आंचलिक पत्रकारों की स्थिति पर प्रादेशिक सम्मेलन में विमर्श, वक्ताओं ने कहा कि राष्ट्रीय अख़बार नहीं आंचलिक पत्रकार ही जमीन से जुड़ी ख़बरें निकालते हैं….

आंचलिक पत्रकारों के प्रदेश स्तरीय सम्मेलन में वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हरीश पाठक ने आज कहा कि हमारे लिखने का कोई भी माध्यम हो चाहे प्रिंट मीडिया या सोशल मीडिया, हमारे लिखे हुए शब्दों का ही महत्व है। इसलिए नई तकनीक से लैस पत्रकारों की काबिलियत पर किसी तरह का संदेह नहीं होना चाहिए।

छत्तीसगढ़ सक्रिय पत्रकार संघ की ओर से आयोजनत प्रदेश के विभिन्न अंचलों से पहुंचे पत्रकारों के बीच आयोजित सम्मेलन और अलंकरण समारोह में उन्होंने कहा कि आंचलिक पत्रकार ही देश की असली तस्वीर सामने लेकर आते हैं। आंचलिक पत्रकार जो लिखते हैं वही राष्ट्रीय अख़बारों की सुर्खियां बनती है। उन्होंने अनेक घटनाओं के साथ बीबी जागीर कौर का उदाहरण दिया जो गुरुद्वारा प्रबंधन समिति की अध्यक्ष और पंजाब प्रांत की ताकतवार नेता थीं। उनकी बेटी की आत्महत्या की घटना को एक महिला पत्रकार ने ट्रिब्यून में प्रकाशित किया था। बीबी जागीर कौर की बेटी ने एक नीची जाति के लड़के से शादी कर ली थी और बीबी उन्हें प्रताड़ित करती थीं। आज बीबी जागीर कौर जेल में है और उनका सामाजिक राजनैतिक करियर खत्म हो चुका है। उन्होंने गिरिजाशंकर और सुनील कुमार द्वारा देशबंधु में रहने के दौरान चार लोगों की हत्या के आरोपी बैजू की हत्या के आरोपी की फांसी की सजा की रिपोर्टिंग का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि चारा घोटाले जिसने कई लालू यादव सहित कई पूर्व मुख्यमंत्रियों को और बड़े-बड़े अफसरों को जेल में डाला, उस ख़बर का सूत्रधार प्रभात ख़बर का एक मामूली सा फोटोग्राफर था।

अतिथि के रूप में उपस्थित ‘दुनिया इन दिनों’ के सम्पादक व सालों तक बिलासपुर में पत्रकारिता कर चुके डॉ. सुधीर सक्सेना ने कहा कि सत्ता चाहे किसी की हो उन्हें असहमति बर्दाश्त नहीं होता। सत्ताधीशों से लड़ने वाला अगर कोई चौथे स्तंभ है तो वे अंचल के ही पत्रकार हुआ करते हैं। उन्होंने बर्नार्ड शॉ की उक्ति का उल्लेख किया कि हमारे पैर चाहे जितने लम्बे हों वे जमीन से जुड़े रहने चाहिए। उन्होंने अपने बिलासपुर से लगाव और आंचलिक पत्रकारिता दोनों के संदर्भ में यह बात कही। डॉ. सक्सेना की किताब ‘कड़ी धूप में घनी छांव’ का विमोचन भी इस मौके पर किया गया। उन्होंने याद दिलाया कि धूसर में बिलासपुर का विमोचन भी उन्होंने यहीं किया था। डॉ. सक्सेना ने कहा कि मैं देश और दुनिया में कहीं भी घूमता रहूं बिलासपुर में मेरे जेहन में होता  है। उन्होंने खुलासा किया कि उनकी पत्रिका का दो माह बाद आने वाला अंक बिलासपुर के पत्रकार-साहित्यकार सतीश जायसवाल पर केन्द्रित होगा। डॉ. सक्सेना ने अपने मित्रों के विचारों पर केन्द्रित ‘कड़ी धूप में घनी छांव’ की चर्चा करते हुए बताया कि इतने सारे पत्र और आलेख उनके पास आ गए हैं कि इसका एक और खंड उन्हें प्रकाशित करना पड़ेगा।

नवभारत के सम्पादक नीलकंठ पारठकर ने कहा कि ग्रामीण पत्रकार, आंचलिक पत्रकारिता की जान हैं। वे रात-दिन मेहनत करते हैं। आंचलिक अख़बारों के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा इन संवाददाताओं से हासिल होता है। उन्होंने जिक्र किया कि किस तरह धुर नक्सल इलाके सुकमा में शौचालयों की बदतर स्थिति पर नवभारत में रिपोर्ट छपी। केन्द्र में इस पर खलबली मची। अधिकारियों ने फर्जी जांच रिपोर्ट भेजी और कहा कि सब कुछ सही है। आप खंडन छापें। संवाददाता ने फिर मेहनत की और नई रिपोर्ट बनाई कि स्थिति और बदतर है। हमने केन्द्र को जवाबी रिपोर्ट भेजी कि खंडन नहीं छपेगा और आप उन अफसरों पर कार्रवाई करें जिन्होंने बिना छत के शौचालय बना डाले और पैसे निकाल लिए। केन्द्र से इसका कोई जवाब नहीं आया। उन्होंने जिया उल हुसैनी की रिपोर्ट का जिक्र किया जिन्होंने गंगरेल बांध से प्रभावितों के पुनर्वास और मुआवजे पर सिलसिलेवार लम्बी रिपोर्ट छापी। पारठकर ने कहा कि ग्रामीण पत्रकार संसाधन में शहरी पत्रकारों की तरह सम्पन्न नहीं होते पर वे ख़बरों पर जी-जान लगा देते हैं। उन्होंने समाज और अख़बार मालिकों को नसीहत दी कि वे आंचलिक पत्रकारों पर वसूली का आरोप न लगाएं, इससे कई गुना स्थिति मीडिया के ऊपरी हिस्से में बिगड़ी

हुई है।

धीरेन्द्र अस्थाना, मुम्बई सबरंग पत्रिका सम्पादक हैं और राष्ट्रीय सहारा के एसोसिएट एडिटर रह चुके हैं। अपने उद्बोधन में उन्होंने आंचलिक पत्रकारों को समझाइश दी  कि वे महानगरों की पत्रकारिता पर अपना आकर्षण प्रदर्शित न करें। आप जहां पर भी हैं, वहां वहां आप क्या कर रहे हैं। इसी का महत्व है। आप छोटे से गांव में रहकर भी राष्ट्रीय महत्व की ख़बरों को सामने ला सकते हैं। उन्होंने कहा कि अब आंचलिक पत्रकार जैसी कोई बात नहीं है क्योंकि इंटरनेट के जरिये सब आपस में वैश्विक रूप से जुड़े हैं।

अटल बिहारी बाजपेयी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गौरी दत्त शर्मा ने कहा कि लोक से जुड़कर ही महत्व की सूचनाएं निकाली जा सकती हैं। आंचलिक पत्रकार ये काम बखूखी करते हैं, जो राष्ट्रीय अख़बारों के पत्रकार नहीं कर पाते। पत्रकारिता में नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की सूचनाएं आवश्यक हैं ताकि सबके सामने सच आ सके। मुझे पता है कि एक सक्रिय पत्रकार सुबह से काम में लग जाता है और देर रात तक व्यस्त होता है। पत्रकारिता कष्ट से जुड़ा अध्यवसाय है। मैं आप सब की सराहना करता हूं। सही मायने में ये सूर्य पुत्र हैं। उन्होंने पत्रकारों को आमंत्रण दिया कि वे मीडिया के महत्वपूर्ण विषयों पर कभी भी कोई आयोजन करे हम उन्हें विश्वविद्यालय का मंच उपलब्ध कराएंगे। उन्होंने सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली ख़बरों को घातक बताते हुए कहा कि दस में से नौ इनकी ख़बरें सत्य से परे होती है। मीडिया के साथियों को इससे बचना चाहिए।

देश के जाने-माने व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि सक्रिय पत्रकार सचमुच कलम के सिपाही होते हैं। उनकी ऊर्जा में महात्मा गांधी और गणेश शंकर विद्यार्थी की पत्रकारिता की छाप हमें दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि एक्टिविस्ट की तरह काम करें यह हर एक दौर में जरूरी रहा है।


वरिष्ठ पत्रकार दिनेश ठक्कर ने इस कार्यक्रम में अपनी कविता ‘मुट्ठी भर छांव’ का पाठ किया।

इस मौके पर उपस्थित वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार सतीश जायसवाल ने भी पत्रकारों का मार्गदर्शन किया। साहित्य प्रेमी डॉ. शाकिर अली ने भी अपने संस्मरण सुनाए और डॉ. सक्सेना की किताब पर प्रकाश डाला।

सम्मेलन में ‘हरिभूमि’ के डिप्टी एडिटर यशवंत गोहिल को गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बिलासपुर के अनेक वरिष्ठ पत्रकार और आंचलिक पत्रकार इस मौके पर सम्मानित किए गए।

प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत छत्तीसगढ़ सक्रिय पत्रकार संघ के प्रदेश अध्यक्ष राज गोस्वामी व अन्य सदस्यों ने किया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार विश्वेश ठाकरे ने किया। राजेश दुआ, दिनेश ठक्कर, प्रेस क्लब अध्यक्ष तिलक राज सलूजा सहित शहर के अनेक पत्रकार इस मौके पर उपस्थित थे।

 

 

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