रणजीत कौर दुआ, विनोबानगर।
आज 13 अप्रैल को खालसा पंथ की स्थापना सन् 1699 में बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब पंजाब में हुई थी। सिख धर्म के दशम् गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने मंच में आते ही तलवार की धार को देखते हुए गरज कर कहा- “एक सिर चाहिए।”
उनके इतना बोलते ही सारे दीवान में सन्नाटा छा गया पर श्रद्धावान सिखों के लिए गुरुजी के कहने से कुर्बान करते हुए जीवन सफल बना लेने का यही अवसर था।
संगत में से लाहौर निवासी भाई दयाराम उठा, जो क्षत्रिय था। गुरुजी के सामने जाकर शीश झुका ली। उनको गुरु साहिब साथ के तंबू में ले गए। कुछ समय पश्चात लहू से भीगी तलवार लेकर गुरुजी मंच पर आये और फिर कहा- एक सिर चाहिए। वहां भला कोई श्रद्धावान सिखों की कमी थी? दिल्ली के भाई धर्मदास जाट उठे। गुरुजी उनको भी तंबू में ले गए। फिर बाहर आकर वही प्रश्न दोहराने लगे। इस प्रकार गुरुजी बारी-बारी से द्वारका गुजरात के भाई मोखम चंद छीबो, जगन्नाथ पुरी ओड़िशा के भाई हिम्मत लागरी, और आंध्रप्रदेश के साहिब चंद बिंदर (नाई) को तंबू में ले गए।
एक बार संगत फिर सकते में आ गई। कुछ देर बाद गुरु जी ने पांचों को दीवान के सामने लाकर खड़ा कर दिया। वह भी एक सुंदर व आकर्षक स्वरूप में। पांचों ने एक ही रंग के दस्तार व कुर्ते सजाए हुए थे। कमर में कछैहरे व सुंदर कृपाण पहन रखी थी। नए रूप में पांच सिख बहुत खूबसूरत लग रहे थे। सदगुरु महाराज जी ने सर्वलौह का बाटा मंगवाया। उसमें निर्मल जल डालकर बीच में  पतासे डाल दिए। गुरुदेव वीर आसन होकर बैठ गए और बाटे में ठंडा पीने लग गए। उन्होंने साथ के साथ जपुजी, जापु जी, सवैये, चौपाई व आनंद साहिब का पाठ किया।
इस प्रकार अमृत तैयार हो गया जिसका पांचों सिखों को सेवन करवाया गया। अमृत पान के पश्चात् पांचों सिखों के नाम के साथ सिंघ शब्द लगा दिया गया। इस प्रकार 5 सिखों को सिखों में बदलकर उनको पंच प्यारों का खिताब दिया गया। फिर गुरु साहिबान ने उनसे विनती कि कि उन्हें भी अमृत पान करवाया जाए। अमृत पान के पश्चात् गुरु गोविंद राय जी गुरु गोविंद सिंह जी के नाम से जाने गये।
इस संदर्भ में भाई गुरदास सिंह ने अपनी कविताओं की रचना में लिखा है-
“ वह प्रगटिओ मरद अगंमड़ा वरीआम इकेला, वाह-वाह गोविन्द सिंह आपे गुरु चेला”
विदित हो कि 1699 की बैसाखी के दिन दशम पातशाह ने विशेष समारोह आयोजित किया था, जिसमें देश के कोने-कोने से हजारों की संख्या में सिख गुरु साहिबान के दर्शनों के लिए पहुंचे थे। इसी स्थान आनंदपुर साहिब (पंजाब) में खालसा पंथ की स्थापना हुई।
खालसा का सृजन एक बहुत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। इस दिन अकाल पुरखीय फौज का जन्म हुआ जिसने इतिहास को नया मोड़ दिया। अमृत पान करता 5 ककारों केश, कंघा, कछैहरा व कृपाण के धारण कर्ता होते हैं।
अकाल पुरख की फौज को सीधे अकालपुरख के अधीन कार्य करना होता है, किसी मनुष्य के अधीन नहीं। अकाल पुरख फौज का सदस्य संसार के जिस कोने में भी रहेगा, किसी जाति, कुल, धर्म, ऊंच-नीच से ऊपर रहकर सर्वत्र के भले के लिए कार्य करता है। यही खालसा पंथ की स्थापना का मूल उद्देश्य है।

 

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