-प्राण चड्ढा, वरिष्ठ पत्रकार एवं वन्यजीवन विशेषज्ञ
छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या और मानव और जंगली हाथियों के मध्य टकराव की स्थिति वन विभाग से संभाले नहीं सम्भल रही। दो अक्टूबर की सुबह एक युवा दंतैल हाथी महासमुंद के करीब अरंड रेलवे स्टेशन में चहलकदमी करते पहुंच गया। वह काफी देर तक स्टेशन का जायजा लेता रहा, सुखद रहा कि उसका मूड ठीक रहा और कोई अनहोनी नहीं हुई।
इस वक्त छतीसगढ़ में 250 के करीब जंगली हाथी अलग अलग दलों में बंटे हुए हैं। आये दिन हाथी के करंट से मारे जाने या फिर गुस्साए हाथी के द्वारा किसी को कुचल कर मारने की खबर अखबारों में प्रकाशित होती हैं। इन दिनों धान की फसल में बालियां आने वाली हैं, और हाथियों के खेत पहुंचे का खतरा बढ़ना संभावित है।
वन विभाग हांथियों का उत्पात रोकने बड़ी अजीबोगरीब योजना हर बरस लांच करता है पर उनका हर तीर तुक्का बनकर फुस्स हो जाता है। लेमरू एलिफेंट रिजर्व अवरोधों के बीच फंसा है। नहीं तो अब तक उसकी पोल भी गजराज सामने ला दिए होते। ये हाथी झारखंड और ओडिशा से आये और एमपी के जंगल तक फैल गए हैं। राजधानी रायपुर के कुछ दूर तक इनकी दस्तक सुनाई देती है। हाथी की समस्या हाथी से बड़ी है और इसका निदान अब छतीसगढ़ वन विभाग के बूते से बाहर लगने लगा है। एक वीडियो मुझे वन विभाग के पूर्व अधिकारी अरूप कुमार चटर्जी ने भेजा है, शायद अरण्ड के स्टेशन मास्टर ने इसे बनाया है। इस वीडियो में हाथी काफी देर तक स्टेशन में पटरियों के आर-पार और प्लेटफॉर्म पर मंडरा रहा है।
ऐसे एकड़ा हाथी क्यों होते हैं?
यह जंगली हाथियों के दल का नेतृव अनुभवी कुलमाता करती हैं। जब हाथी युवा होते हैं तो दल से उनको खदेड़ दिया जाता है, ताकि उसी दल में प्रजनन न हो। ऐसे नर हाथी छोटे समूह में रहते हैं और कुछ सालों बाद दूसरे दल के नेता को परास्त कर वो उसके हरम पर कब्जा कर लेते हैं। दल से अलग हाथी बहुत खतरनाक होते हैं। वैसे भी हाथी मदकाल में आक्रामक हो जाता है। ऐसे हाथी कई बार अकेले घूमते हुए दिखाई दे जाते हैं।