बिलासपुर। गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय की प्राकृतिक संसाधन अध्ययनशाला के अंतर्गत फार्मेसी विभाग में कैंसर, मधुमेह आदि बीमारियों की दवा को रूपांतरित करने पर शोध किया गया है। इसके उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। इस विषय पर छात्र डॉ. मुरारी लाल सोनी ने शोध किया है। उनके शोध निर्देशक डॉ. के.पी. नामदेव, सह -प्राध्यापक, फार्मेसी विभाग हैं।

उक्त शोध का विषय ‘‘डेवलपमेंट एण्ड कर्रेक्टाइजेशन ऑफ माडीफाइड स्पोरोपोलेनिन बेस्ड नावेल ड्रग डिलीवरी सिस्टम ऑफ सम बायोएक्टिव्स‘‘ है। वर्तमान में मधुमेह, कैंसर सहित विभिन्न बीमारियों की कई दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं। शरीर में सही स्थान पर नहीं पहुंचने के कारण इन दवाओं का बहुत ज्यादा असर नहीं होता। उक्त बीमारियों के प्रभावी इलाज के लिए एस्परजिलस नाइजर नामक फफूंद से बीजाणुओें को चार विभिन्न तरीकों से अलग किया गया। अम्ल से क्रिया, विलायकों से क्रिया, क्षार से क्रिया आदि विधियों से एस्परजिलस नाइजर नामक फफूंद से बीजाणुओं को अलग किया गया। इसके बाद इसमें इंसुलिन, एम्पोटेरेसिन बी व डाक्सोरूबिसिन (एंटी बायोटिक) को प्रवेश कराया गया। फिर निर्वात में अवशोषण विधि से दो पालीमर (बहुलक) स्टार्च और यूड्राजिड एल 100 से इसको पूरी तरह ढक दिया गया, ताकि दवा का प्रवाह धीरे-धीरे हो और इसका उचित असर हो।

बाजार में मिलने वाली साधारण दवाओं का असर या तो कम होता है या फिर जल्दी खत्म हो जाता है। वहीं लक्ष्य बना कर उपचार करने से दवा का प्रभाव 24 घण्टे तक रहता है। एस्परजिलस नाइजर नामक फफूंद के बीजाणु (स्पोर्स) में दवा प्रवेश कराने के बाद इसका विश्लेषण किया गया। स्कैनिंग इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप (एसईएम), ट्रांसमिशन इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप (टीईएम), न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेसोनेंस (एनएमआर), फोरियर ट्रांसफार्म इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (एफटीआईआर), थर्मल ग्रेवीमेट्रिक एनालिसिस (टीजीए) विधि से इसका विश्लेषण किया गया। विश्लेषण के पश्चात् माडीफाई की गई दवा का चूहों पर असर देखा गया, जो आम दवा से ज्यादा प्रभावी रहा।

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