बिलासपुर। सिविल लाइन थाने में बिल्डर ने एक व्यवसायी के खिलाफ 1.60 करोड़ रुपये अवैध उगाही को लेकर एफआईआर दर्ज कराई है उसमें एक दूसरी कहानी भी सामने आ रही है। बिल्डर पर राजस्व दस्तावेजों में हेराफेरी कर अवैध निर्माण कराने का आरोप है। कथित उगाही के आरोपी ने इसकी जांच के लिये शिकायतें की थी और अब उसकी ही जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने इसके निर्माण पर रोक लगा रखी है।
ज्ञात हो कि अमलतास कॉलोनी निवासी बिल्डर राकेश शर्मा ने सिविल लाइन थाने में ट्रांसपोर्टर मनिन्दर सिंह टिब और जमीन ब्रोकर सुशील कश्यप के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई है कि मंगला में वे अपनी कम्पनी की जमीन पर निर्माण कार्य करा रहे हैं।
दो माह पूर्व पड़ोसी भू-स्वामी मनिन्दर सिंह ने निर्माण कार्य में बाधा डालते हुए धमकाया और रकम की मांग की। बाद में अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) को गलत जानकारी देकर निर्माण कार्य में स्थगन प्राप्त कर लिया। बाद में न्यायालय ने कागजात और निर्माण सही पाये जाने के बाद स्थगन को निरस्त कर दिया गया। जुलाई 2020 में मनिन्दर सिंह के कहने पर उसलापुर निवासी सुशील कश्यप उसके पास आया और उसने मनिन्दर सिंह से राजीनामा का प्रस्ताव रखा।
बदले में 1.60 करोड़ रुपये देना होगा। ऐसा नहीं करने पर जमीन पर कब्जा किया जायेगा। एफआईआर के मुताबिक जब राकेश शर्मा ने इस बारे में मनिन्दर सिंह से बात की तो उन्होंने यही कहा कि सुशील कश्यप मेरी ओर से बात करेगा। रकम कब और कैसे देना है वही बतायेगा। शिकायतकर्ता राकेश शर्मा ने साक्ष्य के रूप में सीसीटीवी फुटेज और कथित रूप से मनिन्दर सिंह से फोन पर हुई बात का ऑडियो पुलिस को सौंपा है। साथ ही बताया है कि उसने सुशील कश्यप के खाते में 20 हजार रुपये जमा कर मामले को सुलझाने की भी कोशिश की है।
मामले की तह में जाने पर कुछ दूसरी ही बातें सामने आई है। आरोपी मनिन्दर सिंह का कहना है कि आज तक उसने शिकायतकर्ता राकेश शर्मा से आमने-सामने या फोन पर बात नहीं की है। उसने किसकी आवाज को मेरी आवाज बताकर साक्ष्य बताते हुए जमा किया है वही जाने।
दरअसल, मैंने आरोपी की अवैध कारगुजारी को उजागर करने के लिये एक जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से सूचना के अधिकार और जनहित याचिका का सहारा लिया है। मनिन्दर सिंह का कहना है कि मंगला की जिस जमीन पर निर्माण कराया जा रहा है वह किसी से खरीदने के समय सिर्फ 15 डिसमिल थी, जो राकेश शर्मा और उमाशंकर अग्रवाल के नाम पर दर्ज हुई। पड़ोसी होने के नाते इस बात की मुझे जानकारी थी, निर्माण कार्य ज्यादा हिस्से में होता दिखा तो उन्होंने कागजात निकलवाए।
पता चला कि बिल्डर के नाम पर 24 डिसमिल जमीन दर्ज हो गई है। इस तरह से 9 डिसमिल जमीन को राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से अपने नाम करा लिया गया। उन्होंने इसकी शिकायत राजस्व मंत्री, रेवन्यू बोर्ड सहित तमाम अधिकारियों से की। कलेक्टर ने जांच का आदेश एसडीएम को दिया, एसडीएम ने तहसीलदार को दिया। जांच उसी दफ्तर से हुई जहां से गड़बड़ी होने की आशंका है। जांच रिपोर्ट में तहसीलदार ने अजीबो-गरीब तर्क दिया कि यदि गलत तरीके से दस्तावेज में सरकारी जमीन चढ़ाई गई है तो शिकायत उसी समय की जानी थी, अब कुछ नहीं हो सकता।
राजस्व विभाग के इस निष्कर्ष के खिलाफ मनिन्दर सिंह हाईकोर्ट चले गये। उन्होंने तमाम दस्तावेजों के साथ जनहित याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने स्टे लगाते हुए निर्माण कार्य पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट के स्टे ऑर्डर का भी पालन नहीं हो रहा था तब वे आर्डर लेकर एसडीएम के पास गये तब एसडीएम ने आदेश का पालन कराया। इस पर रोक अभी तक नहीं हटी है जबकि शिकायतकर्ता राकेश शर्मा ने यह अफवाह फैलाकर कि एसडीएम ने स्टे हटा दिया है फिर से निर्माण कार्य शुरू कर दिया। जबकि स्टे हाईकोर्ट ने लगा रखा है और आगामी तिथियों में इसकी सुनवाई होनी है। निर्माण कार्य स्टे के बावजूद शुरू होने की शिकायत उन्होंने एसडीएम से की तब उनके खिलाफ यह एफआईआर दर्ज करा दी गई।
पुलिस द्वारा आरोपी बनाए गए मनिन्दर सिंह का कहना है कि सुशील कश्यप को उन्होंने 20 हजार रुपये क्यों दिये मुझे नहीं मालूम। वह जमीन का काम करता है। कुछ उनका आपस का लेन देन हो सकता है। मेरी ओर से किसी व्यक्ति को उसके पास नहीं भेजा गया।
टिब ने कहा कि मेरा पूरा परिवार 50 वर्षों से बिलासपुर में है। उनका ट्रांसपोर्ट और अन्य कई तरह का फैला व्यवसाय है। उगाही वगैरह उनकी फितरत में नहीं है। इसके पहले उनके खिलाफ कभी कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है जबकि शिकायतकर्ता राकेश शर्मा धोखाधड़ी के आरोप में जेल जा चुका है। ऐसे में एफआईआर दर्ज करने से पहले पुलिस को जांच पड़ताल करनी थी। वे एसपी को इसकी शिकायत करेंगे साथ ही कोर्ट में भी लड़ाई जारी रखेंगे। वे सिर्फ जिम्मेदार नागरिक होने के नाते इस गड़बड़ी को उठा रहे हैं।