश किया था। कोर्ट के आदेश पर उसे जेल भेज दिया गया था। बाद में सरकंडा थाने की ओर से कोर्ट में आरोपी  के आधार कार्ड तथा जन्म संबंधी अन्य दस्तावेजों के साथ आवेदन लगाया गया। इसमें बताया गया कि आरोपी नाबालिग है और उसे सेंट्रल जेल की बजाय बाल संरक्षण गृह में रखा जाना उचित होगा। उसे सरकंडा स्थित बाल संरक्षण गृह में 26 जुलाई 2019 को भेज दिया गया। यहां पर अगले दिन सुबह उसकी लाश बाथरूम में गमछे पर लटकी हुई मिली। परीक्षण के बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। नाबालिग की मां ने इस मामले में प्रताड़ना का आरोप लगाया। अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला के माध्यम से उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कार्रवाई की मांग की। चीफ जस्टिस की डिविजन बेंच ने सुनवाई करते हुए नाबालिग की मौत के संबंध में सीजेएम से रिपोर्ट मांगी। रिपोर्ट में यह पाया गया कि इस संस्था के प्रभारी और अन्य जिम्मेदार कर्मचारियों ने नाबालिग  के प्रति नियमानुसार अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया। बाल संप्रेक्षण गृह लाए जाने के बाद रात में उसे बाथरूम के बगल में स्थित चेंजिंग रूम में उपेक्षापूर्वक छोड़ दिया गया था। यहां अकेले रहने के कारण उसे आत्महत्या जैसे कृत्य का मौका मिल गया।
हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा एवं जस्टिस रजनी दुबे की डिविजन बेंच ने पाया है कि अभिरक्षा में रखने के दौरान नाबालिग के साथ किए गए उपेक्षा पूर्ण व्यवहार के कारण आत्महत्या की परिस्थितियां निर्मित हुई। बेंच ने शासन को आदेश दिया है कि वह 6 माह के भीतर नाबालिग की मां को एक लाख रुपए मुआवजा प्रदान करे तथा संप्रेक्षण गृह के जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारियों पर कार्रवाई सुनिश्चित करें।

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